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Tuesday, March 31, 2020

पुण्यदायी तिथियाँ

२१ मार्च          : महावारुणी योग (रात्रि ७:४० से २२ मार्च सूर्योदय तक ) महावारुणी व वारुणी योग में गंगादि तीर्थ में स्नान, दान, उपवास १०० सूर्यग्रहणों के समान फलदायी )

२२ मार्च          : वारुणी योग (सूर्योदय से सुबह १०:१० तक)

२३ मार्च        : सोमवती अमावस्या (दोपहर १२:३१ से २४ मार्च सूर्योदय तक) (तुलसी की १०८ परिक्रमा करने से दरिद्रता-नाश)

२४ मार्च          : चैत्री अमावस्या (ध्यान, जप बहुत पुण्यदायी )

२५ मार्च          : गुडी पडवा (पूरा दिन शुभ मुहूर्त), चैत्री नवरात्र प्रारम्भ, चेटीचंड

१ अप्रैल           : बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से २ अप्रैल प्रात: ३:४१ तक )

२ अप्रैल           : श्रीराम नवमी (व्रत से अनेक जन्मार्जित पापों की राशि भस्मीभूत ), गुरुपुष्यामृत योग (रात्रि ७:२८ से ३ अप्रैल सूर्योदय तक )

४ अप्रैल        : कामदा एकादशी (व्रत से ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश)

८ अप्रैल से ७ मई : वैशाख मास व्रत (वैशाख मास में भक्तिपूर्वक किये गये दान, जप, हवन, प्रात: पुण्यस्नान आदि शुभ कर्मों का पुण्य अक्षय तथा १०० करोड़ गुना अधिक)

१३ अप्रैल        : पूज्य बापूजी का अवतरण दिवस

१५ अप्रैल        : बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से शाम ४:५२ तक)

१८ अप्रैल        : वरूथिनी एकादशी (सौभाग्य, भोग, मोक्ष प्रदायक व्रत; १०,००० वर्षो की तपस्या के समान फल | माहात्म्य पढने-सुनने से १००० गोदान का फल )

२६ अप्रैल     : अक्षय तृतीया (पूरा दिन शुभ मुहूर्त ), त्रेता युगादि तिथि (स्नान, दान, जप, तप, हवन आदि का अनंत फल )

३० अप्रैल   : गुरुपुष्यामृत योग (सूर्योदय से रात्रि १:५३ तक) ध्यान, जप, दान, पुण्य महाफलदायी

४ मई          : त्रिस्पृशा-मोहिनी एकादशी (उपवास से १००० एकादशी व्रतों का फल तथा अनेक जन्मों के मेरु पर्वत जैसे महापापों का नाश )

५ मई         : वैशाख शुक्ल त्रयोदशी इस दिन से वैशाखी पूर्णिमा (७ मई ) तक के प्रात: पुण्यस्नान से सम्पूर्ण वैशाख मास – स्नान का फल व गीता-पाठ से अश्वमेध यज्ञ का फल 


                                                                   ऋषिप्रसाद  और लोककल्याणसेतु – मार्च २०२० से                                                       

वसंत ऋतू में ध्यान देने योग्य उपयोगी बातें


(वसंत ऋतू : १९ फरवरी से १८ अप्रैल )

वसंत ऋतू का फायदा उठाओ | भगवान बोलते हैं : ऋतूनां कुसुमाकर: | ऋतुओं में वंसत तो मेरा ही स्वरूप हैं |

छहों ऋतुओं में श्रेष्ठ ऋतू वसंत ऋतू है | इसमें प्रकृति नवीन परिधान धारण करती है | देखोगे तो कहीं नये पत्ते, फुल, टहनियाँ आदि देखने को मिलेंगे | वसंत ऋतू में शरीर का कफ पिघलता है | सर्दी, खाँसी, बुखार, गले में खराश, चेचक, दस्त, उलटी, सिर भारी होना आदि समस्याओं की सम्भावना बढती है | तो इन दिनों में धानी, भुने चने आदि पदार्थ खाने चाहिए |

