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Thursday, May 30, 2019

बद्धपद्मासन


इसमें पूरा शरीर हाथों व पाँवों द्वारा बँध जाने से यह ‘बद्धपद्मासन’ तथा गरिष्ठ भोजन जल्दी पचाने में सक्षम होने से ‘भस्मासन’ भी कहलाता है |

लाभ: पद्मासन से होनेवाले अनेक लाभ उस आसन से भी मिलते हैं | इसके नियमित अभ्यास से –

१] ह्रदय, फेफड़े, जठर, यकृत व मेरुदंड की दुर्बलता दूर होती है एवं हाथ, पैरों के तलवे, घुटने मजबूत होते हैं |
२] पेट की बीमारियों से सुरक्षा होती है | पेट के अधिकांश रोग जैसे अजीर्ण, अफरा, पेटदर्द तथा प्लीहा व यकृत के विकार दूर होते हैं |
३] हड्डियों का बुखार भी चला जाता है |
४] हर्निया में बहुत लाभ होता है |
५] स्त्रियों की गर्भाशय की बहुत-सी बीमारियाँ दूर होती हैं | संतानोत्पत्ति के बाद पेट पर जो निशान पड़ने लगते हैं वे दूर होते हैं |
६] जिन्हें शरीर के किसी अंग में पसीना न आता हो, जिसके कारण बीमारी का भय हो, उन्हें यह आसन जरुर करना चाहिए |
चित्र १

विधि : बायें पैर को उठाकर दायीं जंघा पर तथा दायें पैर को बायीं जंघा पर इस प्रकार लायें कि दोनों पैरों की एडियाँ नाभि के नीचे आपस में मिल जायें | फिर बायें हाथ को पीछे से ले जाकर बायें पैर के अँगूठे को पकड़ें तथा दायें हाथ को पीछे से ले जा के दायें पैर के अँगूठे को पकड़ें | मेरुदंडसहित सम्पूर्ण शरीर को सीधा रखते हुए स्थित रहें | श्वास दीर्घ, दृष्टि नासाग्र ( नासिका के अग्र भाग पर ) व ध्यान भी वही हो ( देखे चित्र १ ) | इस आसन को दूसरी विधि से भी किया जाता है, जिसमें उपरोक्त स्थिति के बाद सिर को जमीन से लगाकर यथासाध्य रोके रखना होता है (देखें चित्र २ ) |
चित्र २ 

इस आसन को पैर बदलकर भी करना चाहिए |

समय : सामान्यत: १ मिनट; क्रमश: बढ़ाकर १० मिनट तक कर सकते हैं |

लोककल्याणसेतु – मई २०१९ से
   

सर्वतोभाविनी मुद्रा




लाभ : 
१] इस मुद्रा के अभ्यास से शांति और आनंद की प्राप्ति होती है |
२] यह मन की कुभावनाओं या योग-साधना विरोधी भावनाओं को दूर कर मन को शुद्ध करने में सहायक है |

विधि : दोनों हाथों की उँगलियाँ कानों पर रखें | सबसे छोटी ऊँगली को अलग रखें | अंगूठों को नीचे की ओर लायें और ठोढ़ी- भाग में मिलायें | इससे उंगलियाँ कानों के रंध्रभागों में स्वयं आ जाती हैं | दोनों घुटनों की संधि में दोनों हाथों की कोहनियाँ अटका दें | सारे शरीर का भार कोहनियों पर डाल के नीचे का भाग स्थिर रखें | बीच-बीच में स्वेच्छापूर्वक कभी धीरे-धीरे तो कभी श्वास-प्रश्वास लेते रहें |

लोककल्याणसेतु –मई २०१९ से

पकी इमली के सेवन के लाभ


ग्रीष्म ऋतू में शरीर में क्षारधर्मिता की वृद्धि होती है | उसके संतुलन के लिए प्रकृति में स्वाभाविक रूप से तदनुकूल फल उत्पन्न होते हैं | ऐसा ही ग्रीष्मकालीन गुणकारी प्राकृतिक उपहार है इमली | भोजन से पहले इसे चूसकर खाने से हमे कई लाभ प्राप्त होते हैं |


