Ø दूसरों
का कल्याण करने के विचारमात्र से ह्रदय में एक सिंह के समान बल आ जाता है |
Ø अपने
में जो योग्यता है इसे बहुजनहिताय खर्च करो, आप सुयोग्य बन जायेंगे |
Ø सभी
समस्याओं का समाधान, सभी विफलताओं का अंत और सभी सफलताओं की कुंजी है भगवान में
विश्रांति पाना |
Ø ब्रह्म
का ज्ञान नहीं होगा, वास्तव में ज्ञान (परम तत्त्व स्वरूप ज्ञान-सत्ता ) ही ब्रह्म
है और अपने को ईश्वर नहीं मिलेगा, अपने-आप को जानना ही ईश्वर का मिलना है |
Ø आज
तक तुमने दुनिया का जो कुछ भी जाना है वह आत्मा-परमात्मा के ज्ञान (ब्रह्मज्ञान)
के आगे दो कौड़ी का भी नहीं हैं |
Ø सुख
बाहर से जो अंदर भरे वह ‘बेटाजी’ और सुख अपने-आप है, उसे जो बाहर दे दें वे
‘बापूजी’! सब बन जाओ न ‘बापूजी’ !
Ø कुटिलता,
चालाकी, झूट-कपट, बात बनाना – यह मौत की तरफ ले जाता है और जो जैसा है वैसा सहज
में रहना, बताना अर्थात सच्चाई यह ब्रह्मप्रद है | ज्यादा बकवास करने की क्या
जरूरत है ? ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है |
Ø जो
दूसरों को स्नेह, आनंद और निर्भीकता देता है वह अनंत गुना स्नेह और आदर पा लेता है
|
Ø किसी
भी परिस्थिति में दिखती हुई कठोरता व भयानकता से भयभयित नहीं होना चाहिए | कष्टों
के काले बादलों के पीछे पूर्ण प्रकाशमय एकरस परम सत्ता सूर्य की तरह सदा विद्यमान
है |
Ø जिसे
हम छोड़ना चाहें तो भी कभी छोड़ न सकें उसीका नाम है भगवान और जिसे रखना चाहो तो भी
सदा रख न सको उसीका नाम हा संसार !
Ø गिरते
हुए को उठाने से मनुष्य स्वयं के जीवन को उठा हुआ पाता है |
Ø धर्म
क्या है ? जो कर्म आत्मा की तरफ ले जाय वह धर्म है |
Ø कितनी
खुशखबर है कि शरीर का कुल-गोत्र चाहे कुछ भी हो, तुम्हारा तो कुल-गोत्र परमात्मा
है !
Ø सद्गुरु
के ह्रदय में जिसकी जगह बन गयी वह जितना धनवान है उतना जगत का कोई व्यक्ति धनवान
नहीं है | जिसके पास गुरुकृपारूपी धन है वह सम्राट से भी ज्यादा सुखी है | सत्संग
से जो उपलब्धियाँ होती हैं वे दुनिया के किसी लौकिक कर्म से नहीं होती !
Ø एक
साथ एक समय पर दो भाव नहीं रह सकते | दुःख के समय यदि दो मिनट भी भगवदभाव किया तो
वृत्ति भगवदाकार बन जायेगी और कितना भी बड़ा दुःख हो, उस समय नहीं रहेगा |
लोककल्याणसेतु
– मार्च २०२० से
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