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Friday, December 23, 2016

निर्णय कब – कैसे लेना चाहिये ?

ऐसे ही काम जैसे होता है वैसे होता है, छूमन्तर से थोडा है | लोहे से लोहा कटता है, सोने से थोडा कटेगा ?

तो जो काम जैसे होता है, जैसे भगवान् कृष्ण चंद्रजी, उद्धव, अर्जुन, बलि अच्छे से अच्छे अपने जो अंतरविशेज्ञ थे, व्यवहार करते थे | कुछ भी निर्णय लेते थे तो सलाह-मसलत करके कुछ निर्णय लेते थे |

रामचन्द्रजी, हनुमान, जाबवंत आदि सचिवों से मिल-जुलके फिर निर्णय लेते थे | वैसे अंमलदार, सरकारी ऑफिसर, कलेक्टर भी अपने सहयोगी से २ – ४ दिन में मिलते है, बातचीत करते है और मिल-जुलकर निर्णय लेते है |

तो आपके जीवन में जब कुछ उथल-पाथल आये तो आपकी भले निर्णय शक्ति कितनी भी बढियाँ है लेकिन आपके कुटुम्ब में, परिवार में, आपके हितेषिओं से मिल-जुलकर निर्णय ले लो; आखरी निर्णय भले आप करो, शांत होकर, परमात्मा में डुबकी मारके, लेकिन मिल-जुलकर काम करने से सफलता आती है और विघ्नता कम होती है |


-         पूज्य बापूजी 

सर्दियों में उपयोगी पुष्टि व शक्तिवर्धक प्रयोग

१] २५ ग्राम देशी काले चने धोकर रात को १२५ मि.ली. पानी में भिगो दें | सुबह इन चनों को खूब चबा – चबाकर खायें, साथ में किशमिश भी खा सकते हैं | ऊपर से चने के पानी में दो चम्मच शहद मिलाकर पी जायें | शरीर बलवान व शक्तिशाली होता है तथा वीर्य पुष्ट होता है | ( किशमिश व असली शहद सभी संत श्री आशारामजी आश्रम व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |)

२] ५० ग्राम गोंद को घी में तल लें | ५० – ५० ग्राम अजवायन, काले तिल व मूँगफली के दानों को अलग – अलग भूनकर सभीको कूट लें | फिर इस मिश्रण को तथा किसे हुए ५० ग्राम सूखे नारियल (खोपरा) को ७५० ग्राम गुड़ में मिला के रख लें | सुबह खाली पेट ५० ग्राम मिश्रण खूब चबा – चबाकर खायें | इसके १ – २ घंटे बाद हलका सुपाच्य भोजन करें | इससे शरीर पुष्ट होता है, बल-वीर्य की वृद्धि होती है | वायुरोग, बहुमुत्रता व बच्चों की बिस्तर में पेशाब करने की समस्या में भी लाभ होता है |


स्रोत – लोककल्याण सेतु – दिसम्बर २०१६ से 

चिरौंजी के लाभकारी गुण

चिरौंजी या चारोली बल-वीर्यवर्धक, वात-पित्तनाशक, शीतल, ह्रदय के लिए हितकर एवं त्वचा-विकारों में लाभदायी है | यह मधुर, पौष्टिक तथा स्वादिष्ट होने से व्यंजनों, मिठाइयों, ठंडाई आदि में प्रयोग की जाती है |

चिरौंजी  ( चारोली ) के लाभ व प्रयोग

१] चिरौंजी के सेवन से शारीरिक शक्ति बढ़ती है, थकावट दूर होती है तथा मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है |

२] यह वीर्य को गाढ़ा बनाती है | शुक्राणुओं की कमी व नपुंसकता में इसे दूध के साथ लें |

३] यह ह्रदय को शक्ति देती है तथा दिल की घबराहट में अत्यंत लाभदायी है |

४] चिरौंजी शीतपित्त में अति लाभप्रद है | शीतपित्त के चकत्ते होने पर दिन में एक बार १५ – २० चिरौंजी के दानों को खूब चबा- चबाकर खायें तथा दूध में पीस के चकत्तों पर इसका लेप करें |

५] गले, छाती व पेशाब की जलन में चिरौंजी का सेवन लाभदायी है |

६] मूँह एवं जीभ के छाले होने पर इसके ३ – ४ दाने खूब देर तक चबायें तथा इसका रस मूँह में इधर – उधर घूमाते रहें, फिर निगल जायें | इस प्रकार दिन में ३ – ४ बार करें |

७] इसे दूध के साथ पेस्ट बना के लगाने से त्वचा चमकदार बनती है, झाँईयाँ  दूर होती हैं |