१] मंदाग्नि के इस मौसम में इमली जठराग्नि को बढ़कर भूख खुलकर लगाती है | जी मिचलाना, उलटी, पेट में जलन आदि में राहत दिलाती है |

२] इमली की यह एक बड़ी खासियत है कि एक ओर जहाँ यह स्वयं आसानी से पचती है, वहीँ दूसरी ओर भोजन को बड़ी आसानी से पचाती है |

३] भोजन के प्रति अरुचि के इस मौसम में यह अपने रोचक गुण से भोजन में रूचि बढ़ा देती है | चूसकर खाने से दाँत, जीभ व मसूड़े स्वच्छ होकर मुँह की दुर्गंध भी दूर हो जाती है |

४] यह अपने प्यास-शमन के गुण से गर्मियों में बार-बार पानी पीने पर भी न बुझनेवाली प्यास का शमन करती है |

५] अपने सौम्य विरेचक गुण से यह पेट साफ रखने एवं कब्ज-निवारण में मदद करती है |

६] यह शारीरिक एवं मानसिक थकावट को दूर करती है |

७] यह कफ व वात शामक होती है |

मात्रा : आधा इंच का टुकड़ा से लेकर इमली तक अपनी प्रकृति एवं आवश्यकता के अनुसार भोजन से पहले चूस के खा सकते हैं |

विशेष : इसके सेवन से दाँत खट्टे हो जाते हों तो सेंधा नमक के साथ सेवन करें |

सावधानियाँ :
· त्वचा-विकार, जोड़ों का दर्द या मांसपेशियों में दर्द, सूजन, सर्दी-जुकाम, खाँसी, जलन,अम्लपित्त(hyperacidity), गलतुंडिका (tonsillitis) की सूजन में या दाँतों की कोई तकलीफ हो तो इमली का सेवन न करें |
·      इसे दाँतों से काटकर न खायें |
·    इमली उष्ण प्रकृति की होने से इसे अधिक मात्रा में व रोज न खायें | रविवार उष्ण होता है, अत: उस दिन नहीं लें |
·      कच्ची इमली न खायें |
लोककल्याणसेतु – मई २०१९ से


गुणकारी सौंफ के है ढेरों लाभ


मधुर होने से सौंफ को ‘मधुरिका’ भी कहते हैं | यह शीतल होने से पित्तशामक तथा स्निग्ध व मधुर होने से वातशामक है | यह सुंगधित, तीखी व कड़वी, पचने में हलकी तथा बल-वीर्यवर्धक, भूखवर्धक है | यह बुद्धि व दृष्टी शक्ति वर्धक है | यह रक्त की शुद्धि करती है एवं ह्रदय को बल देती है | सौंफ कफ को पिघलाकर बाहर निकालने में सहायक है एवं मल-मूत्र को साफ करनेवाली है |

जलन, खाँसी, दमा, उलटी, पेटदर्द, पेचिश, बवासीर, अजीर्ण, पेट फूलना, बुखार, कृमि, गुर्दों के रोग व प्लीहा वृद्धि आदि में सौंफ लाभदायी है |

प्रसूति के बाद सौंफ का सेवन करने से माता के दूध की शुद्धि व वृद्धि होती है, बच्चे को दूध पचाने में सहयोग होता है | योनि –संबंधी रोग, पीड़ायुक्त अथवा रुकावट के साथ मासिक स्त्राव आदि महिलाओं की समस्याओं में भी इसका सेवन लाभदायी है |

भूनकर खाने से यह अधिक लाभप्रद होती है | भोजन के बाद सौंफ के सेवन से ह्रदय व मस्तिष्क को बल मिलता है, नेत्रज्योति व बुद्धि बढ़ती है |

ध्यान दें : सौंफ का एक प्रकार, जिसे सोया (सोआ, शतपुष्पा) कहते हैं, वह उष्ण, तीक्ष्ण व पित्तकारक होती है |

सौंफ के औषधीय प्रयोग
१] जलन व प्यास की अधिकता : शरीर की आंतरिक जलन, हाथ-पैर व पेशाब में जलन, प्यास की अधिकता आदि में १ गिलास पानी में १-१ चम्मच सौंफ और पीसी मिश्री मिला के मिट्टी के बर्तन में रात को भिगो दें तथा सुबह मसलकर छान के पियें |

