अपने में जो कमजोरी
है, जो भी दोष है उनको इस मन्त्र द्वारा स्वाहा कर दो | दोषों को याद करके
मन्त्र के द्वारा मन-ही-मन उनकी आहुति दे डालो, स्वाहा कर दो |
मन्त्र :
ॐ अहं ‘तं’ जुहोमि
स्वाहा | ‘तं’ की जगह पर विकार या दोष का नाम लें |
जैसे : ॐ अहं ‘वृथावाणी’ जुहोमि स्वाहा |
ॐ अहं ‘कामविकार’ जुहोमि स्वाहा |
ॐ अहं ‘चिन्तादोश’ जुहोमि स्वाहा |
जो विकार तुम्हें
आकर्षित करता है उसका नाम लेकर मन में ऐसी भावना करो कि ‘मैं अमुक विकार को
भगवत्कृपा में स्वाहा कर रहा हूँ |’
इस प्रकार अपने
दोषों को नष्ट करने के लिए मानसिक यज्ञ अथवा वस्तुजन्य ( यज्ञ-सामग्रीसे ) यज्ञ
करो | इससे थोड़े ही समय में अंत:करण पवित्र होने लगेगा, चरित्र निर्मल होगा, बुद्धि फूल जैसी हलकी व निर्मल
हो जायेगी,निर्णय ऊँचे होंगे | इस थोड़े-से श्रम से ही बहुत लाभ होगा | आपका मन
निर्दोषता में प्रवेश पायेगा और ध्यान-भजन में बरकत आयेगी |
ऋषिप्रसाद
– सितम्बर २०२० से
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