पूज्य बापूजी कहतें हैं – भोजन में तुलसी के पत्ते डालने से वह भोजन आपका
नहीं, ठाकुरजी का हो जाता है | तुलसी को माता समझते हो तो एक काम करो | आप सुबह
उठो तो तुलसी के १५ – २५ पत्ते लेकर घर के ऊपर एक पत्ता रख दो कि ‘यह घर भगवान को
अर्पण | मेरा नहीं, भगवान का है |’ कन्या के सिर पर तुलसी कर पत्ता रख दो, ‘यह
मेरी बेटी नहीं है, आपकी है मेरे ठाकुरजी ! बेटी की मँगनी हो, शादी हो .... कब हो
? आपकी मर्जी ! आज से मैं निश्चिंत हुआ |’ बेटे की चिंता है तो उस पर भी तुलसी –
पत्ता रख दो कि ‘ठाकुरजी ! मेरा बेटा नहीं, आपका है |’
जहाँ अपना स्वार्थ रहता है वहाँ भगवान बेपरवाह होते हैं | अपना स्वार्थ गया,
भगवान का कर दिया तो भगवान सँभालते हैं | तुलसी का पत्ता लेकर जो बहुत अच्छी वस्तु
‘मेरी – मेरी’ लगती है, उसके ऊपर रख दो, ‘मेरा गहना नहीं, भगवान का है और शरीर
भगवान का है ...’ ऐसा करके गहना पहनो | फिर तिजोरी के ऊपर तुलसी का पत्ता रख दो कि
‘मेरी नहीं है, ठाकुरजी की है |’ ;मेरा – मेरा’ मान के उसमें आसक्ति की तो मरने के
बाद छिपकली, मच्छर, चूहा या और कोई शरीर लेकर उस घर में आना पड़ेगा इसलिए भगवद् –
अर्पण करके अपने व कुटुम्ब के लिए, यथायोग्य सत्कृत्य के लिए उसका उपयोग करो पर
उसमें आसक्ति नहीं करो | ‘मेरा – मेरा’ करके कितने ही चले गये, किसीके हाथ एक तृण
गया नहीं | सच पूछो तो सब चीजें भगवान की हैं, यह तो हमारे मन की बेईमानी है कि
उन्हें हम ‘हमारा – हमारा’ मानते हैं |
स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से
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