क्या करें
१] ग्रीष्म ऋतू में मधुर रस-प्रधान, शीतल, द्रवरूप (
शरबत, पना आदि तरल पदार्थ ) और स्निग्ध ( घी, तेल आदि से युक्त) अन्न-पानों का
सेवन करना चाहिए | (चरक संहिता)
२] मूँग दाल, पुराने चावल, परवल, लौकी, पेठा, पका हुआ
लाल कुम्हड़ा, तोरई, बथुआ, चौलाई, अनार, तरबूज, खरबूजा, मीठे अंगूर, किशमिश, ककड़ी,
आम, संतरा, नारियल पानी, नींबू, सत्तू, हरा धनिया, मिश्री, देशी गाय का दूध, घी
आदि पदार्थों का सेवन हितकारी है |
३] सादा अथवा मटके का पानी स्वास्थप्रद है | थोड़ी-सी
देशी खस (गाँडर घास) अथवा चंदन की लकड़ी का टुकड़ा
मटके में डाल दें | इसका पानी पीने से बार-बार लगनेवाली प्यास व गर्मी कम
होती है |
४] ब्राह्ममुहूर्त में उठकर शीतल हवा में घूमना, सूती
व सफेद या हलके रंग के वस्त्र पहनना, चाँदनी में खुली हवा में सोना हितकारी है |
५] जलन होती हो तो रोज खाली पेट गोदुग्ध में २ चम्मच
देशी गोघृत मिलाकर पीना चाहिए | शहद खाकर ऊपर से पानी पीने से भी जलन कम होती है |
६] ठंडे पानी में जौ अथवा चने का सत्तू मिश्री व घी
मिलाकर पियें | इससे सम्पूर्ण ग्रीष्मकाल में शक्ति बनी रहेगी |
क्या न करें
१] गरिष्ठ या देर से पचनेवाले , बासी, खट्टे, तले
हुए, मिर्च-मसालेवाले तथा उष्ण प्रकृति के पदार्थ, बर्फ या बर्फ से बनी चीजें, उड़द
की दाल, लहसुन, खट्टा दही, बैगन आदि के सेवन में परहेज रखें |
२] दूध और फलों के संयोग से बना मिल्कशेक,
कोल्डड्रिंक्स, फ्रिज में रखी तथा बेकरी की वस्तुओं आदि का सेवन न करें | गन्ने के
रस में बर्फ या नमक डाल के नही पीना चाहिए | (धातु से बनी घानियों से निकाला हुआ
गन्ने का रस पित्त और रक्त को दूषित करनेवाला होता है | अत: गन्ने का रस पीने की अपेक्षा
गन्ना चूसकर खाना अधिक लाभकारी होता है |
३] अधिक व्यायाम, अधिक परिश्रम एवं मैथुन त्याज्य हैं
|
४] ए. सी . या कूलर की हवा स्वास्थ के लिए हानिकारक
है |
५] एकदम ठंडे वातावरण से निकलकर धूप में न जायें |
धूप से आकर एकदम पानी न पियें | थोडा रुक के पसीना सूख जाने के बाद और शरीर का
तापमान सामान्य होने पर ही जल आदि पीना चाहिए |
६] घमौरियों के लिए पाउडर का उपयोग नहीं करना चाहिए |
इससे रोमकूप बंद हो जाते हैं और पसीना नही निकल पाता | पसीना नहीं निकलने से
चर्मरोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है |
ऋषिप्रसाद – मई २०२० से
No comments:
Post a Comment