(षट्तिला एकादशी : २० जनवरी )
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा : “देव ! माघ
(गुजरात-महाराष्ट्र के अनुसार पौष) मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का माहात्म्य मैं
जानना चाहता हूँ |”
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं : “यह एकादशी ‘षट्तिला’ के नाम से विख्यात है |
पुलस्त्य ऋषि ने दाल्भ्य ऋषि से इसके माहात्म्य का वर्णन किया था | इस एकादशी का
व्रत पापों का शमन करता है | जीव को
निरापद पद की प्राप्ति के लिए षट्तिला एकादशी का व्रत करना चाहिए, सर्वव्यापक
भगवान हरि का पूजन करना चाहिए | काम=क्रोध आदि से लिप्त नीच कर्मों और अति भाषण का
त्याग करके मौन का अवलम्बन लेना चाहिए और भगवत्सुमिरन बढ़ाकर भगवदरस लेते हुए
रात्रि का जागरण करना चाहिए | (रात्रि में १२ बजे तक का जागरण ) ”
इस दिन तिलों का ६ जगह उपयोग कर लेना चाहिए –
१] तिल, आँवला आदि मिलाकर बना उबटन लगाना |
२] जल में तिल डालकर स्नान करना |
३] पीनेवाले जल में तिल डाल के पानी पीना |
४] भोजन में तिल का उपयोग करना |
५] तिल का दान करना और
६] हवन-यज्ञ में तिल का उपयोग करना |
तिल हितकारी हैं परन्तु रात्रि में तिल-मिश्रित पदार्थ का सेवन हानि करता है |
दही और तिल रात्रि को नहीं खाने चाहिए | जो षट्तिला एकादशी का उपवास करते हैं वे
भी तिल-शक्कर की चिक्की अथवा लड्डू खा सकते हैं |
ऋषिप्रसाद – जनवरी २०२० से
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