८] सिरदर्द व चक्कर आने में पिसी चिरौंजी दूध में उबालकर लें |

सावधानी : पचने में भारी एवं कब्जकारक होने से भूख की कमी व कब्ज के रोगियों को इसका सेवन अल्प मात्रा में करना चाहिए |


स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – दिसम्बर २०१६ से 

कर्मयोग दैनंदिनी (डायरी), वॉल कैलेंडर एवं पॉकेट डायरी वर्ष – २०१७

पूज्य बापूजी के सत्प्रेरणा व शांति प्रदायक एवं चित्ताकर्षक श्रीचित्रों तथा अनमोल आशीर्वचनों से सुसज्जित वर्ष २०१७ की कर्मयोग दैनंदिनी (डायरी), वॉल कैलेंडर एवं पॉकेट डायरी उपलब्ध हैं |

२५० से अधिक कैलेंडर या ५० से अधिक कर्मयोग दैनंदिनी का ऑर्डर देने पर आप अपना नाम, फर्म, दूकान आदि का नाम-पता छपवा सकते हैं | स्वयं के साथ अपने मित्रों, परिचितों को भी अवश्य लाभ दिलायें |

सम्पर्क : अहमदाबाद आश्रम मुख्यालय – (079) 39877732


स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – दिसम्बर २०१६ से 

इन तिथियों लाभ लेना न भूलें

२३ जनवरी  : षट्तिला एकादशी ( स्नान, उबटन, जलपान, भोजन, दान व होम में तिल का उपयोग पापों का नाश करता है | )

३१ जनवरी : मंगलवारी चतुर्थी ( सूर्योदय से १ फरवरी प्रात: ३-४१ तक )

३ फरवरी : अचला सप्तमी ( स्नान, व्रत करके गुरु का पूजन करनेवाला सम्पूर्ण माघ मास के स्नान का फल व वर्षभर के रविवार व्रत का पुण्य पा लेता है | यह सम्पूर्ण पापों को हरनेवाली व सुख-सौभाग्य की वृद्धि करनेवाली है | )


स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – दिसम्बर २०१६ से 

Thursday, December 15, 2016

तुलसी पूजन विधि व तुलसी – नामाष्टक

तुलसी पूजन विधि
२५ दिसम्बर को सुबह स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें | उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढायें :

महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी |
आधिव्याधि हरिर्नित्यं तुलसि त्वां नमोऽस्तु ते ||

फिर ‘तुलस्यै नम:’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें तथा वस्त्र व कुछ प्रसाद चढायें | दीपक जलाकर आरती करें और तुलसीजी की ७, ११, २१,५१ व १०८ परिक्रमा करें | उस शुद्ध वातावरण में शांत हो के भगवत्प्रार्थना एवं भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप करें | तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है |

तुलसी – पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें | तुलसी के समीप रात्रि १२ बजे तक जागरण कर भजन, कीर्तन, सत्संग-श्रवण व जप करके भगवद-विश्रांति पायें | तुलसी – नामाष्टक का पाठ भी पुण्यकारक है | तुलसी – पूजन अपने नजदीकी आश्रम या तुलसी वन में अथवा यथा–अनुकूल किसी भी पवित्र स्थान में कर सकते हैं |

तुलसी – नामाष्टक

वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनी विश्वपूजिताम् |
पुष्पसारां नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनीम् ||
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् |
य: पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ||

भगवान नारायण देवर्षि नारदजी से कहते हैं : “वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी – ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं | यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है | 
जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है | ( ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड :२२.३२-३३)


स्त्रोत -ऋषि प्रसाद – दिसम्बर २०१५ से 

Wednesday, December 14, 2016

तुलसी टेबलेट

यह पौष्टिक, शक्तिवर्धक व उत्कृष्ट वीर्यवर्धक है | यह स्निग्ध, त्रिदोषशामक, कृमिनाशक तथा ह्रदय, मूत्र व प्रजनन संस्थान एवं आँतों के लिए विशेष हितकारी है | 

इसके सेवन से भूख खुलकर लगती है, धातु की रक्षा होती है तथा रोगप्रतिकारक शक्ति, ओज – तेज व बल में वृद्धि होती है |


उपरोक्त उत्पाद आप अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते है |

स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से 

ब्राह्म रसायन

इसके सेवन से शरीर की दुर्बलता और दिमाग की कमजोरी दूर होकर आयु, बल, कान्ति तथा स्मरणशक्ति की वृद्धि होती है | 