२] सूखी खाँसी : भुनी हुई सौंफ व मिश्री को समभाग मिला लें | आधा-आधा चम्मच मिश्रण सुबह-शाम लें |

३] स्वप्नदोष : ६ ग्राम सौंफ – चूर्ण दूध के साथ सुबह-शाम लें |

४] शरीरिक दुर्बलता : १०० ग्राम सौंफ और ५० ग्राम मिश्री महीन पीस के मिला लें | २५० मि.ली. गोदुग्ध में ६ ग्राम मिश्रण व १० ग्राम घी मिला के सुबह-शाम सेवन करें |

५]  मासिक धर्म की खराबी: २५० मि.ली, पानी में १० ग्राम सौंफ व २० ग्राम पुराना गुड़ डाल के पकायें | जब ६० मि.ली. पानी रह जाय तब छान के पी लें | यह प्रयोग दिन में १-२ बार करें | इससे पीड़ायुक्त अथवा रुकावट के साथ होनेवाले मासिक की तकलीफ में राहत मिलती है |

गर्मी की बीमारियों में लाभकारी
इस मौसम में कइयों की आँखे जलती हैं, कइयों की गर्मी के कारण रात को १२ बजे के आसपास नींद के खुली जाती है | ऐसे लोगों को ५०-५० ग्राम धनिया, सौंफ, आँवला चूर्ण व मिश्री मिला लेना चाहिए | फिर १०-१२ ग्राम मिश्रण को दोपहर १-२ बजे भिगो दें और शाम को ४-५ बजे मसल के पी लें, इससे लाभ होगा | मुँह में छाले होंगे तो वे भी ठीक हो जायेंगे |

पेशाब की जलन, अनिद्रा – सब दूर हो जायेंगे | और इस २०० ग्राम मिश्रण में २५ ग्राम हल्दी भी मिलाकर इस विधि से उपयोग करेंगे तो स्वप्नदोष, धातुक्षय, वीर्य की कमी में फायदा होगा | माताओं-देवियों को पानी पड़ने (श्वेतप्रदर) की तकलीफ होगी तो चली जायेगी | चेहरे पर भी निखार आयेगा और फोड़े-फुंसी होंगे तो वे भी दूर हो जायेंगे |

लोककल्याणसेतु – मई २०१९ से

Sunday, May 12, 2019

पुण्यदायी तिथियाँ



२६ मई   : रविवारी सप्तमी (सूर्योदय से सुबह ८:५० तक )
३० मई   : अपरा एकादशी ( व्रत से पुण्यप्राप्ति एवं बड़े-बड़े पातकों का नाश )
३ जून     : सोमवती अमावस्या (सूर्योदय से दोपहर ३:३२ तक) (तुलसी की १०८ परिक्रमा करने से दरिद्रता – नाश )
६ जून    : गुरुपुष्यामृत योग (रात्रि ८:२९ से ७ जून सूर्योदय तक )
९ जून    : रविवारी सप्तमी ( सूर्योदय से रात्रि १२:३७ तक)
१३ जून  : निर्जला एकादशी (व्रत से अधिक मास सहित २६ एकादशियों के व्रतों का फल; स्नान, दान, जप, होम आदि अक्षय फलदायी )
१५ जून : षडशीती संक्रांति (पुण्यकाल :शाम ५:३६ से सूर्यास्त तक ) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का ८६,००० गुना फल )
१९ जून : विद्यालाभ योग (गुजरात-महाराष्ट्र छोडकर भारतभर में)

ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

गर्मी के अनेक रोगों को दूर भगाये, आह्लाद व ठंडक दिलाये


सूर्य एवं चन्द्र की किरणों में रखकर पुष्ट किया हुआ यह गुलकंद मधुर व शीतल है तथा मन को आह्लाद और ह्रदय व मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाता है | यह अम्लपित्त, आंतरिक गर्मी, प्यास की अधिकता एवं हाथ-पैर, तलवों व आँखों में जलन, घामोरियाँ, मूत्रदाह, नाक व मल-मूत्र के मार्ग से होनेवाला रक्तस्राव, अधिक मासिक स्राव जैसी पित्तजनित व्याधियों में विशेष लाभदायी है | 

