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Friday, May 1, 2020

विनाशक योग में भी अविनाशी परमात्मयोग पायें


( सूर्यग्रहण – २१ जून २०२०, रविवार )
२१ जून रविवार को होनेवाला सूर्यग्रहण सम्पूर्ण भारतसहित एशिया, अफ्रीका के अधिकांश भाग, दक्षिण-पूर्वी यूरोप तथा ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी भाग में दिखेगा |

यह ग्रहण उत्तर भारत के कुछ भागों में कंकणाकृति और अधिकांश भारत में खंडग्रास दिखेगा | गत वर्ष २६ दिसम्बर के सूर्यग्रहण के पूर्व ‘ऋषिप्रसाद’ में उस ग्रहण संबंधी जो भविष्यवाणी प्रकाशित की गयी थी कि ‘इससे भारी उलटफेर होगा....’ उसकी सत्यता उसके पश्चात काल में और अभी भी देखने को मिल रही है | इस वर्ष २१ जून को होनेवाला सूर्यग्रहण भी भारी विनाशक योग का सर्जन कर रहा है | यह देश व दुनिया के लिए महादुःखदायी है | इस योग से पृथ्वी का भार कम होगा | पूज्य बापूजी ने वर्षो पूर्व सत्संग में संकेत कर दिया था कि “आसुरी वृत्ति की सफाई का समय आ रहा है, दैवी वृत्ति की नीवें पड़ रही है | कुछ समय बाद सफाई होगी, फाइटर भागेंगे, उडेंगें |”   

पूज्य बापूजी ने कई बार सत्संगों में कहा है कि जो ग्रहणकाल में उसके नियम-पालन कर जप-साधना करते हैं, वे न केवल ग्रहण के दुष्प्रभावों से बच जाते हैं बल्कि महान पुण्यलाभ भी प्राप्त करते हैं | इस बार का ग्रहण का योग जप-साधना के लिए अधिक उपयोगी है | 

महर्षि वेदव्यासजी कहते हैं : “रविवार को सूर्यग्रहण अथवा सोमवार को चंद्रग्रहण हो तो ‘चूडामणि योग’ होता है | अन्य वारों में सूर्यग्रहण में जो पुण्य होता है उससे करोड़ गुना पुण्य ‘चूडामणि योग’ में कहा गया हैं |” (निर्णयसिंधु)

ग्रहण से होनेवाले दुष्प्रभावों से मानवसमाज को ऐसे विपरीत या विनाशकारी योगों में क्या करने से बचना चाहिए और क्या करना चाहिए इस बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है :
“सूर्यग्रहण में ४ प्रहर (१२ घंटे) और चंद्रग्रहण में ३ प्रहर ( ९ घंटे ) पहले से सूतक माना जाता है | इस समय सशक्त व्यक्तियों को भोजन छोड़ देना चाहिए | इससे आयु, आरोग्य, बुद्धि की विलक्षणता बनी रहेगी | लेकिन जो बालक, बूढ़े, बीमार व गर्भवती स्त्रियाँ हैं वे ग्रहण से १ से १.५ प्रहर (३ से ४.५ घंटे )पहले तक चुपचाप कुछ खा-पी लें तो चल सकता हैं | बाद में खाने से स्वास्थ्य के लिए बड़ी हानि होती है | गर्भवती महिलाओं को तो ग्रहण के समय ख़ास सावधान रहना चाहिए |"

शुभ-अशुभ की स्थिरता का विज्ञान

चन्द्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आती है तब चंद्रग्रहण तथा पृथ्वी और सूर्य के बीच चन्द्र आता है तब सूर्यग्रहण होता है | चन्द्रग्रहण पूर्णिमा को और सूर्यग्रहण अमावस्या को ही होता है |

ग्रहण के समय सूर्य या चन्द्र की किरणों का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ना थोड़ी देर के लिए बंद हो जाता है | इसका प्रभाव अग्नि-सोम द्वारा संचालित प्राणी-जगत पर भी पड़ता है और सूर्य-चन्द्र की किरणों द्वारा जो सूक्ष्म तत्त्वों में हलचल होती रहती है वह भी उस समय बंद हो जाती है | हमारे जो सूक्ष्म, सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतम अवयव हैं उनमें भी हिलचाल नहीवत हो जाती है | यही कारण है कि ग्रहण के समय कोई भी गंदा भाव या गंदा कर्म होता है तो न करें, साथ ही ग्रहण से थोड़ी देर पहले से ही अच्छे विचार और अच्छे कर्म में लग जायें ताकि अच्छाई गहरी, स्थिर हो जाय |