खाँसी, दमा, क्षय, कब्जियत आदि रोग दूर हो शरीर में स्थायी ताकत पैदा होती है | यह उत्तम रसायन होने के कारण जीवनीशक्ति से परिपूर्ण है |


उपरोक्त उत्पाद आप अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते है |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से 

जीवन जीने की कला ( भाग -१ ) सचित्र

“जीवन उसीका है जो जीना जानता है....” – पूज्य बापूजी
इस सत्साहित्य में बतायी गयीं अधिकांश कुंजियाँ पूज्य बापूजी ने स्वयं अपने जीवन में आजमायी हैं | असंख्य भक्तों ने भी इनका प्रयोग करके अनगिनत लाभों का अनुभव किया है | 
इसमें आप पायेंगे :
१] कैसे बनायें नींद को परमात्मप्राप्ति की साधना ?
२] विघ्न – बाधाओं व दुर्घटनाओं से बचने का उपाय
३] कैसे बनायें पुरे दिन को मंगलमय ?
४] नया विलक्षण जीवन – बीमा कराने की युक्ति
५] शौच – विज्ञान
६] स्नान के द्वारा कैसे लें आध्यात्मिक व लौकिक लाभ
७] पूज्य बापूजी द्वारा बतायी गयी सुखमय जीवन की अनमोल युक्तियाँ
इनके साथ और भी कुछ .....

उपरोक्त सत्साहित्य आप अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते है |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से 

सुखमय जीवन के लिए कल्पवृक्ष – श्री आशारामायण

यह भक्ति बढ़ानेवाली, कर्मयोग की शिक्षा देनेवाली, ज्ञानप्रदायिनी, बिगड़े काज सँवारनेवाली पूज्य बापूजी के जीवनरूपी सागर की सारस्वरूप सुंदर छंदमय पद्म – रचना है | 

यह पतितपावनी, त्रिभुवनतारिणी गाथा आत्मिक शीतलता, भगवद् रस, संयम – सदाचार एवं एकाग्रता का लाभ दिलानेवाली, ईश्वरप्राप्ति के लिए उमंग, उत्साह व आत्मविश्वास बढ़ानेवाली है | 

इसका पाठ करने से बालक, वृद्ध, नर – नारी – सभी प्रेरणा पाते हैं | यह मनोकामनाओं की पूर्ति तो करती ही है, साथ ही मानव से महेश्वर तक की यात्रा शुरू कराती है | इस गाथा को प्रेम से गाइये और शांत, तन्मय होते जाइये |

उपरोक्त सत्साहित्य आप अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते है | 

स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से 

औषधीय गुणों से परिपूर्ण : पारिजात

पारिजात या हरसिंगार को देवलोक का वृक्ष कहा जाता है | कहते हैं कि समुद्र – मंथन के समय विभिन्न रत्नों के साथ – साथ यह वृक्ष भी प्रकट हुआ था | इसकी छाया में विश्राम करनेवाले का बुद्धिबल बढ़ता है | यह वृक्ष नकारात्मक ऊर्जा को भी हटाता है | इसके फूल अत्यंत सुकुमार व सुगंधित होते हैं जो दिमाग को शीतलता व शक्ति प्रदान करते हैं | हो सकते तो अपने घर के आसपास इस उपयोगी वृक्ष को लगाना चाहिए |
पारिजात ज्वर व कृमि नाशक, खाँसी – कफ को दूर करनेवाला, यकृत की कार्यशीलता को बढ़ानेवाला, पेट साफ़ करनेवाला तथा संधिवात, गठिया व चर्मरोगों में लाभदायक है |

औषधीय प्रयोग :

पुराना बुखार : इसके ७ - ८ कोमल पत्तों के रस में ५ – १० मि. ली. अदरक का रस व शहद मिलाकर सुबह – शाम लेने से पुराने बुखार में फायदा होता है |

बच्चों के पेट में कृमि : इसके ७ – ८ पत्तों के रस में थोडा – सा गुड़ मिला के पिलाने से कृमि मल के साथ बाहर आ जाते हैं या मर जाते हैं |

जलन व सुखी खाँसी : इसके पत्तों के रस में मिश्री मिला के पिलाने से पित्त के कारण होनेवाली जलन आदि विकार तथा शहद मिला के पिलाने से सुखी खाँसी मिटती हैं |

बुखार का अनुभूत प्रयोग : ३० – ३५ पत्तों के रस में शहद मिलाकर ३ दिन तक लेने से बुखार में लाभ होता है |