रक्ताल्पता, कब्ज आदि तकलीफों में भी इसका सेवन अत्यंत लाभकारी है | यह पेट के अल्सर व आँतों की सूजन को दूर करने में मदद करता है |

ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

इसका आपको सुफल प्राप्त होगा



कहीं जाते समय आपको यदि बछड़े को दूध पिलाती हुई देशी गाय मिले तो आप उसे कोई फल अथवा हरा चारा, गुड़, रोटी आदि खिलायें | 

यह बहुत शुभ संकेत हैं,  जिसका आपको सुफल प्राप्त होगा |

ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

विद्यालाभ के लिए मंत्र


‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनि सरस्वति मम जिव्हाग्रे वद वद ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नम: स्वाहा |’ 

यह मंत्र १९ जून २०१९ को दोपहर १:३० से रात्रि ११:४५ बजे तक |

अथवा 

१६ जुलाई २०१९ को रात्रि ८:४३ से रात्रि ११:४५ बजे तक 

१०८ बार जपें और फिर मंत्रजप के बाद उसी दिन रात्रि ११ से १२ बजे के बीच जीभ पर लाल चंदन से ‘ह्रीं’ मंत्र लिख दें | जिसकी जीभ पर यह मंत्र इस विधि से लिखा जायेगा उसे विद्यालाभ व अदभुत विद्वत्ता की प्राप्ति होगी |

ध्यान दें : गुजरात व महाराष्ट्र में यह योग केवल १६ जुलाई को ही है |

ऋषिप्रसाद –मई २०१९ से

सौभाग्य-रक्षा और सुख-शांति व समृद्धि बढ़ाने हेतु


माताएँ-बहनें रोज स्नान के बाद पार्वती माता का स्मरण करते-करते उत्तर दिशा की ओर मुख करके तिलक करें और पार्वती माता को इस मंत्र से वंदन करें :
 “ॐ ह्रीं गौर्यै नम: |” 

इससे माताओं –बहनों के सौभाग्य की रक्षा होगी तथा घर में सुख-शांति और समृद्धि बढ़ेगी |

ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

मल-मूत्र त्यागने संबंधी कुछ जरूरी बातें


क्या करें
१] प्रात: ५ से ७ बजे के बीच जीवनीशक्ति बड़ी आँतों में होती है अत: उस समय मल-त्याग हेतु जरुर जायें |
२] शौच के समय टोपी या कपड़े से सिर व कान ढककर रखने चाहिए | उस समय दाँत भींचकर रखने से दाँत मजबूत बनते हैं |
३] शौच व पेशाब के समय मुँह से श्वास लेने से श्वासनली में हानिकारक कीटाणु प्रवेश करते हैं अत: श्वास नाक से ही लें |
४] शौच के बाद स्नान तथा पेशाब के बाद हाथ-पैर व मुँह धोकर, कुल्ला करके शुद्धि करनी चाहिए | शौच के समय पहने हुए कपड़े भी धो लेने चाहिए |

क्या न करें
१] मल-मूत्र का वेग आने पर उसे रोकना नहीं चाहिए | मल-आवेग रोकने से सिरदर्द, पिंडलियों में ऐंठन, सर्दी-जुकाम, अफरा आदि तथा मूत्र-आवेग रोकने से मूत्राशय, गुदा, नाभि-स्थान, अंडकोष, शिश्नेन्द्रिय व सिर में दर्द आदि समस्याएँ होती हैं |
२] मल-मूत्र के वेग को रोककर या मल त्यागने के तुरंत बाद भोजन न लें |
३] वेग न आने पर जोर लगाकर मल-त्याग करने से बवासीर की समस्या हो सकती है | अत: मल-त्याग के समय जोर न लगाये |
४] पेशाब करने के तुरंत बाद पानी न पियें, न ही पानी पीने के तुरंत बाद पेशाब करें |

ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

कैसे करें ग्रीष्म ऋतू में स्वास्थ्य की रक्षा ?