इस ऋतू में मिठाई, सूखे मेवे, खट्टे-मीठे फल, दही तथा शीघ्र न पचनेवाले पदार्थों का त्याग करना चाहिए | तीखे, कड़वे, कसैले पदार्थ तथा मुरमुरा, जौ, चना, मूँग, अदरक, सोंठ , अजवायन, हल्दी, करेला, मेथी, मूली, शहद, गोमूत्र (अथवा पानी मिलाकर गोमूत्र अर्क) आदि का उपयोग करना चाहिए | देर से पचनेवाले पदार्थ और आइसक्रीम, फ्रिज के पानी आदि से परहेज करना चाहिए | इस मौसम में दिन में सोये तो आपकी तबियत लडखडायेगी | हाँ, किसीने रात पाली की है तो भई,  मजबूरी से थोड़ी नींद तो कर ही लेनी पड़ेगी वरना हो सके तो दिन की नींद न करें | कफवर्धक चीजों से परहेज करें | सूर्योदय के पूर्व उठ जाना, व्यायाम करना और शौच आदि से निवृत्त हो जाना – यह सैकड़ों बीमारियों से रक्षा करता है | प्राणायाम करना व उबटन से स्नान लाभदायी हैं |

लोककल्याणसेतु – मार्च २०२० से

एक - एक वचन ....जो बदल देगा आपका जीवन





Ø दूसरों का कल्याण करने के विचारमात्र से ह्रदय में एक सिंह के समान बल आ जाता है |

Ø अपने में जो योग्यता है इसे बहुजनहिताय खर्च करो, आप सुयोग्य बन जायेंगे |

Ø सभी समस्याओं का समाधान, सभी विफलताओं का अंत और सभी सफलताओं की कुंजी है भगवान में विश्रांति पाना |

Ø ब्रह्म का ज्ञान नहीं होगा, वास्तव में ज्ञान (परम तत्त्व स्वरूप ज्ञान-सत्ता ) ही ब्रह्म है और अपने को ईश्वर नहीं मिलेगा, अपने-आप को जानना ही ईश्वर का मिलना है |

Ø आज तक तुमने दुनिया का जो कुछ भी जाना है वह आत्मा-परमात्मा के ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) के आगे दो कौड़ी का भी नहीं हैं |

Ø सुख बाहर से जो अंदर भरे वह ‘बेटाजी’ और सुख अपने-आप है, उसे जो बाहर दे दें वे ‘बापूजी’! सब बन जाओ न ‘बापूजी’ !

Ø कुटिलता, चालाकी, झूट-कपट, बात बनाना – यह मौत की तरफ ले जाता है और जो जैसा है वैसा सहज में रहना, बताना अर्थात सच्चाई यह ब्रह्मप्रद है | ज्यादा बकवास करने की क्या जरूरत है ? ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है |

Ø जो दूसरों को स्नेह, आनंद और निर्भीकता देता है वह अनंत गुना स्नेह और आदर पा लेता है |

Ø किसी भी परिस्थिति में दिखती हुई कठोरता व भयानकता से भयभयित नहीं होना चाहिए | कष्टों के काले बादलों के पीछे पूर्ण प्रकाशमय एकरस परम सत्ता सूर्य की तरह सदा विद्यमान है |

Ø जिसे हम छोड़ना चाहें तो भी कभी छोड़ न सकें उसीका नाम है भगवान और जिसे रखना चाहो तो भी सदा रख न सको उसीका नाम हा संसार !

Ø गिरते हुए को उठाने से मनुष्य स्वयं के जीवन को उठा हुआ पाता है |

Ø धर्म क्या है ? जो कर्म आत्मा की तरफ ले जाय वह धर्म है |

Ø कितनी खुशखबर है कि शरीर का कुल-गोत्र चाहे कुछ भी हो, तुम्हारा तो कुल-गोत्र परमात्मा है !

Ø सद्गुरु के ह्रदय में जिसकी जगह बन गयी वह जितना धनवान है उतना जगत का कोई व्यक्ति धनवान नहीं है | जिसके पास गुरुकृपारूपी धन है वह सम्राट से भी ज्यादा सुखी है | सत्संग से जो उपलब्धियाँ होती हैं वे दुनिया के किसी लौकिक कर्म से नहीं होती !