सायटिका व स्लिप्ड डिस्क : पारिजात के ६० – ७० ग्राम पत्ते साफ़ करके ३०० मि. ली. पानी में उबालें | २०० मि.ली. पानी शेष रहने पर छान के रख लें | २५ – ५० मि.ग्रा. केसर घोंटकर इस पानी में घोल दें | १०० मि.ली. सुबह – शाम पियें | १५ दिन तक पीने से सायटिका जड़ से चला जाता है | स्लिप्ड डिस्क में भी यह प्रयोग रामबाण उपाय है | वसंत ऋतू में ये पत्ते गुणहीन होते हैं अत: यह प्रयोग वसंत ऋतू में लाभ नहीं करता |

संधिवात, जोड़ों का दर्द, गठिया : पारिजात की ५ से ११ पत्तियाँ पीस के एक गिलास पानी में उबालें, आधा पानी शेष रहने पर सुबह खाली पेट ३ महीने तक लगातार लें | पुराने संधिवात, जोड़ों के दर्द, गठिया में यह प्रयोग अमृत की तरह लाभकारी है | अगर पूरी तरह ठीक नहीं हुआ तो १० – १५ दिन छोडकर पुन: ३ महीने तक करें | इस प्रयोग से अन्य कारणों से शरीर में होनेवाली पीड़ा में भी राहत मिलती है | पत्थकर आहार लें |

चिकनगुनिया का बुखार होने पर बुखार ठीक होने के बाद भी दर्द नहीं जाता | ऐसे में १० – १५ दिन तक पारिजात के पत्तों का यह काढ़ा बहुत उपयोगी है |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से 

शीत ऋतू में बलसंवर्धन के उपाय

(शीत ऋतू : २२ अक्टूबर से १७ फरवरी तक )
शीत ऋतू के ४ माह बलसंवर्धन का काल है | इस ऋतू में सेवन किये हुए खाद्य पदार्थों से पुरे वर्ष के लिए शरीर की स्वास्थ्य – रक्षा एवं बल का भंडार एकत्र होता है | अत: पौष्टिक खुराक के साथ आश्रम के सेवाकेंद्रों पर उपलब्ध खजूर, सौभाग्य शुंठी पाक, अश्वगंधा पाक, बल्य रसायन, च्यवनप्राश, पुष्टि टेबलेट आदि बल व पुष्टिवर्धक पाक व औषधियों का उपयोग कर शरीर को ह्रष्ट – पुष्ट व बलवान बना सकते हैं |

साथ ही निम्नलिखित बातों को भी ध्यान में रखना जरूरी है :

१] पाचनशक्ति को अच्छा तथा पेट व दिमाख साफ़ रखना : आहार – विचार अच्छा हो और अति करने की बुरी आदत न हो | जितना पच सके उतनी ही मात्रा में पौष्टिक पदार्थों का सेवन करें | एक गिलास पानी में दो चम्मच नींबू – रस व एक चम्मच अदरक का रस डाल के भोजन से आधा – एक घंटे पहले पीने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है, भूख खुलकर लगती है | इसमें १ चम्मच पुदीने का रस भी मिला सकते हैं | स्वाद के लिए थोडा – सा पुराना गुड़ डाल सकते हैं | शक्तिहीनता पैदा करनेवाले कर्मों ( शक्ति से ज्यादा परिश्रम या व्यायाम करना, अधिक भूख सहना, स्त्री- सहवास आदि ) से बचना जरूरी है | चाहे कितने भी पौष्टिक पदार्थ खायें लेकिन संयम न रखा जाय तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा | प्रयत्नपूर्वक सत्संग व सत्शास्त्रों के ज्ञान का चिंतन – मनन करें तथा सत्कार्यों में व्यस्त रहें | इससे मन हीन व कामुक विचारों से मुक्त रहेगा, वीर्य का संचय होगा, शरीर मजबूत बनेगा जिससे हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी |
२] आहार – विहार में लापरवाही न करना : अधिक उपवास करना, रुखा-सूखा आहार लेना आदि से बचें |
३] नियमित तेल – मालिश व व्यायाम : सूर्यस्नान, शुद्ध वायुसेवन हेतु भ्रमण, शरीर की तेल – मालिश व योगासन आदि नियमित करें |

