शरद ऋतू को रोगों की
माँ कहते हैं – रोगाणां शारदी माता |
इस समय शरीर में जमा
जो पित्त है वह उभरेगा | गर्मी-संबंधी बीमारियाँ आयेंगी | इसमें मासिक धर्म अधिक
आने की सम्भावना होती है और जो घाव,
फोड़ें-फुंसी हुए हों वे जल्दी न मिटें यह ऐसा मौसम है | इन दिनों में आपको तला हुआ
नहीं खाना चाहिए, ज्यादा नहीं खाना चाहिए | मिर्च-मसाले को थोडा त्याग करना चाहिए
|
सुबह जल्दी स्नान कर
लेना चाहिए लेकिन भूलकर भी गर्भ पानी से नहीं नहाना | डॉक्टर ने कहा हो कि ‘गर्म
पानी से ही नहाओ ठंडे से नहीं नहाओ |’ तो ठंडे पानी की ठंडक थोड़ी कम करो, गर्म पानी शरीर को नुकसान करेगा | फ्रिज का ठंडा पानी पीना मना है और
एकदम गर्म पानी से स्नान करना भी स्वास्थ्य के लिए मना है |
इस ऋतू में यदि
चन्द्रमा की चाँदनी में विहार करते हैं, घी डला
हलवा, घुघुरी अर्थात गेहूँ आदि अन्न को रात में भिगो के सुबह
उबालकर उसमें अल्प मात्रा में गुड़ डाल के खाते है तो वह फायदा करेगा : फूल . चंदन, मुलतानी मिट्टी का लेप फायदा करेगा | कड़वा रस पित्तशामक है | नीम की
पत्तियाँ चबा के खाना | गिलोय आदि सेवन करने योग्य हैं | करेले का भी उपयोग करें, यह ज्वरनाशक है |
मीठे सेवफल सेवन
करने योग्य है | हरड चूर्ण में मिश्री डालकर रख ले, ३ ग्राम से लेकर ५ – ६ ग्राम
तक फाँकना | इससे आपका स्वास्थ्य बढ़िया रहेगा | पित्तशमन के लिय रात्री को २-४
ग्राम त्रिफला चूर्ण फाँक के गुनगुना पानी पियें |
ऋषिप्रसाद
– सितम्बर २०२० से
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