विश्रांति ध्यान का उत्तम तरीका है | जो ध्यान को कोशिश करते है उनको अहंकार आड़े आता है लेकिन जो प्रेम से चुप बैठ जाते हैं और नींद से, आलस्य से बचते है, बीच – बीच में हरिनाम लेते है उनका तो ध्यान अपने – आप स्वभाव बन जाता है |
जैसे गर्भिणी स्त्री को ध्यान करना नहीं पड़ता, ८-९ महीने
का गर्भ हो तो उसे रटना नहीं पड़ता कि ‘मैं गर्भिणी हूँ, गर्भ
की सहज स्वाभाविक स्मृति रहती है | ऐसे ही गर्भस्थ शिशु में और गर्भिणी में जो
मेरा चैतन्य हृषिकेश बैठा है उसका मैं ध्यान नहीं करता हूँ,
वह तो है ही हैं न ! उसमें विश्रांति पाता हूँ |
ऋषिप्रसाद
– सितम्बर २०२० से
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