बलसंवर्धक प्रयोग :
१] सिंघाड़े का आटा २० ग्राम या गेहूँ का रवा (थोडा दरदरा आटा) ३० ग्राम लेकर उसमें ५ ग्राम कौंच – चूर्ण मिला के घी में सेंकें | फिर उसमें दूध – मिश्री मिला के दो – तीन उबाल आने के बाद लें | रोज प्रात: यह बलवर्धक प्रयोग करें |
२] २५० - ५०० मि.ली. दूध में २.५ - ५ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण तथा १२५ मि.ली. पानी डालकर उबालें तथा पानी वाष्पीभूत हो जाने पर उतार लें | इसमें मिश्री डाल के प्रात:काल पीने से दुबलापन दूर होता है और शरीर ह्रष्ट – पुष्ट होता है | अगर पचा सकें तो इसमें एक चम्मच शुद्ध घी डालना सोने पर सुहागा जैसा काम हो जायेगा |
३] तरबूज के बीजों की गिरी तथा समभाग मिश्री कूट-पीसकर शीशी में भर लें | १० – १० ग्राम मिश्रण सुबह – शाम चबा – चबाकर खायें | ३ महीने लगातार सेवन करने पर शरीर पुष्ट, सुगठित सुडौल और सशक्त बनता है |
४] ५० ग्राम सिंघाड़े के आटे को शुद्ध घी में भूनकर हलवा बना के प्रतिदिन सुबह नाश्ते में ६० दिन तक सेवन करें | आधे – एक घंटे बाद गर्म पानी पियें |
५] दो खजूर लेकर गुठली निकाल के उनमें शुद्ध घी व एक – एक काली मिर्च भरें | इन्हें गुनगुने दूध के साथ एक महीने तक नियमित लें | इससे शरीर पुष्ट व बलवान बनेगा, शक्ति का संचार होगा |
६] ५ खजूर को अच्छी तरह धोकर गुठलियाँ निकाल लें | ३५० ग्राम दूध के साथ इनका नियमित सेवन करने से शरीर शक्तिशाली एवं मांसपेशियाँ मजबूत होंगी तथा वीर्य गाढ़ा होगा व शुक्राणुओं में वृद्धि होगी |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से 

इन तिथियों का लाभ लेना न भूलें

९ जनवरी : पुत्रदा एकादशी ( पुत्र की इच्छा से व्रत करनेवाला पुत्र पाकर स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है | सब पापों को हरनेवाले इस व्रत का माहात्म्य पढ़ने व सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है | )

११ जनवरी : चतुर्दशी – आर्द्रा नक्षत्र योग ( प्रात: ५-३३ से रात्रि ७-५३ तक ) ( ॐकार –जप अक्षय फलदायी )

१२ जनवरी : गुरुपुष्यामृत योग ( रात्रि १-२० से १३ जनवरी सूर्योदय तक अर्थात करीब ६ घंटे )

१४ जनवरी : मकर संक्रांति (पुण्यकाल : सूर्योदय से सूर्यास्त तक ) (मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से १०,००० गोदान का फल मिलता है | )


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से 

उत्तरायण हमें प्रेरित करता है जीवत्व से ब्रह्मत्व की ओर – मकर संक्रांति – १४ जनवरी

पूज्य बापूजी कहते हैं – उत्तरायण कहता है कि सूर्य जब इतना महान है, पृथ्वी से १३ लाख गुना बड़ा है, ऐसा सूर्य भी दक्षिण से उत्तर की ओर आ जाता है तो तुम भी भैया ! नारायण ! जीवत्व से ब्रह्मत्व की ओर आ जाओ तो तुम्हारे बाप क्या बिगड़ेगा ? तुम्हारे तो २१ कुल तर जायेंगे |

उत्तरायण पर्व की महत्ता :

उत्तरायण माने सूर्य का रथ उत्तर की तरफ चले | उत्तरायण के दिन किया हुआ सत्कर्म अनंत गुना हो जाता है | इस दिन भगवान शिवजी ने भी दान किया था | जिनके पास जो हो उसका इस दिन अगर सदुपयोग करें तो वे बहुत – बहुत अधिक लाभ पाते हैं | शिवजी के पास क्या है ? शिवजी के पास है धारणा, ध्यान, समाधि, आत्मज्ञान, आत्मध्यान | तो शिवजी ने इसी दिन प्रकट होकर दक्षिण भारत के ऋषियों पर आत्मोपदेश का अनुग्रह किया था |

सामाजिक महत्त्व :

इस पर्व को सामाजिक ढंग से देखें तो बड़े काम का पर्व है | किसान के घर नया गुड़, नये तिल आते हैं | उत्तरायण सर्दियों के दिनों में आता है तो शरीर को पौष्टिकता चाहिए | तिल के लड्डू खाने से मधुरता और स्निग्धता प्राप्त होती है तथा शरीर पुष्ट होता है | इसलिए इस दिन तिल – गुड़ के लड्डू (चीनी के बदले गुड़ गुणकारी है ) खाये – खिलाये, बाँटे जाते हैं | जिसके पास क्षमता नहीं है वह भी खा सके पर्व के निमित्त इसलिए बाँटने का रिवाज है | और बाँटने से परस्पर सामाजिक सौहार्द बढ़ता है |

