तुलसी पूजन विधि
२५ दिसम्बर को सुबह स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को
जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें | उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढायें :
महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी |
आधिव्याधि हरिर्नित्यं तुलसि त्वां नमोऽस्तु ते ||
फिर ‘तुलस्यै नम:’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित
करें तथा वस्त्र व कुछ प्रसाद चढायें | दीपक जलाकर आरती करें और तुलसीजी की ७, ११,
२१,५१ व १०८ परिक्रमा करें | उस शुद्ध वातावरण में शांत हो के भगवत्प्रार्थना एवं
भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप करें | तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बल,
बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है |
तुलसी – पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें | तुलसी के समीप रात्रि १२ बजे तक
जागरण कर भजन, कीर्तन, सत्संग-श्रवण व जप करके भगवद-विश्रांति पायें | तुलसी –
नामाष्टक का पाठ भी पुण्यकारक है | तुलसी – पूजन अपने नजदीकी आश्रम या तुलसी वन
में अथवा यथा–अनुकूल किसी भी पवित्र स्थान में कर सकते हैं |
तुलसी – नामाष्टक
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनी विश्वपूजिताम् |
पुष्पसारां नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनीम् ||
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् |
य: पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ||
भगवान नारायण देवर्षि नारदजी से कहते हैं : “वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपावनी,
विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी – ये तुलसी देवी के आठ नाम
हैं | यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है |
जो पुरुष तुलसी की पूजा
करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है | (
ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड :२२.३२-३३)
स्त्रोत -ऋषि प्रसाद – दिसम्बर २०१५ से
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