ग्रीष्मकाल में सूर्य की तीक्ष्ण किरणें शरीर में स्थित जलीय व स्निग्ध अंश को अवशोषित करती हैं, जिससे रस, रक्त व शुक्र धातुएँ क्षीण होती हैं एवं वायु का संचय तथा कफ का क्षय होता है | इससे शारीरिक बल घटता है तथा जठराग्नि व रोगप्रतिकारक क्षमता भी घटने लगती है | सभी ऋतुओं में शरीर को सर्वाधिक दुर्बल बनानेवाली ऋतू है ग्रीष्म ऋतू | नीचे दी गयी बातों का ध्यान रखने से ग्रीष्मजन्य दुष्प्रभावों से रक्षा व बल की वृद्धि होगी |

१] हितकारी आहार : इस ऋतू में मधुर रसयुक्त, शीतल, स्निग्ध अन्न व द्रव पदार्थों का सेवन करना हितकारी है | चावल स्निग्ध, पचने में हल्के व शीतल होते हैं अत: इस ऋतू में चावल की खीर खाना स्वास्थ्यप्रद है | यथासम्भव घी का उपयोग कर सकते हैं | दूध, मिश्री के साथ साठी चावल का सेवन विशेष लाभकारी है |

सब्जियों में पेठा (कुम्हड़ा),लौकी, गिल्की, भिंडी, परवल, तोरई आदि का सेवन पथ्यकर है | पुदीना, चौलाई (लाल व हरी), पोई (पूतिका), धनिया व मीठे नीम का उपयोग करना हितकारी है | पुदीना भोजन के पाचन में मदद करता है व लू से भी रक्षा करता है |

फलों में अंगूर, आम, खरबूजा, तरबूज, केला, अनार आदि तथा अनाज व दालों में गेहूँ, मूँग, मसूर, मोठ, लोबिया ले सकते हैं | कच्चे आम का पना तथा मिश्री, घी व शीतल जल मिलाया हुआ सत्तू, गुलकंद आदि का उपयोग विशेषत: दोपहर के समय करना हितकारी है |

गुलाब, पलाश व ब्राम्ही शरबत तथा विभिन्न पेय जैसे – लीची, संतरा, अनानास, मैंगो ओज व सेब पेय तथा आँवला रस, आँवला चूर्ण आदि का उपयोग करना लाभकारी है |

२] अहितकारी आहार : मिर्च, मसाले व अन्य तीखे पदार्थ एवं कच्ची इमली, कच्चा आम, अचार, दही, कढ़ी जैसे खट्टे पदार्थ तथा अधिक नमकवाले पदार्थ एवं तले हुए व इडली,डोसा, डबलरोटी जैसे 
खमीरीकृत पदार्थों का सेवन न करें | बाजरा व उड़द का सेवन हानिकारक है | सहजन, बथुआ, करेला, बैंगन आदि गर्म तासीरवाली सब्जियों का सेवन अल्प मात्रा में करें ; विशेषत: पित्त प्रकृतिवाले व्यक्ति इनका सेवन न करें तो अच्छा है | मेथी व सुआ आदि का उपयोग न करें |


३] जलपान : ग्रीष्म में पानी भरपूर पीना चाहिए | ताँबें के पात्र में रखा हुआ पानी पीनेके लिए श्रेष्ठ होता है परंतु ताँबा अति उष्ण-तीक्ष्ण गुणवाला होने से ग्रीष्म व शरद ऋतू में इसके बर्तन का पानी पीना हितकर नहीं है | फ्रिज के पानी में जीवनशक्ति कम होती है | यह वात-पित्त-कफ प्रकोपक होता है | फ्रिज का ठंडा पानी या कोल्ड ड्रिंक्स पीने से अजीर्ण, मन्दाग्नि, अम्लपित्त, बवासीर तथा आमवात जैसी बीमारियाँ होती हैं |

पानी के लिए मिटटी के घड़े का उपयोग करना स्वास्थ्यप्रद है | इसका जल शीतल एवं तृप्तिदायक होता है | घड़े में देशी खस (गाँडर घास ), गुलाब अथवा मोगरे की पंखुड़ियाँ, थोडा भीमसेनी कपूर अथवा शुद्ध सफेद चंदन डाल दें | इस पानी के उपयोग से शरीर की उष्णता एवं क्षारीयता (तीखा व खारापन एवं रुक्षता की अधिकता ) दूर होकर शीतलता व बल की प्राप्ति होती है |

