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Wednesday, December 14, 2016

उत्तरायण हमें प्रेरित करता है जीवत्व से ब्रह्मत्व की ओर – मकर संक्रांति – १४ जनवरी

पूज्य बापूजी कहते हैं – उत्तरायण कहता है कि सूर्य जब इतना महान है, पृथ्वी से १३ लाख गुना बड़ा है, ऐसा सूर्य भी दक्षिण से उत्तर की ओर आ जाता है तो तुम भी भैया ! नारायण ! जीवत्व से ब्रह्मत्व की ओर आ जाओ तो तुम्हारे बाप क्या बिगड़ेगा ? तुम्हारे तो २१ कुल तर जायेंगे |

उत्तरायण पर्व की महत्ता :

उत्तरायण माने सूर्य का रथ उत्तर की तरफ चले | उत्तरायण के दिन किया हुआ सत्कर्म अनंत गुना हो जाता है | इस दिन भगवान शिवजी ने भी दान किया था | जिनके पास जो हो उसका इस दिन अगर सदुपयोग करें तो वे बहुत – बहुत अधिक लाभ पाते हैं | शिवजी के पास क्या है ? शिवजी के पास है धारणा, ध्यान, समाधि, आत्मज्ञान, आत्मध्यान | तो शिवजी ने इसी दिन प्रकट होकर दक्षिण भारत के ऋषियों पर आत्मोपदेश का अनुग्रह किया था |

सामाजिक महत्त्व :

इस पर्व को सामाजिक ढंग से देखें तो बड़े काम का पर्व है | किसान के घर नया गुड़, नये तिल आते हैं | उत्तरायण सर्दियों के दिनों में आता है तो शरीर को पौष्टिकता चाहिए | तिल के लड्डू खाने से मधुरता और स्निग्धता प्राप्त होती है तथा शरीर पुष्ट होता है | इसलिए इस दिन तिल – गुड़ के लड्डू (चीनी के बदले गुड़ गुणकारी है ) खाये – खिलाये, बाँटे जाते हैं | जिसके पास क्षमता नहीं है वह भी खा सके पर्व के निमित्त इसलिए बाँटने का रिवाज है | और बाँटने से परस्पर सामाजिक सौहार्द बढ़ता है |

तिळ गुळ घ्या गोड गोड बोला |

अर्थात ‘तिल – गुड़ लो और मीठा – मीठा बोलो |’ सिन्धी जगत में इस दिन मूली और गेहूँ की रोटी का चूरमा व तिल खाया – खिलाया जाता है अर्थात जीवन में कही शुष्कता आयी हो तो स्निग्धता आये, जीवन में कहीं कटुता आ गयी हो तो उसको दूर करने के लिए मिठास आये इसलिए उत्तरायण को स्नेह – सौहार्द वर्धक पर्व के रूप में भी देखा जाय तो उचित है |

आरोग्यता की दृष्टि से भी देखा जाय तो जिस – जिस ऋतू में जो – जो रोग आने की सम्भावना होती है, प्रकृति ने उस – उस ऋतू में उन रोगों के प्रतिकारक फल, अन्न, तिलहन आदि पैदा किये हैं | सर्दियाँ आती हैं तो शरीर में जो शुष्कता अथवा थोडा ठिठुरापन है या कमजोरी है तो उसे दूर करने हेतु तिल का पाक, मूँगफली, तिल आदि स्निग्ध पदार्थ इसी ऋतू में खाने का विधान है |

तिल के लड्डू देने- लेने, खाने से अपने को तो ठीक रहता है लेकिन एक देह के प्रति वृत्ति न जम जाय इसलिए कहीं दया करके अपना चित्त द्रवित करो तो कहीं से दया, आध्यात्मिक दया और आध्यात्मिक ओज पाने के लिए भी इन नश्वर वस्तुओं का आदान – प्रदान करके शाश्वत के द्वार तक पहुँचो ऐसी महापुरुषों की सुंदर व्यवस्था है |

सर्दी में सूर्य का ताप मधुर लगता है | शरीर को विटामिन ‘डी’ की भी जरूरत होती है, रोगप्रतिकारक शक्ति भी बढ़नी चाहिए | इन सबकी पूर्ति सूर्य से हो जाती है | अत: सूर्यनारायण की कोमल किरणों का फायदा उठायें |


 स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से 

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