तिळ गुळ घ्या गोड गोड बोला |

अर्थात ‘तिल – गुड़ लो और मीठा – मीठा बोलो |’ सिन्धी जगत में इस दिन मूली और गेहूँ की रोटी का चूरमा व तिल खाया – खिलाया जाता है अर्थात जीवन में कही शुष्कता आयी हो तो स्निग्धता आये, जीवन में कहीं कटुता आ गयी हो तो उसको दूर करने के लिए मिठास आये इसलिए उत्तरायण को स्नेह – सौहार्द वर्धक पर्व के रूप में भी देखा जाय तो उचित है |

आरोग्यता की दृष्टि से भी देखा जाय तो जिस – जिस ऋतू में जो – जो रोग आने की सम्भावना होती है, प्रकृति ने उस – उस ऋतू में उन रोगों के प्रतिकारक फल, अन्न, तिलहन आदि पैदा किये हैं | सर्दियाँ आती हैं तो शरीर में जो शुष्कता अथवा थोडा ठिठुरापन है या कमजोरी है तो उसे दूर करने हेतु तिल का पाक, मूँगफली, तिल आदि स्निग्ध पदार्थ इसी ऋतू में खाने का विधान है |

तिल के लड्डू देने- लेने, खाने से अपने को तो ठीक रहता है लेकिन एक देह के प्रति वृत्ति न जम जाय इसलिए कहीं दया करके अपना चित्त द्रवित करो तो कहीं से दया, आध्यात्मिक दया और आध्यात्मिक ओज पाने के लिए भी इन नश्वर वस्तुओं का आदान – प्रदान करके शाश्वत के द्वार तक पहुँचो ऐसी महापुरुषों की सुंदर व्यवस्था है |

सर्दी में सूर्य का ताप मधुर लगता है | शरीर को विटामिन ‘डी’ की भी जरूरत होती है, रोगप्रतिकारक शक्ति भी बढ़नी चाहिए | इन सबकी पूर्ति सूर्य से हो जाती है | अत: सूर्यनारायण की कोमल किरणों का फायदा उठायें |


 स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से 

चिंता – आसक्ति मिटाने की अनमोल युक्ति

पूज्य बापूजी कहतें हैं – भोजन में तुलसी के पत्ते डालने से वह भोजन आपका नहीं, ठाकुरजी का हो जाता है | तुलसी को माता समझते हो तो एक काम करो | आप सुबह उठो तो तुलसी के १५ – २५ पत्ते लेकर घर के ऊपर एक पत्ता रख दो कि ‘यह घर भगवान को अर्पण | मेरा नहीं, भगवान का है |’ कन्या के सिर पर तुलसी कर पत्ता रख दो, ‘यह मेरी बेटी नहीं है, आपकी है मेरे ठाकुरजी ! बेटी की मँगनी हो, शादी हो .... कब हो ? आपकी मर्जी ! आज से मैं निश्चिंत हुआ |’ बेटे की चिंता है तो उस पर भी तुलसी – पत्ता रख दो कि ‘ठाकुरजी ! मेरा बेटा नहीं, आपका है |’

जहाँ अपना स्वार्थ रहता है वहाँ भगवान बेपरवाह होते हैं | अपना स्वार्थ गया, भगवान का कर दिया तो भगवान सँभालते हैं | तुलसी का पत्ता लेकर जो बहुत अच्छी वस्तु ‘मेरी – मेरी’ लगती है, उसके ऊपर रख दो, ‘मेरा गहना नहीं, भगवान का है और शरीर भगवान का है ...’ ऐसा करके गहना पहनो | फिर तिजोरी के ऊपर तुलसी का पत्ता रख दो कि ‘मेरी नहीं है, ठाकुरजी की है |’ ;मेरा – मेरा’ मान के उसमें आसक्ति की तो मरने के बाद छिपकली, मच्छर, चूहा या और कोई शरीर लेकर उस घर में आना पड़ेगा इसलिए भगवद् – अर्पण करके अपने व कुटुम्ब के लिए, यथायोग्य सत्कृत्य के लिए उसका उपयोग करो पर उसमें आसक्ति नहीं करो | ‘मेरा – मेरा’ करके कितने ही चले गये, किसीके हाथ एक तृण गया नहीं | सच पूछो तो सब चीजें भगवान की हैं, यह तो हमारे मन की बेईमानी है कि उन्हें हम ‘हमारा – हमारा’ मानते हैं |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से 

