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Friday, December 23, 2016

निर्णय कब – कैसे लेना चाहिये ?

ऐसे ही काम जैसे होता है वैसे होता है, छूमन्तर से थोडा है | लोहे से लोहा कटता है, सोने से थोडा कटेगा ?

तो जो काम जैसे होता है, जैसे भगवान् कृष्ण चंद्रजी, उद्धव, अर्जुन, बलि अच्छे से अच्छे अपने जो अंतरविशेज्ञ थे, व्यवहार करते थे | कुछ भी निर्णय लेते थे तो सलाह-मसलत करके कुछ निर्णय लेते थे |

रामचन्द्रजी, हनुमान, जाबवंत आदि सचिवों से मिल-जुलके फिर निर्णय लेते थे | वैसे अंमलदार, सरकारी ऑफिसर, कलेक्टर भी अपने सहयोगी से २ – ४ दिन में मिलते है, बातचीत करते है और मिल-जुलकर निर्णय लेते है |

तो आपके जीवन में जब कुछ उथल-पाथल आये तो आपकी भले निर्णय शक्ति कितनी भी बढियाँ है लेकिन आपके कुटुम्ब में, परिवार में, आपके हितेषिओं से मिल-जुलकर निर्णय ले लो; आखरी निर्णय भले आप करो, शांत होकर, परमात्मा में डुबकी मारके, लेकिन मिल-जुलकर काम करने से सफलता आती है और विघ्नता कम होती है |


-         पूज्य बापूजी 

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