Ø एक साथ एक समय पर दो भाव नहीं रह सकते | दुःख के समय यदि दो मिनट भी भगवदभाव किया तो वृत्ति भगवदाकार बन जायेगी और कितना भी बड़ा दुःख हो, उस समय नहीं रहेगा |

लोककल्याणसेतु – मार्च २०२० से

Sunday, March 22, 2020

बच्चों की समस्याओं में पलाश है वरदान

पलाश के ३ – ३ बीजों को रास्तों के किनारे अथवा किसी तालाब या झील के समीप मंगलवार के दिन रोप दें | जब इनमें पौधा निकल आये तब उसका पोषण भी करें | इससे बच्चे के शैक्षणिक या आर्थिक विकास में रूकावटे आती हों तो उनका समाधान हो जाता है |

पलाश के साथ गूगल, बेल के पत्ते, मिश्री व अन्य जड़ी-बूटियों के मिश्रण से निर्मित स्पेशल गौ-चंदन धूपबत्ती से रोज धूप करके भ्रामरी प्राणायम करें | इससे बुद्धि, स्मरणशक्ति, एकाग्रता बढने के साथ स्वास्थ्य-लाभ भी होगा |

ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से

कवित्वशक्ति की प्राप्ति हेतु

‘ॐ ह्रीं गौर्ये नम: |’ – इसके जिह्वाग्र पर लेखन से (अथवा जप से भी) कवित्वशक्ति प्रस्फुटित होती है | (अग्नि पुराण :३१३.१९,२२ )

ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से

धन व विद्या प्रदायक मंत्र

श्रीहरि भगवान सदाशिव से कहते हैं : “हे रूद्र ! भगवान श्री गणेश का यह मंत्र ‘ॐ गं गणपतये नम: |’ धन और विद्या प्रदान करनेवाला है | १०० बार इसका जप करनेवाला प्राणी अन्य लोगों का प्रिय बन जाता है |”  (गरुड़ पुराण, आचार कांड, अध्याय:१८५ )

वह अन्य लोगों का प्रिय तो होगा किंतु ईश्वर का प्रिय होने के लिए जपे तो कितना अच्छा !

ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से

ऐसी सब्जी बन सकती है गम्भीर बीमारियों का कारण

आजकल ‘गेहूँ के आटे की चक्की (नमकीन बर्फी)’ की सब्जी का प्रचलन बढ़ रहा है | लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह सब्जी स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है ! इसको बहुत ही विकृत ढंग से बनाया जाता है | इसे बनाने की प्रक्रिया में काफी पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं और हानिकारक तत्त्व उत्पन्न होते हैं | यह सब्जी बनाने के लिए एक दिन पूर्व गूँथे हुए बासी आटे का प्रयोग होता है | कई लोग इसमें मावा भी मिलाते हैं | इस आटे में नमक, अजवायन, हींग मिलाये जाते हैं, फिर उसकी लोई बनाकर तेल अथवा घी में तला जाता है और फिर उसे दूध में डालते हैं | यह प्रक्रिया ‘संस्कार विरुद्ध’ है | फिर स्वाद के लिए अलग से ग्रेवी बना के इस मिश्रण को दोबारा पकाया जाता है, यह विधि ‘पाक विरुद्ध’ हैं ( ग्रेवी की हानियाँ जानने हेतु पढ़े ऋषिप्रसाद, सितम्बर २०१९, पृष्ठ ३२ )| इस प्रकार बने हुए संस्कार व पाक विरुद्ध, तामसी अन्न पदार्थ शरीर एवं मन-बुद्धि पर विपरीत परिणाम करते हैं और आगे चलकर शरीर को गम्भीर बीमारियों का घर बना देते हैं | अत: ऐसे हानिकारक पदार्थो से बचें-बचाये | ताजे, पौष्टिक, सात्त्विक व परम्परागत रीति से बने आहार का सेवन करें |

सुश्रुत संहिता के अनुसार ‘जो मनुष्य अपनी अंतरात्मा तथा शरीर के स्वास्थ्य का रक्षण नहीं करता हुआ रसनेन्द्रिय के स्वाद में लालायित होकर रस और वीर्य (शीतवीर्य, उष्णवीर्य) आदि से विरुद्ध पदार्थो का सेवन करता है, वह रोग, इन्द्रियों की दुर्बलता और अंत में मृत्यु को प्राप्त होता है |’

उपरोक्त प्रकार की सब्जी के बजाय बेसन के गट्टों को भापकर अविकृत तरीके से बनायी गयी सब्जी कई गुना हितकारी है |

ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से

पेट की सभी बीमारियाँ मिटाने हेतु....

