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Monday, November 28, 2016

शुद्ध स्वर्णभस्मयुक्त सुवर्णप्राश टेबलेट

ये गोलियाँ बालकों के बौद्धिक, मानसिक तथा शरीरिक विकास के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं | ये आयु, शक्ति, मेधा, बुद्धि, कान्ति व जठराग्नि वर्धक तथा उत्तम गर्भपोषक हैं | गर्भवती महिला इनका सेवन करके निरोगी, तेजस्वी, मेधावी संतान को जन्म दे सकती है | विद्यार्थी भी धारणाशक्ति, स्मरणशक्ति तथा शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए इनका उपयोग कर सकते हैं |

ये आप – अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते हैं |


       स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – नवम्बर २०१६ से

   

पौष्टिक खजूर

१३२ प्रकार की बीमारियों को जड़ से उखाडनेवाला, त्रिदोषनाशक खजूर तुरंत शक्ति – स्फूर्ति देनेवाला, रक्त – मांस व वीर्य की वृद्धि करनेवाला, कब्जनाशक, कान्तिवर्धक, ह्रदय व मस्तिष्क का टॉनिक है |

सेवन - विधि : बच्चों के लिए २ से ४ और बड़ों के लिए ४ से ७ |

ये आप – अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते हैं |


      स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – नवम्बर २०१६ से 

सौभाग्य शुंठी पाक

यह उत्तम बलवर्धक है | इसके सेवन से ८० प्रकार के वातरोग, ४० प्रकार के पित्तरोग, २० प्रकार के कफरोग, ८ प्रकार के ज्वर, १८ प्रकार के मूत्ररोग तथा नाक, कान, मुख, नेत्र व मस्तिष्क के रोग एवं वस्तिशूल, योनिशूल व अन्य अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं |

ये आप – अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते हैं |


        स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – नवम्बर २०१६ से 

होमियो पावर केयर

ये गोलियाँ रोगप्रतिकारक शक्ति व कार्यक्षमता वर्धक तथा शारीरिक विकास एवं कोशों के पुनर्निर्माण में सहायक हैं | शरीर के रोगों को जड़ से समाप्त करने में सक्षम हैं ततः एड्स, कैंसर, टी.बी. आदि से ग्रस्त रोगियों को चमत्कारिक आराम देनेवाली हैं | ये गर्भवती एवं प्रसूता महिलाओं के लिए उत्तम स्वास्थ्य टॉनिक का कार्य करनेवाली हैं व बुद्धिजीवी, शारीरिक काम करनेवाले एवं वृद्ध लोगों के लिए उपयुक्त हैं |

ये आप – अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते हैं |


      स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – नवम्बर २०१६ से 

ज्ञान, वैराग्य व साधना में वृद्धि करनेवाला वीसीडी – संग्रह

कर्म में कुशलता, ज्ञान और वैराग्य, विवेक का आदर, चुप साधना, विवेक – वैराग्य

इनमें आप पायेंगे :
१] कर्मों के बंधन से छूटने का उपाय, २] मौत के भी से कैसे बचें ?, ३] सुखी जीवन के दो सूत्र, ४] ईश्वर की शरण कैसे जायें ? ५] क्या करने से विवेक – वैराग्य जगेगा ?    
  

वीसीडी – संग्रह का मूल्य : रु. १९० ( डाक खर्च सहित )

इस वीसीडी – संग्रह के साथ प्रसादरूप में पायें शरद पूनम की चाँदनी से पुष्ट हुए गुलाबजलयुक्त २ आयुर्वेदिक संतकृपा नेत्रबिंदु |

ये आप – अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते हैं |

       स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – नवम्बर २०१६ से


सर्दियों में उठायें मेथीदानों से भरपूर लाभ

मेथीदाना उष्ण, वात व कफनाशक, पित्तवर्धक, पाचनशक्ति व बल वर्धक एवं ह्रदय के लिए हितकर है | यह पुष्टिकारक, शक्ति - स्फूर्तिदायक टॉनिक की तरह कार्य करता है | सुबह – शाम इसे पानी के साथ निगलने से पेट को निरोग बनाता है, कब्ज व गैस को दूर करता है | इसकी मूँग के साथ सब्जी बनाकर भी खा सकते हैं | यह मधुमेह के रोगियों के लिए खूब लाभदायी हैं |