४] विहार : ग्रीष्म ऋतू में प्रात:भ्रमण विशेष लाभदायी है | सम्भव हो तो सुबह अथवा दोपहर के समय मस्तक पर चंदन या मुलतानी मिट्टी  लगा सकते हैं | दोपहर की धूप में न घूमें | अधिक तंग, पसीना न सोखनेवाले व कृतिम वस्त्र न पहनें | हलके, ढीले, पतले तथा सूती (विशेषत: सफेद रंग के ) वस्त्रों का उपयोग करें | रात को चन्द्रमा की शीतलताप्रदायक चाँदनी में सोयें |

ग्रीष्मकाल में स्वाभाविक ही शुक्र का क्षय होता है इसलिए इन दिनों में संसार-व्यवहार करने से ओज-तेज का नाश हो के वार्धक्य के लक्षण जल्दी दिखाई देते हैं | अत: चुस्तता से ब्रह्मचर्य का पालन करें | अधिक परिश्रम व व्यायाम न करें | अन्य ऋतुओं में दिन में सोना निषिद्ध माना गया है परंतु गर्मियों में दिन में थोड़ी देर नींद लेने से बल की रक्षा होती है |

धूप में से आने के तुरंत बाद स्नान करना या सिर पर पानी डालना अथवा जलाशय आदि में डुबकी लगाना हानिकारक है | थोडा रुक के, पसीना सूख जाने के बाद और शरीर का तापमान सामान्य होने पर स्नान करें |

नींद गहरी व पर्याप्त मात्रा में लें | इस हेतु रात्रि को जल्दी (९ बजे ) सोये | जिन्हें नींद ठीक से न आती हो वे सोने के आधा – पौना घंटे पहले १५०-२०० मि.ली. दूध मिश्री मिलाकर ले सकते हैं |

ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

यह महान सौंदर्य निखार सकते हो तुम !



जीरे को उबाल-छानकर उस पानी से चेहरा धोने से सौंदर्य बढ़ता है | रात को मसूर की डाल का आटा शहद में घोल के लगा दो तथा लेप कुछ समय बाद सूखने के पहले धो लो | इससे भी सौंदर्य निखरता है | लेकिन ये बहुत छोटी बातें हैं | 

तुम्हारा तो आत्म-सौंदर्य निखरे | सुख-दुःख में सम रहो | संसार को सपना समझो और सच्चिदानंद परमेश्वर को अपना आत्मा जानो | यह महान सौंदर्य निखार सकते हो तुम !

ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

दोषहर, सप्तधातुवर्धक व स्वास्थ्यप्रद फल : आँवला


आँवले को धात्रीफल भी कहा जाता है | यह त्रिदोषशामक, विशेषकर पित्त व कफ शामक है | आँवला शुक्रवर्धक, रुचिकर, भूखवर्धक, भोजन पचाने में सहायक, मल-मूत्र को साफ़ लानेवाला व शरीर की गर्मी को कम करनेवाला है | यह शरीर की रस, रक्त आदि सप्तधातुओं के दोषों को दूर करता है |

आँवले के सेवन से शरीर में धातुओं का निर्माण होता है , इस प्रकार यह युवावस्था को बनाये रखने में सहायक है | जिन्हें अधिक पसीना आता हो, मुँह में छाले हों, नकसीर फूटती हो या जलन हो उन्हें इसके रस अथवा चूर्ण का उपयोग करना चाहिए |

