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Wednesday, September 30, 2020

वाणी ऐसी बोलें

 

वात्सल्यात्सर्वभूतेभ्यो वाच्या: श्रोत्रसुखा गिर: |

परितापोपघातश्च पारुष्यं चात्र गहिंतम ||

‘वाणी ऐसी बोलनी चाहिए जिसमें सब प्राणियों के प्रति स्नेह भरा हो तथा जो सुनते समय कानों को सुखद जान पड़े | दूसरों को पीड़ा देना, मारना और कटु वचन सुनना – ये सब निंदित कार्य है |’  - महाभारत, शान्ति पर्व : १९१:१४


लोककल्याणसेतु – सितम्बर २०२० से

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