अपनी आयु के जितने वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, उतनी संख्या में मेथिदाने रोज धीरे – धीरे चबाना या चूसने से वृद्धावस्था में पैदा होनेवाली व्याधियों, जैसे – घुटनों व जोड़ों का दर्द, भूख न लगना, हाथों का सुन्न पड़ जाना, सायटिका, मांसपेशियों का  खिंचाव, बार – बार मूत्र आना, चक्कर आना आदि में लाभ होता है | गर्भवती व स्तनपान करानेवाली महिलाओं को भुने मेथीदानों का चूर्ण आटे के साथ मिला के लड्डू बना के खाना लाभकारी है |

शक्तिवर्धक पेय
दो चम्मच मेथीदाने एक गिलास पानी में ४ – ५ घंटे भिगोकर रखें फिर इतना उबालें कि पानी चौथाई रह जाय | इसे छानकर २ चम्मच शहद मिला के पियें |

औषधीय प्रयोग
कब्ज : २० ग्राम मेथीदाने को २०० ग्राम ताजे पानी में भिगो दें | ५ – ६ घंटे बाद मसल के पीने से मल साफ़ आने लगता है | भूख अच्छी लगने लगती है और पाचन भी ठीक होने लगता है |

जोड़ों का दर्द : १०० ग्राम मेथीदाने अधकच्चे भून के दरदरा कूट लें | इसमें २५ ग्राम काला नमक मिलाकर रख लें | २ चम्मच यह मिश्रण सुबह – शाम गुनगुने पानी से फाँकने से जोड़ों, कमर व घुटनों का दर्द, आमवात ( गठिया ) का दर्द आदि में लाभ होता है | इससे पेट में गैस भी नहीं बनेगी |

पेट के रोगों में : १ से ३ ग्राम मेथीदानों का चूर्ण सुबह, दोपहर व शाम को पानी के साथ लेने से अपच, दस्त, भूख न लगना, अफरा, दर्द आदि तकलीफों में बहुत लाभ होता है |

दुर्बलता : १ चम्मच मेथीदानों को घी में भून के सुबह – शाम लेने से रोगजन्य शारीरिक एवं तंत्रिका दुर्बलता दूर होती है |

मासिक धर्म में रुकावट : ४ चम्मच मेथीदाने १ गिलास पानी में उबालें | आधा पानी रह जाने पर छानकर गर्म – गर्म ही लेने से मासिक धर्म खुल के होने लगता है |

अंगों की जकड़न : भुनी मेथी के आटे में गुड़ की चाशनी मिला के लड्डू बना लें | १ – १ लड्डू रोज सुबह खाने से वायु के कारण जकड़े हुए अंग १ सप्ताह में ठीक हो जाते हैं तथा हाथ – पैरों में होनेवाला दर्द भी दूर होता है |

विशेष : सर्दियों में मेथीपाक, मेथी के लड्डू, मेथीदानों व मूँग – डाल की सब्जी आदि के रूप में इसका सेवन खूब लाभदायी हैं |

सावधानी : मेथीदाने का सेवन शरद व ग्रीष्म ऋतुओं में, पित्तजन्य रोगों में तथा उष्ण प्रकुतिवालों को नही करना चाहिए |

         स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – नवम्बर २०१६ से 

स्मरणशक्तिवर्धक व मस्तिष्क को पुष्टि देनेवाला पेय

३ ग्राम सौंफ, २ छोटी इलायची, ४ काली मिर्च और ४ बादाम की गिरि रात को काँच के बर्तन में पानी में भिगो दें | सुबह बादाम की गिरि का छिलका उतार के सब चीजों को सिल पर पीस लें | अब इसमें २५० ग्राम पानी मिला के महीन कपड़े से छान लें तथा २ चम्मच शहद मिला के पियें | इससे स्मरणशक्ति का खूब विकास होता है | मानसिक कार्य करनेवालों के लिए यह पौष्टिक पेय बहुत उपयोगी है |

रोज- रोज नहीं कर सकें तो हफ्तेभर का घोल बना के फ्रिज में रख दें |


     स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – नवम्बर २०१६ से 

पेट के रोगों में लाभदायी व बल – वीर्यवर्धक मिश्रण

घी में भुनी हुई छोटी हरड का चूर्ण १०० ग्राम, घी में भुनी ५० ग्राम सौंफ व ५० ग्राम कच्ची सौंफ लेकर सभीको मिला लें | अब इसमें ४०० ग्राम बूरा व २०० ग्राम शुद्ध घी मिलायें | इस मिश्रण को काँच के बर्तन में भर लें | 

