लाभ
:
१] इस मुद्रा के अभ्यास से शांति और आनंद की प्राप्ति होती है |
२]
यह मन की कुभावनाओं या योग-साधना विरोधी भावनाओं को दूर कर मन को शुद्ध करने में
सहायक है |
विधि
: दोनों हाथों की उँगलियाँ कानों पर रखें | सबसे छोटी ऊँगली को अलग रखें | अंगूठों
को नीचे की ओर लायें और ठोढ़ी- भाग में मिलायें | इससे उंगलियाँ कानों के
रंध्रभागों में स्वयं आ जाती हैं | दोनों घुटनों की संधि में दोनों हाथों की
कोहनियाँ अटका दें | सारे शरीर का भार कोहनियों पर डाल के नीचे का भाग स्थिर रखें
| बीच-बीच में स्वेच्छापूर्वक कभी धीरे-धीरे तो कभी श्वास-प्रश्वास लेते रहें |
लोककल्याणसेतु
–मई २०१९ से
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