अग्निपुराण में महर्षि पुष्करजी परशुरामजी से कहते
हैं कि “यजुर्वेद के इस (निम्न मंत्र से दूर्वा के पोरों की १० हजार आहुतियाँ
देकर होता (यज्ञ में आहुति देनेवाला व्यक्ति या यज्ञ करानेवाला पुरोहित) ग्राम या
राष्ट्र में फैली हुई महामारी को शांत करे
| उससे रोग-पीड़ित मनुष्य रोग से और दुःखग्रस्त मानव दुःख से छुटकारा पाता है |"
काण्डात्काण्डात्प्ररोह्न्ती परुष: परुषस्परि |
एवा नो दूर्वे प्रतनु सहस्त्रेण शतेन च ||
(यजुर्वेद : अध्याय १३, मंत्र २०)
ऋषिप्रसाद – मई २०२० से
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