२ – २ चम्मच चूर्ण सुबह – शाम गर्म दूध के साथ लें | २ घंटे पूर्व व बाद तक कुछ न खायें | इसे १५ दिन तक लेने से पेट की शुद्धि होती है | पुराने कब्ज में भी लाभ होता है | आँतों को बल मिलता है, जिससे भोजन का सम्यक पाचन होने में मदद मिलती है | यह बल, वीर्य व नेत्रज्योति वर्धक तथा ह्रदय को बल देनेवाला है |
   
 स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – नवम्बर २०१६ से


तुलसी सेवन से मिले दीर्घायुष्य व स्वास्थ्य

तुलसी शारीरिक व्याधियों को तो दूर करती ही है, साथ ही मनुष्य के आंतरिक भावों और विचारों पर भी कल्याणकारी प्रभाव डालती है | ‘अथर्ववेद’ में आता है यदि त्वचा, मांस तथा अस्थि में महारोग प्रविष्ट हो गया तो उसे श्यामा तुलसी नष्ट कर देती है |

दोपहर भोजन के पश्चात तुलसी – पत्ते चबाने से पाचनशक्ति मजबूत होती है | दूषित पानी में तुलसी के कुछ ताजे पत्ते डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है |

बर्रे, भौंरा, बिच्छू ने काटा हो तो उस स्थान पर तुलसी के पत्ते का रस लगाने या तुलसी-पत्ता पीसकर पुलटिस बाँधने से जलन व सूजन नहीं होती है |

तुलसी के बीज बच्चों को भोजन के बाद देने से मुखशुद्धि होने के साथ – साथ पेट के कृमि भी मर जाते हैं | तुलसी – बीज नपुंसकता को नष्ट करते हैं और पुरुषत्व के हाम्रोंस की वृद्धि भी करते हैं |

शास्त्रों में आता है कि जिनके घर में लहलहाता तुलसी का पौधा रहता है, उनके यहाँ वज्रपात नहीं हो सकता अर्थात जब तुलसी अचानक प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाय तब समझना चाहिए कि घर पर कोई भारी संकट आनेवाला है |

बच्चों को तुलसी – पत्र देने के साथ सूर्यनमस्कार करवाने और सूर्य को अर्घ्य दिलवाने के प्रयोग से बुद्धि में विलक्षणता आती है | तुलसी की क्यारी के पास प्राणायाम करने से सौन्दर्य, स्वास्थ्य और तेज की अत्युत्तम वृद्धि होती है |

प्रात: काल खाली पेट दो – तीन चम्मच तुलसी रस सेवन करने से शारीरिक बल एवं स्मरणशक्ति में वृद्धि के साथ –साथ व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होता है |

अत: जीवन को उन्नत बनाने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति को २५ दिसम्बर को तुलसी – पूजन अवश्य करना चाहिए |

[तुलसी – पूजन विधि तथा तुलसी की उपयोगिता से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें ‘तुलसी रहस्य’ पुस्तक अथवा ऋषि प्रसाद, दिसम्बर २०१५ का अंक देखे ]




       स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – नवम्बर २०१६ से 

इन तिथियों का लाभ लें

२१ दिसम्बर बुधवारी अष्टमी ( सूर्योदय से रात्रि ८ :१९ तक )

२४ दिसम्बरसफला एकादशी ( व्रत से सभी कार्य सफल होते हैं | यह सुख, भोग और मोक्ष देनेवाली हैं | इस रात को जागरण से हजारों वर्ष की तपस्या करने से भी अधिक फल मिलता है |)

२५ दिसम्बरतुलसी पूजन दिवस



         स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – नवम्बर २०१६ से 

Thursday, November 10, 2016

सर्दियों में पायें बल, बुद्धि, पुष्टि का खजाना

अश्वगंधा पाक

यह पुष्टि व वीर्य वर्धक, स्नायु एवं मांसपेशियों को ताकत देनेवाला तथा कद व मांस बढ़ानेवाला है | नसों एवं धातु की कमजोरी, मानसिक तनाव, याददाश्त की कमी व अनिद्रा दूर करता है | दूध के साथ इसका सेवन करने से शरीर में लाल रक्तकणों व कान्ति की वृद्धि होती है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है |


पुष्टि टेबलेट

ये गोलियाँ शरीर को ह्रष्ट – पुष्ट और शक्तिशाली बनाती हैं | कृशकाय एवं दुर्बल व्यक्तियों के लिए इनका सेवन बहुत लाभदायी है | इनके सेवन से खुलकर भूख लगती है |