गुणकारी आँवले के कुछ औषधीय प्रयोग
१] जिन्हें भोजन में अरुचि हो या भूख कम लगती हो उन्हें भोजन से पहले २ चम्मच आँवला रस में १ चम्मच शहद मिलाकर लेना लाभकारी है |
२] नाक, मूत्रमार्ग, गुदामार्ग से रक्तस्राव, योनिमार्ग में जलन व अतिरिक्त रक्तस्राव, पेशाब में जलन, रक्तप्रदर, त्वचा-विकार आदि समस्याओं में आँवला रस अथवा आँवला चूर्ण दिन में दो बार लेना लाभदायी है |
३] आँवला रस में ४ चुटकी हल्दी मिलाकर दिन में दो बार लें | यह सभी प्रकार के प्रमेहों में श्रेष्ठ औषधि है |
४] अम्लपित्त, सिरदर्द, सिर चकराना, आँखों के सामने अँधेरा छाना, उलटी होना आदि में आँवला रस या चूर्ण मिश्री मिलाकर लेना फायदेमंद है |
५] रक्ताप्लता या पीलिया जैसे विकारों में आँवला चूर्ण का दिन में २ बार उपयोग करने से रस-रक्त का पोषण होकर इन विकारों में लाभ होता है |
६] आँवला एवं मिश्री का मिश्रण घी के साथ प्रतिदिन सुबह लेने से असमय बालों का सफेद होना व झड़ना बंद हो जाता है तथा सभी ज्ञानेन्द्रियों की कार्यक्षमता बढती है |

सेवन- मात्रा : आँवला चूर्ण – २ से ५ ग्राम, आँवला रस – १५ से २० मि.ली.

ध्यान दें : रविवार व शुक्रवार को आँवले का सेवन वर्जित है |

ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

गर्मी की बीमारियों की जड़ें काटनेवाला है पेठा


पका हुआ पेठा त्रिदोषशामक, विशेषत: पित्तशामक है | गर्मी से जो बीमारियाँ होती है यह उन सबकी जड़ें काटता है | 

पेठा थकान तो मिटाता है, साथ में नींद भी अच्छी लाता है | पका पेठा अमृत के समान है | पेठे के बीज भी बादाम के समान गुणकारी हैं |


ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

बुद्धि-स्मृतिवर्धक, शीतलताप्रद व ओज-तेजरक्षक ब्राम्ही


ब्राम्ही को सोमवल्ली (अमृत-लता) भी कहते हैं | यह शीतल, रसायन, वात-पित्तशामक और पाचन के पश्चात शरीर में मधुरता को बढानेवाली है | इससे बुद्धि और स्मृति से संबंधित मज्जा धातु का पोषण होता है, जिससे आगे शुक्र धातु निर्मित होती है | मज्जा धातु का संबंध स्वरयंत्र से होता है इसलिए जिन्हें अपना स्वर सुरीला बनाना हो उन्हें ब्राह्मी का सेवन करना विशेषरूप से लाभदायी है |



ग्रीष्म ऋतू में शरीरस्थ द्रव अंश का प्रमाण कम होने से पेशाब में जलन, पेशाब का संक्रमण, थकानआदि तकलीफें होती हैं | इनमें ब्राह्मी का शरबत लाभदायी है | 



त्रिदोषशामक होने से प्रमेह (मूत्र-संबंधी विकार) के सभी प्रकारों में ब्राह्मी घृत एवं मधुमेह को छोडकर अन्य प्रकार के प्रमेहों में ब्राह्मी शरबत का सेवन हितकारी है | 

(ब्राह्मी घृत आश्रम के आरोग्यकेंद्रो व शरबत सत्साहित्य सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है |)

ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

पीपल से मिलती आरोग्यता, सात्त्विकता व होती बुद्धिवृद्धि – भाग १


पीपल सात्त्विक वृक्ष है | पीपल देव की पूजा से लाभ होता है, उनकी सात्त्विक तरंगे मिलती हैं | हमें भी बचपन में पीपल की पूजा करते थे | इसके पत्तों को छूकर आनेवाली हवा चौबीसों घंटे आल्हाद और आरोग्य प्रदान करती है | 

बिना नहाये पीपल को स्पर्श करते हैं तो नहाने जितनी सात्त्विकता, सज्जनता चित्त में आ जाती है और नहा – धोकर अगर स्पर्श करते हैं तो दुगुनी आती है | बालकों के लिए पीपल का स्पर्श बुद्धिवर्धक है | बालकों को इसका विशेषरूप से लाभ लेना चाहिए | 