लिंग पुराण (८५.१९३-१९४) में आता है कि एक मास तक प्रतिदिन १०८ बार ‘ॐ नम: शिवाय|’ मंत्र का जप करके सूर्यनारायण के सामने जल पीने से पेट की सभी बीमारियाँ दूर हो जाती है |


ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से

वसंत ऋतू में लाभदायी कफशामक ज्वार की धानी


वसंत ऋतू में होनेवाले कफ-प्रकोप को शांत करने के लिए ज्वार की धानी उत्तम है | तेल में हींग अथवा लहसुन व हल्दी का छौंक लगाकर ज्वार की धानी, भुने हुए चने व नमक मिला दें | पापड़ को सेंककर छोटे-छोटे टुकड़े करके इसमें डाल सकते हैं | यह स्वादिष्ट व पचने में बहुत ही हलकी होती है |

ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से    

आयु, बुद्धि, कांति व वाक्शक्ति वर्धक रसायन औषधि

बालकों के लिए वच (घोडावच) सर्वश्रेष्ठ मेधा (उत्तम, श्रेष्ठ मति) वर्धक व रसायन (टॉनिक) औषधि है | नवजात शिशु से लेकर १ वर्ष की आयु तक के बालक के सिर पर (तालू के स्थान पर) वच का १ से २ चुटकी चूर्ण थोड़े-से तेल के साथ हलके हाथों से मलना चाहिए | इससे उसकी वाक्शक्ति, बुद्धि, मेधा व स्मृति में वृद्धि होती है |

अग्निपुराण (२८३. ३ – ४) के अनुसार बालकों को दूध, घी अथवा तेल के साथ वच का सेवन करायें (१ से ८ वर्ष के बालकों को राई के दाने से लेकर चने की दाल जितनी मात्रा तथा ८ से १५ वर्ष के बालकों को चने की दाल से ले के मटर के दाने जितनी मात्रा में दें ) अथवा मुलहठी चूर्ण तथा शंखपुष्पी को दूध के साथ पीने को दें | इससे उनकी वाक्शक्ति एवं रूप-सम्पदा के साथ आयु, बुद्धि और कांति की भी वृद्धि होती है |

(वच व मुलहठी के चूर्ण आश्रम के आरोग्यकेंद्रो पर उपलब्ध हैं | )

ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से

स्मृति-बुद्धिवर्धक, विविध स्वास्थ्य-समस्याओं में लाभकारी उत्पाद

१] स्मृतिशक्ति बढ़ाने के लिए ‘शंखपुष्पी सिरप’ – ३ – ३ चम्मच सुबह-शाम खाली पेट लें |

२] भूख बढ़ाने हेतु : अ] घृतकुमारी रस – ४ – ४ चम्मच सुबह-शाम लें |  
                                  ब] लीवर टॉनिक टेबलेट – १ से २ गोली सुबह-शाम लें |

३] कब्ज की समस्या में ‘त्रिफला चूर्ण’ : एक से डेढ़ चम्मच (२ से ३ ग्राम) रात को सोते समय गर्म पानी से लें |

४] कृमि में ‘तुलसी अर्क’ : १ चम्मच सुबह खाली पेट गुनगुने पानी से लें |


उपरोक्त सभी उत्पादों हेतु प्राप्ति-स्थान : संत श्री आशारामजी आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्र |


ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से

विद्यार्थियों के उत्तम स्वास्थ्य तथा बुद्धि, एकाग्रता व स्मरणशक्ति बढ़ाने हेतु

१] अकेले में मानसिक कल्पनाओं से पागलपन का अंश आ गया अथवा आलस्य है, चिडचिडा स्वभाव है – यह सब दिमाग की कमजोरी है | ऐसे लोगों को क्या करना चाहिए ? हाथों के अँगूठे के पासवाली पहली ऊँगली का अग्रभाग अँगूठे के अग्रभाग के नीचे स्पर्श कराओ और शेष तीन उंगलियाँ सीधी रखों | ऐसे ज्ञान मुद्रा करो और शवासन में सीधे लेट जाओ | दाँतों से जीभ को थोडा-सा बाहर निकालकर रखें | तो बड़े-बड़े इंजेक्शनो से और दिमाग के स्पेशलिस्टों से उतना लाभ नहीं होगा जितना इस प्रकार ज्ञान मुद्रा करने से ही हो जायेगा | थोड़े पागलपन की शुरुआत हो तो वह नियंत्रित हो जायेगा | चिडचिडापन, आलस्य, क्रोध, स्मरणशक्ति की कमजोरी व चंचलता नियंत्रित हो जायेगी और एकाग्रता बढ़ेगी, स्नायुओं में शक्ति बढ़ेगी | इसके साथ मामरा बादाम मिश्रण की औषध खा लें तो कहना क्या !

२] ॐकार का उच्चारण करें , भ्रूमध्य में ॐकार को, सद्गुरु को देखें | इससे बुद्धि विलक्षण ढंग से बढती है |

३] १५-२० मि.ली. आँवला रस १ कप गुनगुने पानी में मिलाकर भोजन के मध्य में घूँट –घूँट भर के २१ दिन पियें | मस्तिष्क और ह्रदय बलवान हो जायेंगे | ह्रदयाघात का भय सदा के लिए चला जायेगा |

४] ७ ग्राम जौ रात को भिगो दो और सुबह सोंठ का जरा-सा चूर्ण मिला के चबा-चबा के खाओ | ऊपर से थोडा पानी पी लो | बुद्धि बढ़ेगी |

५] नीम के पत्ते अथवा नीम की २ निबौली कूट के उनका गुदा मक्खन में डाल के निगल लेना | इससे शरीर ह्रष्ट-पुष्ट होगा |

६] बच्चों को कफ हो तो १ से १० बूँद अदरक का रस और आधा चम्मच शहद मिला के चटा दें | बच्चे बढ़िया रहेंगे |

ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से

एकादशी व्रत क्यों ?

प्राय: डॉक्टर दो सप्ताह में एक दिन उपवास रखने के लिए कहते हैं | इसके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं | हमारे शरीर के प्राकृतिक चक्र से ‘मंडल’ नाम की एक चीज होती है | मंडल का मतलब है कि हर ४० से ४८ दिनों में शरीर एक विशेष चक्र से गुजरता है | हर चक्र में ३ दिन ( हर ११ से १४ दिन के बीच में एक दिन ) ऐसे होते हैं जिनमें शरीर को भोजन की आवश्यकता नहीं होती है | भूख का एहसास कम होता है | उस दिन बिना कुछ खायें भी रहा जा सकता है | मनुष्यों के साथ कुछ जानवर भी उपवास करते हैं | उस दिन को शरीर की सफाई का दिन भी कहते हैं |

हमारे ऋषि-मुनि तो हजारों वर्ष पहले से कहते आ रहे हैं और शास्त्रों में भी एकादशी के दिन उपवास करने का विधान दिया गया है | हिन्दी महीनों के अनुसार हर १४-१५ दिन में एक बार एकादशी आती है |

ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापूजी ने अपने सत्संगों में एकादशी की महत्ता बहुत सुंदर ढंग से बतायी है | पूज्यश्री कहते हैं : “ एकादशी व्रत की बड़ी भारी महिमा है | ५ कर्मेन्द्रियों, ५ ज्ञानेन्द्रियों और ११ वें मन को संयत करनेवाला व्रत एकादशी का व्रत है | यह शरीर के रोगों को तो मिटाता है, मन के दोषों को भी निवृत्त करता है, बुद्धि को ओजस्वी-तेजस्वी बनाता है, भगवद् भक्ति में पुष्टि, योग में सफलता एवं मनोवांछित फल देता है |