च्यवनप्राश

यह बल, वीर्य, स्मरणशक्ति व बुद्धि वर्धक है | बुढापे को दूर रखता व भूख बढाता है | जीर्णज्वर, दौर्बल्य, शुक्रदोष, पुरानी खाँसी, क्षयरोग तथा फेफड़ों, मूत्राशय व ह्रदय के रोगों में विशेष लाभकारी है | दीर्घायु, चिरयौवन, प्रतिभा शक्ति देनेवाला है | स्वस्थ या बीमार, बालक, युवक, वृद्ध – सभी इसका सेवन कर सकते हैं |



बल्य रसायन
यह शरीर की समस्त धातुओं का पोषण कर शरीर को ह्रष्ट-पुष्ट बनाता है | स्वप्नदोष, शुक्राणुओं की कमी, कमरदर्द, शारीरिक कमजोरी आदि में लाभदायी है |


उपरोक्त उत्पाद आप अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते हैं |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१६ से


विद्यार्थियों को महानता की बुलंदियों पर पहुंचानेवाला सत्साहित्य-संग्रह


दिव्य प्रेरणा-प्रकाश, बाल-संस्कार, तू गुलाब होकर महक, तेजस्वी बनो, पुरुषार्थ परम देव, संस्कार दर्शन, मन को सीख, अपने रक्षक आप, योग व उच्च संस्कार, हमें लेने हैं अच्छे संस्कार, महापुरुषों के प्रेरक प्रसंग, हमारे आदर्श, हे वीर ! आगे बढ़ो...., संस्कार सरिता, संस्कारी बालक बनें महान

इनमें आप पायेंगे : 
१] विद्यार्थियों का भविष्य उज्ज्वल बनाने की कुंजियाँ |

२] जीवन में अच्छे संस्कारों को कैसे सँजोयें ?

३] विद्यार्थी जीवन के हर क्षेत्र में सफल कैसे हो ?

इस सत्साहित्य सेट का मूल्य : मात्र रु. १५० (डाक खर्च सहित )

उपरोक्त सत्साहित्य सेट आप अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम या समिति के सेवाकेंद्र से प्राप्त कर सकते हैं |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१६ से 

अमृत – औषधि दालचीनी

दालचीनी उष्ण, पाचक, स्फूर्तिदायक, रक्तशोधक, वीर्यवर्धक व मूत्रल है | यह वायु व कफ का शमन कर उनसे उत्पन्न होनेवाले अनेक रोगों को दूर करती है |

यह श्वेत रक्तकणों की वृद्धि कर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है | बवासीर, कृमि, खुजली, राजयक्ष्मा ( टी,बी,), इन्फ्लूएंजा  ( एक प्रकार का शीतप्रधान संक्रामक ज्वर), मूत्राशय के रोग, टायफायड, ह्रदयरोग, कैन्सर, पेट के रोग आदि में यह लाभकारी है  | संक्रामक बीमारियों की यह विशेष औषधि है |

दालचीनी के कुछ प्रयोग

१] पेट के रोग व सर्दी – खाँसी : १ ग्राम ( एक चने जितनी मात्रा ) दालचीनी चूर्ण में १ चम्मच शहद मिलाकर दिन में १ – २ बार चाटने से मंदाग्नि, अजीर्ण, पेट की वायु, संग्रहणी रोग, अफरा और सर्दी – खाँसी में लाभ होता है |

२] ह्रदयरोग : एक ग्राम दालचीनी चूर्ण २०० मि.ली. पानी में धीमी आँच पर उबालें | १०० मि.ली. पानी शेष रहने पर उसे छानकर पी लें | इसे रोज सुबह लेने से कोलेस्ट्राँल की अतिरिक्त मात्रा घटती हैं | गर्म प्रकृतिवाले लोग एवं ग्रीष्म ऋतू में इसके पानी में दूध मिलाकर उपयोग कर सकते हैं | इस प्रयोग से रक्त की शुद्धि होती है एवं ह्रदय को बल मिलता है |

३] स्वरभंग, खाँसी व मुँह की बदबू : दालचीनी का छोटा-सा टुकड़ा चूसने से स्वरभंग ( गला बैठना ) की विकृति नष्ट होती है व आवास खुलती है | इससे खाँसी का प्रकोप शांत होता है, मुँह की बदबू दूर होती है, मसूड़े मजबूत बनते हैं और तोतलेपन में भी लाभ होता है |

