पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘बहुत-से ऐसे रोग होते हैं जिनमें कसरत करना सम्भव
नहीं होता लेकिन प्राणायाम किये जा सकते हैं | प्राणायाम करने से –
१] रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है और इस
शक्ति से कई रोग्कारी जीवाणु मर जाते हैं |
२] विजातीय द्रव्य नष्ट हो जाते हैं और सजातीय द्रव्य बढ़ते हैं | इससे भी कई
रोगों से बचाव हो जाता है |
३] वात – पित्त – कफ के दोषों का शमन होता है | अगर प्राण ठीक से चलने लगेंगे
तो शरीर में वात-पित्त-कफ आदि के असंतुलन की जो गड़बड़ी है, वह ठीक होने लगेगी |
जैसे उद्योग या पुरुषार्थ करने से दरिद्रता नहीं रहती, वैसे ही
भगवत्प्रीत्यर्थ प्राणायाम करने से पाप नहीं रहते | जैसे प्रयत्न करने से धन मिलता
है, वैसे ही प्राणायाम करने से आंतरिक
सामर्थ्य, आंतरिक बल मिलता है, आरोग्य व प्राणबल, मनोबल और बुद्धिबल बढ़ता
है |
जो लोग प्राणायाम करते हैं, गहरा श्वास लेते हैं उनके फेफड़ों के निष्क्रिय पड़े
वायुकोशों को प्राणवायु मिलने लगती है और वे सक्रिय हो उठते हैं | फलत: शरीर की
कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है तथा रक्त शुद्ध होता है | नाड़ियाँ भी शुद्ध रहती
हैं, जिससे मन भी प्रसन्न रहता है | इसलिए सुबह, दोपहर और शाम को संध्या के समय
प्राणायाम करने का विधान है | प्राणायाम से मन पवित्र व एकाग्र होता है, जिससे
मनुष्य में बहुत बड़ा सामर्थ्य आता है |
यदि कोई व्यक्ति १०- १० प्राणायाम तीनों समय करे और शराब, मांस, बीड़ी या अन्य
व्यसनों व फैशन में न पड़े तो ४० दिन में तो उसको अनेक अनुभव होने लगेंगे | शरीर का
स्वास्थ्य व मन बदला हुआ मिलेगा, जठराग्नि प्रदीप्त होगी, आरोग्यता व प्रसन्नता
बढ़ेगी और स्मरणशक्तिवाला प्राणायाम करने से स्मरणशक्ति में जादुई विकास होगा |
प्रात: ३ से ५ बजे तक ( ब्राह्ममुहूर्त के समय ) जीवनीशक्ति विशेषरूप से
फेफड़ों में क्रियाशील रहती है | इस समय प्राणायाम करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता
का खूब विकास होता है | शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से
शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है |
सावधानी : ज्यादा प्राणायाम करते रहेंगे तो पित्त चढ़ जायेगा और फिर
सूर्यकिरणों के समक्ष खुले में बैठ के प्राणायाम किये तो भी पित्त चढ़ जायेगा |
आपके स्वभाव में गुस्सा आ जाय, मूँह सूखने लग जाय तो समझो पित्त अधिक है | और इस
कारण बार – बार ठंडा पानी पियोगे तो फिर जठराग्नि मंद हो जायेगी, जल्दी बुढापा आ
जायेगा | आम आदमी जो बेचारा ब्रह्मचर्य
पाल नहीं पाता, देशी गाय के शुद्ध घी का उपयोग कर नही सकता, वह यदि अधिक प्राणायाम
करे तो हानि होगी |
स्त्रोत – ऋषिप्रसाद, दिसम्बर २०१६ से
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