वात-पित्त-कफजनित दोष अथवा समय-असमय खाये हुए अन्न आदि के जो दोष १४ दिन में इकट्ठे होते हैं, १५वें दिन एकादशी का व्रत रखा तो वे दोष निवृत्त होते हैं | जो विपरीत रस या कच्चा रस नाड़ियों में पड़ा है,  जो बुढापे में मुसीबत देगा,  व्रत उसको नष्ट कर देता है | इससे शरीर जल्दी रोगी नहीं होगा | एकादशी को चावल खाने से स्वास्थ्य-हानि, पापराशि की वृद्धि कही गयी है |

इस दिन हो सके तो निर्जल रहें, नहीं तो थोडा जल पियें | ठंडा जल पीने से मंदाग्नि होती है, गुनगुना जल पियें, जिससे जठर की भूख नहीं बनी रहें और नाड़ियों में जो वात-पित्त-कफ के दोष जमा हैं, उन्हें खींचकर जठर उनको पचा दे, आरोग्य की रक्षा हो | जल से गुजारा न हो तो थोड़े-से फल खा लें और थोड़े-से फल से भी गुजारा न हो तो मोरधन आदि की खिचड़ी खा ली थोड़ी |

जो तीसों दिन खाना खाते हैं वे जल्दी बूढ़े होते हैं और बीमारियों के घर हो जाते हैं | हफ्ते में एक दिन व्रत रखें, नहीं तो १५ दिन में के बार एकादशी का व्रत अवश्य रखना ही चाहिए | लेकिन बूढ़े, बालक, गर्भिणी, प्रसुतिवाली महिला तथा जिनको मधुमेह है, जो अति कमजोर हैं वे व्रत न रखें तो चल जायेगा | अथवा कोई कमजोर है और व्रत रखता है तो फिर वह किशमिश खाये | यदि उपवास नहीं करना है तो चने और किशमिश या काली द्राक्ष खायें |

एकादशी के दिन कुछ बातों का ध्यान रखें :
१] बार-बार पानी नहीं पियें | 
२] वाणी या शरीर से हिंसा न करें | 
३] अपवित्रता का त्याग करें | 
४] असत्य भाषण न करें |  
५] पान न चबायें | 
६] दिन को नींद न करें | 
७] संसारी व्यवहार-मैथुन भूलकर भी न करें | 
८ ] जुआ और जुआरियों की बातों में न आयें | 
९] रात को शयन कम करें, थोडा जागरण करें ( रात्रि १२ बजे तक ) | 
१०] पतित, हलकी वार्ता करें – सुनें नहीं | 
११] दातुन न चबायें, मंजन कर लें |

सुबह संकल्प करें
एकादशी के दिन सुबह संकल्प करें कि ‘आज का दिन सारे पापों को जलाकर भस्म करनेवाला, आरोग्य के कण बढानेवाला, रोगों के परमाणुओं को नष्ट करनेवाला, नाड़ियों व मन की शुद्धि करनेवाला, बुद्धि में भगवदभक्ति भरनेवाला तथा ओज, बल और प्रसन्नता देनेवाला हो | देवी ! तेरे नाम का मैं व्रत करता हूँ |’ फिर नहा-धोकर भगवद पूजा, ध्यान, सुमिरन, जप करें |”

ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से

पंचमहाभूतों के तन्मात्रों की रचना

पंचमहाभूतों के सात्त्विक तन्मात्र से मन और ज्ञानेन्द्रियाँ बनती हैं, राजस तन्मात्र से कर्मेन्द्रियाँ और प्राण बनते हैं तथा तामस तन्मात्र से विषय और बाह्य पदार्थ बनते हैं |  

मन चार प्रसिद्ध हैं : मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार | इसीको अंत:करण-चतुष्टय कहते हैं |

ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच है : श्रोत (कान), त्वक (त्वचा), चक्षु (नेत्र), रसना (जिव्हा) और घ्राण (नासिका) |

कर्मेन्द्रियाँ पाँच है : वाक्, पाणि (हाथ), पाद (पैर), उपस्थ (जननेंद्रिय) और पायु (गुदा) |

प्राण दस है : इनमें पाँच मुख्य प्राण है – प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान |       

पाँच उपप्राण हैं  - नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त और धनंजय |


ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से