ग्रीष्मकाल में सूर्य
की तीक्ष्ण किरणें शरीर में स्थित जलीय व स्निग्ध अंश को अवशोषित करती हैं, जिससे
रस, रक्त व शुक्र धातुएँ क्षीण होती हैं एवं वायु का संचय तथा कफ का क्षय होता है
| इससे शारीरिक बल घटता है तथा जठराग्नि व रोगप्रतिकारक क्षमता भी घटने लगती है |
सभी ऋतुओं में शरीर को सर्वाधिक दुर्बल बनानेवाली ऋतू है ग्रीष्म ऋतू | नीचे दी
गयी बातों का ध्यान रखने से ग्रीष्मजन्य दुष्प्रभावों से रक्षा व बल की वृद्धि
होगी |
१] हितकारी आहार : इस
ऋतू में मधुर रसयुक्त, शीतल, स्निग्ध अन्न व द्रव पदार्थों का सेवन करना हितकारी
है | चावल स्निग्ध, पचने में हल्के व शीतल होते हैं अत: इस ऋतू में चावल की खीर खाना
स्वास्थ्यप्रद है | यथासम्भव घी का उपयोग कर सकते हैं | दूध, मिश्री के साथ साठी
चावल का सेवन विशेष लाभकारी है |
सब्जियों में पेठा
(कुम्हड़ा),लौकी, गिल्की, भिंडी, परवल, तोरई आदि का सेवन पथ्यकर है | पुदीना, चौलाई
(लाल व हरी), पोई (पूतिका), धनिया व मीठे नीम का उपयोग करना हितकारी है | पुदीना
भोजन के पाचन में मदद करता है व लू से भी रक्षा करता है |
फलों में अंगूर, आम,
खरबूजा, तरबूज, केला, अनार आदि तथा अनाज व दालों में गेहूँ, मूँग, मसूर, मोठ,
लोबिया ले सकते हैं | कच्चे आम का पना तथा मिश्री, घी व शीतल जल मिलाया हुआ सत्तू,
गुलकंद आदि का उपयोग विशेषत: दोपहर के समय करना हितकारी है |
गुलाब, पलाश व
ब्राम्ही शरबत तथा विभिन्न पेय जैसे – लीची, संतरा, अनानास, मैंगो ओज व सेब पेय
तथा आँवला रस, आँवला चूर्ण आदि का उपयोग करना लाभकारी है |
२] अहितकारी आहार :
मिर्च, मसाले व अन्य तीखे पदार्थ एवं कच्ची इमली, कच्चा आम, अचार, दही, कढ़ी जैसे
खट्टे पदार्थ तथा अधिक नमकवाले पदार्थ एवं तले हुए व इडली,डोसा, डबलरोटी जैसे
खमीरीकृत पदार्थों का
सेवन न करें | बाजरा व उड़द का सेवन हानिकारक है | सहजन, बथुआ, करेला, बैंगन आदि
गर्म तासीरवाली सब्जियों का सेवन अल्प मात्रा में करें ; विशेषत: पित्त
प्रकृतिवाले व्यक्ति इनका सेवन न करें तो अच्छा है | मेथी व सुआ आदि का उपयोग न
करें |
३] जलपान : ग्रीष्म
में पानी भरपूर पीना चाहिए | ताँबें के पात्र में रखा हुआ पानी पीनेके लिए श्रेष्ठ
होता है परंतु ताँबा अति उष्ण-तीक्ष्ण गुणवाला होने से ग्रीष्म व शरद ऋतू में इसके
बर्तन का पानी पीना हितकर नहीं है | फ्रिज के पानी में जीवनशक्ति कम होती है | यह
वात-पित्त-कफ प्रकोपक होता है | फ्रिज का ठंडा पानी या कोल्ड ड्रिंक्स पीने से
अजीर्ण, मन्दाग्नि, अम्लपित्त, बवासीर तथा आमवात जैसी बीमारियाँ होती हैं |
पानी के लिए मिटटी के
घड़े का उपयोग करना स्वास्थ्यप्रद है | इसका जल शीतल एवं तृप्तिदायक होता है | घड़े
में देशी खस (गाँडर घास ), गुलाब अथवा मोगरे की पंखुड़ियाँ, थोडा भीमसेनी कपूर अथवा
शुद्ध सफेद चंदन डाल दें | इस पानी के उपयोग से शरीर की उष्णता एवं क्षारीयता
(तीखा व खारापन एवं रुक्षता की अधिकता ) दूर होकर शीतलता व बल की प्राप्ति होती है
|
४] विहार : ग्रीष्म
ऋतू में प्रात:भ्रमण विशेष लाभदायी है | सम्भव हो तो सुबह अथवा दोपहर के समय मस्तक
पर चंदन या मुलतानी मिट्टी लगा सकते हैं |
दोपहर की धूप में न घूमें | अधिक तंग, पसीना न सोखनेवाले व कृतिम वस्त्र न पहनें |
हलके, ढीले, पतले तथा सूती (विशेषत: सफेद रंग के ) वस्त्रों का उपयोग करें | रात
को चन्द्रमा की शीतलताप्रदायक चाँदनी में सोयें |
ग्रीष्मकाल में
स्वाभाविक ही शुक्र का क्षय होता है इसलिए इन दिनों में संसार-व्यवहार करने से
ओज-तेज का नाश हो के वार्धक्य के लक्षण जल्दी दिखाई देते हैं | अत: चुस्तता से
ब्रह्मचर्य का पालन करें | अधिक परिश्रम व व्यायाम न करें | अन्य ऋतुओं में दिन
में सोना निषिद्ध माना गया है परंतु गर्मियों में दिन में थोड़ी देर नींद लेने से
बल की रक्षा होती है |
धूप में से आने के
तुरंत बाद स्नान करना या सिर पर पानी डालना अथवा जलाशय आदि में डुबकी लगाना
हानिकारक है | थोडा रुक के, पसीना सूख जाने के बाद और शरीर का तापमान सामान्य होने
पर स्नान करें |
नींद गहरी व पर्याप्त
मात्रा में लें | इस हेतु रात्रि को जल्दी (९ बजे ) सोये | जिन्हें नींद ठीक से न
आती हो वे सोने के आधा – पौना घंटे पहले १५०-२०० मि.ली. दूध मिश्री मिलाकर ले सकते
हैं |
ऋषिप्रसाद
– मई २०१९ से