रविवार को पीपल का स्पर्श न करें | 

पीपल के वृक्ष से प्राप्त होनेवाले ऋण आयन, धन ऊर्जा स्वास्थ्यप्रद हैं | 

अत: पीपल के पेड़ खूब लगाओ | अगर पीपल घर या सोसायटी की पश्चिम दिशा में हो तो अनेक गुना लाभकारी है |

ऋषिप्रसाद – मई २०१९ से

करोड़ काम छोडकर भी जप-सुमिरन जरुर करना


कम-से-कम समय में साधकों की आधिभौतिक, आधिदैविक व आध्यात्मिक  उन्नति अधिक-से-अधिक व तेजी से हो इस हेतु पूज्य बापूजी नित्य नवीं प्रयोग व साधना की नयी-नयी युक्तियाँ बताते हैं | कुछ ऐसी तिथियाँ, पर्व व योग होते हैं जिनमें ध्यान, जप, सत्कर्म का हजारों,  लाखों, करोड़ों गुना ज्यादा फल होता है, उनके बारें में बताते हुए पूज्य बापूजी कहते हैनं : कुछ-कुछ ऐसे ग्रह, नक्षत्र, तिथियाँ होते हैं कि उनमें किये गये जप से बड़ा भारी प्रभाव पड़ता है | उनमें सारे काम छोडकर जप की कमाई करनी चाहिए | जो समय बरबाद करता है समय उसको भी बरबाद कर देता है | इसलिए समय का खूब सदुपयोग करना चाहिए |

सूर्यग्रहण में एक बार जपो तो १० लाख गुना और चंद्रग्रहण में १ लाख गुना फल होता है | और यदि गंगाजल पास में हो तो चंद्रग्रहण में १ करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में १० करोड़ गुना फल होता है |

भगवान वेदव्यासजी ने कहा है : “सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण हो और गंगा का किनारा हो और रुद्राक्ष की माला धारण की हो तो जप अनंत गुना फल देता हैं |”

जब भी सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण आदि आये तो आप गंगाजी का दर्शन कर लीजिये और ‘मेरे को अध्यात्म-तत्त्व की प्राप्ति हो | ॐ ॐ श्री परमात्मने नम: |’ ऐसा संकल्प करके परमात्मा के नाम का जप करें |

[पराशर स्मृति (१२.२७) के अनुसार ‘सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण में स्नान, दान, जप आदि सत्कर्मो में सारा (साधारण नदी, तालाब आदि का ) जल गंगा के जल के समान माना गया है |’ गंगा-किनारे से दूरस्थ क्षेत्रों में रहनेवाले लोग इस शास्त्रवचन का लाभ उठा सकते हैं |- संकलक]

मंगलवार की चतुर्थी, बुधवारी अष्टमी, रविवार की सप्तमी या सोमवती अमावस्या हो तो उस दिन किये गये जप-तप-दान का सूर्यग्रहण में किये गये जप-तप-दान जैसा (१० लाख गुना) फल होता है |

विष्णुपदी संक्रान्ति में अगर जप किया जाय तो उसका प्रभाव लाख गुना व षडशीति संक्रांति में ८६००० गुना होता है |

रविपुष्यामृत योग और गुरुपुष्यामृत योग मंत्रसिद्धि देनेवाले हैं |

उत्तरायण व दक्षिणायन के दिन जो भी सत्कर्म करते हैं वे कोटि-कोटि गुना अधिक व अक्षय पुण्यदायी होते हैं |

सूर्य- संक्रांति में यदि महाआर्द्रा नक्षत्र का संयोग हो तो उस समय १ बार ॐकार जपें तो १ करोड़ गुना और चतुर्दशी –आर्द्रा नक्षत्र योग में अक्षय फल होता है |

जन्माष्टमी, नरक चतुर्दशी या दीपावली, शिवरात्रि और होली – ये महारात्रियाँ हैं | इनमें किया गया जप-तप-ध्यान अनंत गुना फल देता है | अत: इनमें अहोभाव से भगवान् की स्मृति करें | इन रात्रियों में किया गया भगवत्सुमिरन पापों के समूह को नाश करके उत्तम विवेक देता हैं |

एकादशी का व्रत और उस दिन भगवद्ध्यान और जप करने से व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफल हो सकता हैं |

ऋषिप्रसाद - मई २०१९ से