वात्सल्यात्सर्वभूतेभ्यो वाच्या: श्रोत्रसुखा गिर: |
परितापोपघातश्च पारुष्यं चात्र गहिंतम ||
‘वाणी ऐसी बोलनी चाहिए जिसमें सब प्राणियों के प्रति स्नेह भरा हो तथा जो
सुनते समय कानों को सुखद जान पड़े | दूसरों को पीड़ा देना,
मारना और कटु वचन सुनना – ये सब निंदित कार्य है |’ - महाभारत,
शान्ति पर्व : १९१:१४
लोककल्याणसेतु – सितम्बर २०२० से
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