तुलसी की जीवन में महत्ता व उपयोगिता

‘स्कंद पुराण’ (का.खं. :२१.६६) में आता है :
तुलसी यस्य भवने प्रत्यहं परिपूज्यते |
तद् गृहं नोपसर्पंन्ति कदाचित यमकिंकरा: ||
‘जिस घर में तुलसी – पौधा विराजित हो, लगाया गया हो, पूजित हो, उस घर में यमदूत कभी भी नहीं आ सकते |’

अर्थात जहाँ तुलसी – पौधा रोपा गया है, वहाँ बीमारियाँ नहीं हो सकतीं क्योंकि तुलसी – पौधा अपने आसपास के समस्त रोगाणुओं, विषाणुओं को नष्ट कर देता है एवं २४ घंटे शुद्ध हवा देता है | वहाँ निरोगता रहती है, साथ ही वहाँ सर्प, बिच्छू, कीड़े-मकोड़े आदि नहीं फटकते | इस प्रकार तीर्थ जैसा पावन वह स्थान सब प्रकार से सुरक्षित रहकर निवास-योग्य माना जाता है | वहाँ दीर्घायु प्राप्त होती है |

पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘तुलसी निर्दोष है | सुबह तुलसी के दर्शन करो | उसके आगे बैठे के लम्बे श्वास लो और छोड़ो, स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, दमा दूर रहेगा अथवा दमे की बीमारी की सम्भावना कम हो जायेगी | तुलसी को स्पर्श करके आती हुई हवा रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है और तमाम रोग व हानिकारक जीवाणुओं को दूर रखती है |’

तुलसी माहात्म्य

‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ (प्रकृति खण्ड : २१.३४ ) में भगवान नारायण कहते हैं : ‘हे वरानने ! तीनों लोकों में देव – पूजन के उपयोग में आनेवाले सभी पुष्पों और पत्रों में तुलसी प्रधान होगी |’

‘श्रीमद् देवी भागवत’ (९.२५.४२-४३ ) में भी आता है : ‘पुष्पों में किसीसे भी जिनकी तुलना नहीं है, जिनका महत्त्व वेदों में वर्णित है, जो सभी अवस्थाओं में सदा पवित्र बनी रहती है, जो तुलसी नास से प्रसिद्ध हैं, जो भगवान के लिए शिरोधार्य हैं, सबकी अभीष्ट हैं तथा जो सम्पूर्ण जगत को पवित्र करनेवाली है, उन जीवन्मुक्त, मुक्तिदायिनी तथा श्रीहरि की भक्ति प्रदान करनेवाली भगवती तुलसी की मैं उपासना करता हूँ |’

तुलसी रोपने तथा उसे दूध से सींचने पर स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है | तुलसी की मिट्टी का तिलक लगाने से तेजस्विता बढ़ती है |

पूज्यश्री कहते हैं : ‘तुलसी के पत्ते त्रिदोषनाशक है, इनका कोई दुष्प्रभाव नहीं है | ५ – ७ पत्ते रोज ले सकते हैं | तुलसी दिल – दिमाग को बहुत फायदा करती है | मानो ईश्वर की तरफ से आरोग्य की संजीवनी है “संजीवनी तुलसी” |

भोजन के पहले अथवा बाद में तुलसी – पत्ते लेते हो तो स्वास्थ्य के लिए, वायु व कफ शमन के लिए तुलसी औषधि का काम करती है | खड़े – खड़े या चलते – चलते तुलसी – पत्ते खा सकते हैं लेकिन और चीज खाना शास्त्र – विहित नहीं है, अपने हित में नहीं है |

दूध के साथ तुलसी वर्जित है, बाकी पानी, दही, भोजन आदि हर चीज के साथ तुलसी ले सकतें हैं | रविवार को तुलसी ताप उत्पन्न करती है, इसलिए रविवार को तुलसी न तोड़ें, न खायें | ७ दिन तक तुलसी – पत्ते बासी नहीं माने जाते |

विज्ञान का आविष्कार इस बात को स्पष्ट करने में सफल हुआ है कि तुलसी में विद्युत् – तत्त्व उपजाने और शरीर में विद्युत् – तत्त्व को सजग रखने का अद्भुत सामर्थ्य है | थोडा तुलसी – रस लेकर तेल की तरह थोड़ी मालिश करें तो विद्युत् – प्रवाह अच्छा चलेगा |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद, दिसम्बर २०१६ से   

प्राणायाम के लाभ

पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘बहुत-से ऐसे रोग होते हैं जिनमें कसरत करना सम्भव नहीं होता लेकिन प्राणायाम किये जा सकते हैं | प्राणायाम करने से –

