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Sunday, March 22, 2020

एकादशी व्रत क्यों ?

प्राय: डॉक्टर दो सप्ताह में एक दिन उपवास रखने के लिए कहते हैं | इसके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं | हमारे शरीर के प्राकृतिक चक्र से ‘मंडल’ नाम की एक चीज होती है | मंडल का मतलब है कि हर ४० से ४८ दिनों में शरीर एक विशेष चक्र से गुजरता है | हर चक्र में ३ दिन ( हर ११ से १४ दिन के बीच में एक दिन ) ऐसे होते हैं जिनमें शरीर को भोजन की आवश्यकता नहीं होती है | भूख का एहसास कम होता है | उस दिन बिना कुछ खायें भी रहा जा सकता है | मनुष्यों के साथ कुछ जानवर भी उपवास करते हैं | उस दिन को शरीर की सफाई का दिन भी कहते हैं |

हमारे ऋषि-मुनि तो हजारों वर्ष पहले से कहते आ रहे हैं और शास्त्रों में भी एकादशी के दिन उपवास करने का विधान दिया गया है | हिन्दी महीनों के अनुसार हर १४-१५ दिन में एक बार एकादशी आती है |

ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापूजी ने अपने सत्संगों में एकादशी की महत्ता बहुत सुंदर ढंग से बतायी है | पूज्यश्री कहते हैं : “ एकादशी व्रत की बड़ी भारी महिमा है | ५ कर्मेन्द्रियों, ५ ज्ञानेन्द्रियों और ११ वें मन को संयत करनेवाला व्रत एकादशी का व्रत है | यह शरीर के रोगों को तो मिटाता है, मन के दोषों को भी निवृत्त करता है, बुद्धि को ओजस्वी-तेजस्वी बनाता है, भगवद् भक्ति में पुष्टि, योग में सफलता एवं मनोवांछित फल देता है |

वात-पित्त-कफजनित दोष अथवा समय-असमय खाये हुए अन्न आदि के जो दोष १४ दिन में इकट्ठे होते हैं, १५वें दिन एकादशी का व्रत रखा तो वे दोष निवृत्त होते हैं | जो विपरीत रस या कच्चा रस नाड़ियों में पड़ा है,  जो बुढापे में मुसीबत देगा,  व्रत उसको नष्ट कर देता है | इससे शरीर जल्दी रोगी नहीं होगा | एकादशी को चावल खाने से स्वास्थ्य-हानि, पापराशि की वृद्धि कही गयी है |

इस दिन हो सके तो निर्जल रहें, नहीं तो थोडा जल पियें | ठंडा जल पीने से मंदाग्नि होती है, गुनगुना जल पियें, जिससे जठर की भूख नहीं बनी रहें और नाड़ियों में जो वात-पित्त-कफ के दोष जमा हैं, उन्हें खींचकर जठर उनको पचा दे, आरोग्य की रक्षा हो | जल से गुजारा न हो तो थोड़े-से फल खा लें और थोड़े-से फल से भी गुजारा न हो तो मोरधन आदि की खिचड़ी खा ली थोड़ी |

जो तीसों दिन खाना खाते हैं वे जल्दी बूढ़े होते हैं और बीमारियों के घर हो जाते हैं | हफ्ते में एक दिन व्रत रखें, नहीं तो १५ दिन में के बार एकादशी का व्रत अवश्य रखना ही चाहिए | लेकिन बूढ़े, बालक, गर्भिणी, प्रसुतिवाली महिला तथा जिनको मधुमेह है, जो अति कमजोर हैं वे व्रत न रखें तो चल जायेगा | अथवा कोई कमजोर है और व्रत रखता है तो फिर वह किशमिश खाये | यदि उपवास नहीं करना है तो चने और किशमिश या काली द्राक्ष खायें |

एकादशी के दिन कुछ बातों का ध्यान रखें :
१] बार-बार पानी नहीं पियें | 
२] वाणी या शरीर से हिंसा न करें | 
३] अपवित्रता का त्याग करें | 
४] असत्य भाषण न करें |  
५] पान न चबायें | 
६] दिन को नींद न करें | 
७] संसारी व्यवहार-मैथुन भूलकर भी न करें | 
८ ] जुआ और जुआरियों की बातों में न आयें | 
९] रात को शयन कम करें, थोडा जागरण करें ( रात्रि १२ बजे तक ) | 
१०] पतित, हलकी वार्ता करें – सुनें नहीं | 
११] दातुन न चबायें, मंजन कर लें |

सुबह संकल्प करें
एकादशी के दिन सुबह संकल्प करें कि ‘आज का दिन सारे पापों को जलाकर भस्म करनेवाला, आरोग्य के कण बढानेवाला, रोगों के परमाणुओं को नष्ट करनेवाला, नाड़ियों व मन की शुद्धि करनेवाला, बुद्धि में भगवदभक्ति भरनेवाला तथा ओज, बल और प्रसन्नता देनेवाला हो | देवी ! तेरे नाम का मैं व्रत करता हूँ |’ फिर नहा-धोकर भगवद पूजा, ध्यान, सुमिरन, जप करें |”

ऋषिप्रसाद – मार्च २०२० से

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