(शीत ऋतू : २२ अक्टूबर से १७ फरवरी तक )
शीत ऋतू के ४ माह बलसंवर्धन का काल है | इस ऋतू में सेवन किये हुए खाद्य
पदार्थों से पुरे वर्ष के लिए शरीर की स्वास्थ्य – रक्षा एवं बल का भंडार एकत्र
होता है | अत: पौष्टिक खुराक के साथ आश्रम के सेवाकेंद्रों पर उपलब्ध खजूर,
सौभाग्य शुंठी पाक, अश्वगंधा पाक, बल्य रसायन, च्यवनप्राश, पुष्टि टेबलेट आदि बल व
पुष्टिवर्धक पाक व औषधियों का उपयोग कर शरीर को ह्रष्ट – पुष्ट व बलवान बना सकते
हैं |
साथ ही निम्नलिखित बातों को भी ध्यान में रखना जरूरी है :
१] पाचनशक्ति को अच्छा तथा पेट व दिमाख साफ़ रखना : आहार – विचार अच्छा हो और
अति करने की बुरी आदत न हो | जितना पच सके उतनी ही मात्रा में पौष्टिक पदार्थों का
सेवन करें | एक गिलास पानी में दो चम्मच नींबू – रस व एक चम्मच अदरक का रस डाल के
भोजन से आधा – एक घंटे पहले पीने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है, भूख खुलकर लगती है
| इसमें १ चम्मच पुदीने का रस भी मिला सकते हैं | स्वाद के लिए थोडा – सा पुराना
गुड़ डाल सकते हैं | शक्तिहीनता पैदा करनेवाले कर्मों ( शक्ति से ज्यादा परिश्रम या
व्यायाम करना, अधिक भूख सहना, स्त्री- सहवास आदि ) से बचना जरूरी है | चाहे कितने
भी पौष्टिक पदार्थ खायें लेकिन संयम न रखा जाय तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा |
प्रयत्नपूर्वक सत्संग व सत्शास्त्रों के ज्ञान का चिंतन – मनन करें तथा सत्कार्यों
में व्यस्त रहें | इससे मन हीन व कामुक विचारों से मुक्त रहेगा, वीर्य का संचय
होगा, शरीर मजबूत बनेगा जिससे हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी |
२] आहार – विहार में लापरवाही न करना : अधिक उपवास करना, रुखा-सूखा आहार लेना
आदि से बचें |
३] नियमित तेल – मालिश व व्यायाम : सूर्यस्नान, शुद्ध वायुसेवन हेतु भ्रमण,
शरीर की तेल – मालिश व योगासन आदि नियमित करें |
बलसंवर्धक प्रयोग :
१] सिंघाड़े का आटा २० ग्राम या गेहूँ का रवा (थोडा दरदरा आटा) ३० ग्राम लेकर
उसमें ५ ग्राम कौंच – चूर्ण मिला के घी में सेंकें | फिर उसमें दूध – मिश्री मिला
के दो – तीन उबाल आने के बाद लें | रोज प्रात: यह बलवर्धक प्रयोग करें |
२] २५० - ५०० मि.ली. दूध में २.५ - ५ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण तथा १२५ मि.ली.
पानी डालकर उबालें तथा पानी वाष्पीभूत हो जाने पर उतार लें | इसमें मिश्री डाल के
प्रात:काल पीने से दुबलापन दूर होता है और शरीर ह्रष्ट – पुष्ट होता है | अगर पचा
सकें तो इसमें एक चम्मच शुद्ध घी डालना सोने पर सुहागा जैसा काम हो जायेगा |
३] तरबूज के बीजों की गिरी तथा समभाग मिश्री कूट-पीसकर शीशी में भर लें | १० –
१० ग्राम मिश्रण सुबह – शाम चबा – चबाकर खायें | ३ महीने लगातार सेवन करने पर शरीर
पुष्ट, सुगठित सुडौल और सशक्त बनता है |
४] ५० ग्राम सिंघाड़े के आटे को शुद्ध घी में भूनकर हलवा बना के प्रतिदिन सुबह
नाश्ते में ६० दिन तक सेवन करें | आधे – एक घंटे बाद गर्म पानी पियें |
५] दो खजूर लेकर गुठली निकाल के उनमें शुद्ध घी व एक – एक काली मिर्च भरें |
इन्हें गुनगुने दूध के साथ एक महीने तक नियमित लें | इससे शरीर पुष्ट व बलवान
बनेगा, शक्ति का संचार होगा |
६] ५ खजूर को अच्छी तरह धोकर गुठलियाँ निकाल लें | ३५० ग्राम दूध के साथ इनका
नियमित सेवन करने से शरीर शक्तिशाली एवं मांसपेशियाँ मजबूत होंगी तथा वीर्य गाढ़ा
होगा व शुक्राणुओं में वृद्धि होगी |
स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से
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