१]  रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है और इस शक्ति से कई रोग्कारी जीवाणु मर जाते हैं |
२] विजातीय द्रव्य नष्ट हो जाते हैं और सजातीय द्रव्य बढ़ते हैं | इससे भी कई रोगों से बचाव हो जाता है |
३] वात – पित्त – कफ के दोषों का शमन होता है | अगर प्राण ठीक से चलने लगेंगे तो शरीर में वात-पित्त-कफ आदि के असंतुलन की जो गड़बड़ी है, वह ठीक होने लगेगी |

जैसे उद्योग या पुरुषार्थ करने से दरिद्रता नहीं रहती, वैसे ही भगवत्प्रीत्यर्थ प्राणायाम करने से पाप नहीं रहते | जैसे प्रयत्न करने से धन मिलता है, वैसे ही प्राणायाम करने से आंतरिक  सामर्थ्य, आंतरिक बल मिलता है, आरोग्य व प्राणबल, मनोबल और बुद्धिबल बढ़ता है |

जो लोग प्राणायाम करते हैं, गहरा श्वास लेते हैं उनके फेफड़ों के निष्क्रिय पड़े वायुकोशों को प्राणवायु मिलने लगती है और वे सक्रिय हो उठते हैं | फलत: शरीर की कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है तथा रक्त शुद्ध होता है | नाड़ियाँ भी शुद्ध रहती हैं, जिससे मन भी प्रसन्न रहता है | इसलिए सुबह, दोपहर और शाम को संध्या के समय प्राणायाम करने का विधान है | प्राणायाम से मन पवित्र व एकाग्र होता है, जिससे मनुष्य में बहुत बड़ा सामर्थ्य आता है |

यदि कोई व्यक्ति १०- १० प्राणायाम तीनों समय करे और शराब, मांस, बीड़ी या अन्य व्यसनों व फैशन में न पड़े तो ४० दिन में तो उसको अनेक अनुभव होने लगेंगे | शरीर का स्वास्थ्य व मन बदला हुआ मिलेगा, जठराग्नि प्रदीप्त होगी, आरोग्यता व प्रसन्नता बढ़ेगी और स्मरणशक्तिवाला प्राणायाम करने से स्मरणशक्ति में जादुई विकास होगा |

प्रात: ३ से ५ बजे तक ( ब्राह्ममुहूर्त के समय ) जीवनीशक्ति विशेषरूप से फेफड़ों में क्रियाशील रहती है | इस समय प्राणायाम करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता का खूब विकास होता है | शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है |

सावधानी : ज्यादा प्राणायाम करते रहेंगे तो पित्त चढ़ जायेगा और फिर सूर्यकिरणों के समक्ष खुले में बैठ के प्राणायाम किये तो भी पित्त चढ़ जायेगा | आपके स्वभाव में गुस्सा आ जाय, मूँह सूखने लग जाय तो समझो पित्त अधिक है | और इस कारण बार – बार ठंडा पानी पियोगे तो फिर जठराग्नि मंद हो जायेगी, जल्दी बुढापा आ जायेगा |  आम आदमी जो बेचारा ब्रह्मचर्य पाल नहीं पाता, देशी गाय के शुद्ध घी का उपयोग कर नही सकता, वह यदि अधिक प्राणायाम करे तो हानि होगी |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद, दिसम्बर २०१६ से   

आरोग्य व बुद्धिवर्धक सूर्यस्नान

स्वास्थ्य अगर कमजोर महसूस होता है तो आप नहा – धो के सुबह उगते सूर्य के सामने बैठ जायें, आँखे न लडायें और बदन थोडा खुला हो | आपकी नाभि पर सूर्य – किरणें पड़ें, उस समय आप लम्बा श्वास लेते हुए मन में ‘मैं सूर्य की आभा ( ओरा ), आरोग्यशक्ति को भीतर भर रहा हूँ |’ - ऐसा चिंतन करें, 

फिर श्वास को भीतर ही रोककर ‘ॐ सूर्याय नम: | ॐ आरोग्यप्रदायक नम: | ॐ रवये नम: | ॐ भानवे नम: |...’ आदि मंत्रों का जप करें और फिर धीरे – धीरे श्वास छोड़ें | इस प्रकार प्रतिदिन १०-१२ प्राणायम करने से रोगप्रतिकारक शक्ति, बुद्धिशक्ति बढ़ती है | 

इसके अलावा एक बीजमंत्र भी है जो ख़ास साधक को दिया जाता है, जिससे बुद्धि में निर्विकारिता और सात्त्विकता के चमत्कारिक लाभ होते हैं |


स्त्रोत - ऋषि प्रसाद, दिसम्बर २०१६ से