खाद्य पदार्थ ऐसे बचायें दूषित होने से

ग्रहण के पहले का बनाया हुआ अन्न ग्रहण के बाद त्याग देना चाहिए लेकिन ग्रहण से पूर्व रखा हुआ दही या उबाला हुआ दूध, छाछ, घी या तेल – इनमें से किसीमें सिद्ध किया हुआ अर्थात ठीक से पकाया हुआ अन्न (पूड़ी आदि) ग्रहण के बाद भी सेवनीय है परंतु ग्रहण के पूर्व इनमें कुशा डालना जरूरी हैं |

सूतक से पहले पानी में कुशा, तिल या तुलसी-पत्र डाल के रखें ताकि सूतक काल में उसे उपयोग में ला सकें | ग्रहणकाल में रखे गये पानी का उपयोग ग्रहण के बाद नहीं करना चाहिए किंतु जिन्हें यह सम्भव न हो वे उपरोक्तानुसार कुशा आदि डालकर रखे पानी को उपयोग में ला सकते हैं, ऐसा कुछ जानकारों का कहना है |

ग्रहण का कुप्रभाव वस्तुओं पर न पड़े इसलिए मुख्यरूप से कुशा का उपयोग होता है | इससे पदार्थ अपवित्र होने से बचते हैं | कुशा नहीं है तो तिल डालें | इससे भी वस्तुओं पर सूक्ष्म-सूक्ष्मतम आभाओं का प्रभाव कुंठित हो जाता है | तुलसी के पत्ते डालने से भी यह लाभ मिलता है किंतु दूध या दूध से बने व्यंजनों में तिल या तुलसी न डालें |

ग्रहणकाल में भूलकर भी न करें

ग्रहण में अगर सावधानी रही तो थोड़े ही समय में बहुत पुण्यमय, सुखमय जीवन होगा | अगर असावधानी हुई तो थोड़ी ही असावधानी से बड़े दंडित हो जायेंगे, दुःखी हो जायेंगे |
ग्रहणकाल में –
१] भोजन करनेवाला अधोगति को जाता है |
२] जो नींद करता है उसको रोग जरुर पकड़ेगा, उसकी रोगप्रतिकारकता का गला घुटेगा |
३] जो पेशाब करता है उसके घर में दरिद्रता आती है | जो शौच जाता है उसको कृमिरोग होता है तथा कीट की योनि में जाना पड़ता है |
४] जो संसार–व्यवहार (सम्भोग) करते है उनको सूअर की योनि में जाना पड़ता है |
५] तेल-मालिश करने या उबटन लगाने से कुष्ठरोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है |
६] ठगाई करनेवाला सर्पयोनि में जाता है | चोरी करनेवाले को दरिद्रता पकड़ लेती है |
७] जीव-जंतु या किसी प्राणी की हत्या करनेवाले को नारकीय योनियों में जाना पड़ता है |
८] पत्ते, तिनके, लकड़ी, फूल आदि न तोड़े | दंतधावन,अभी ब्रश समझ लो, न करें |
९] चिंता करते हैं तो बुद्धिनाश होता है |

ये करने से सँवरेगा इहलोक-परलोक

१] सूर्यग्रहण के समय रुद्राक्ष-माला धारण करने से पाप नष्ट हो जाते हैं परंतु फैक्ट्रियों में बननेवाले नकली रुद्राक्ष नहीं, असली रुद्राक्ष हों |
२] मंत्रदीक्षा में मिले मंत्र का ग्रहण के समय जप करने से उसकी सिद्धि हो जाती है |
४] महर्षि वेदव्यासजी कहते हैं :”चन्द्रग्रहण के समय किया हुआ जप लाख गुना और सूर्यग्रहण के समय किया हुआ जप १० लाख गुना फलदायी होता है |”

तो स्वास्थ्य-मंत्र जप लेना, ब्रह्मचर्य का मंत्र भी सिद्ध कर लेना |

ग्रहण के समय किया हुआ ऐसा-वैसा कोई भी गलत या पाप कर्म अनंत गुना हो जाता है और इस समय भगवद-चिंतन, भगवद-ध्यान, भगवद-ज्ञान का लाभ ले तो वह व्यक्ति सहज में भगवद-धाम, भगवद-रस को पाता है | ग्रहण के समय अगर भगवद-विरह पैदा हो जाता है तो वह भगवान को पाने में बिल्कुल पक्का है, उसने भगवान को पा लिया समझ लो | ग्रहण के समय किया हुआ जप, मौन, ध्यान, प्रभु-सुमिरन अनेक गुना हो जाता है | ग्रहण के बाद वस्त्रसहित स्नान करें |”

ऋषिप्रसाद – मई २०२० से

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