सावधानियाँ : गर्भवती महिलाओं के लिए दालचीनी लेना निषिद्ध है | इसकी अधिक मात्रा लेने से पित्त ( उष्ण ) प्रक्रुतिवालों को सिरदर्द होता है | अत्यधिक मात्रा में, रात को या दीर्घकाल तक इसका सेवन करना हानिकारक है |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१६ से 

Wednesday, November 9, 2016

विविध रोगों में अलग – अलग तेलों के लाभ


तेल को धूप में रखकर उसमें सूर्य-किरणों का प्रभाव लाया जा सकता है | जिस रंग में तेल तैयार करना चाहें उस रंग की साफ़ काँच की बोतल में तीन भाग तक तेल भर दें व एक भाग खाली रखकर ढक्कन लगा दें और ऐसी जगह रखें जहाँ दिनभर उस पर धूप पडती रहे | बोतल को लकड़ी के पटिये पर रखें एवं इसे रोज हिलाते रहें | धूप समाप्त होने से पहले ही बोतल उठाकर रख लें | बोतल को कम – से – कम ४० दिन तक धूप में रखें, उसके बाद ही उस तेल का मालिश हेतु प्रयोग करें | तेल जिस रंग की बोतल में भरकर धूप में रखा गया हो, उसी रंगवाली बोतल में रखा रहने दें | यदि किसी रंग की शुद्ध बोतल न मिल सके तो पारदर्शी काँच की बोतल पर इच्छित रंग का सेलोफेन कागज लपेटकर भी काम चलाया जा सकता है |

ऋतू और शरीर की स्थिति के अनुसार तेल का चुनाव कर नियमित रूप से शरीर की मालिश करनी चाहिए | 

साधारण मालिश के लिए सरसों, नारियल व तिल का तेल उत्तम रहता है | कमजोर रोगियों के लिए जैतून का तेल विशेष लाभ देता है |

कमर व गर्दन का दर्द, मोच, लकवा, जोड़ों का दर्द, गठिया, वातव्याधि, सायटिका आदि रोगों में लाल रंग की बोतलवाले नारियल या तिल के तेल से मालिस करें  तथा २० से ६० मिनट तक रोगग्रस्त अंग की धूप में सिंकाई करें | यह तेल बहुत ही गर्म प्रकृति का हो जाता हैं | जहाँ शरीर में गर्मी और चेतनता देने की आवश्यकता हो, वहाँ इस तेल से मालिश करनी चाहिए | ग्रीष्म ऋतू में गर्म प्रकृति के लोगों के लिए इसका उपयोग हितावह नहीं है |

हलके नीले या नीले रंग की बोतल में सरसों या नारियल का तेल तैयार करने से वह ठंडी प्रकृति का हो जाता है | शरीर में बढ़ी हुई गर्मी, गर्मी के दाने, कील – मुँहासे, घमौरियाँ, बवासीर, स्नायविक संस्थान के दौर्बल्य, शिथिलता, सिरदर्द, बाल झड़ना, रूशी होना आदि में यह लाभदायक है | यह मस्तिष्क को ठंडक देता है, दिमागी कार्य करनेवालों के लिए वह टॉनिक का काम करता है |

चर्मरोग, खुजली आदि के लिए अलसी का तेल या हरे रंग की बोतलवाला नारियल का तेल लाभप्रद होता है | यह नारियल – तेल लघु मस्तिष्क पर ( सिर के पीछे, नीचे ) लगाने से स्वप्नदोष, सूजाक (गोनोरिया ), प्रदररोग आदि से शीघ्र लाभ होता है | सिर में खुजली, असमय सफेद बाल, उपदंश (Syphilis) आदि में भी यह उपयोगी है |  

सिरदर्द के लिए बादाम के तेल का प्रयोग करें | कमजोर और सूखा रोग से ग्रस्त बच्चों के शरीर पर धूप में बैठकर जैतून के तेल से मालिश करना बहुत गुणकारी होता है | वात आदि व्याधियों में तिल का तेल लाभकारी है | आश्रम – निर्मित मालिश तेल जोड़ों के दर्द के लिए अत्यंत उपयुक्त है | अंदरूनी चोट, पैर में मोच आना आदि में हलके हाथ से मालिश करके गर्म कपड़े से सेंकने पर शीघ्र लाभ होता है |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१६ से 

२५ नवम्बर :  उत्पत्ति एकादशी ( व्रत करने से धन, धर्म और मोक्ष की प्राप्ति होती है | - पद्म पुराण )

२८ नवम्बर : सोमवती अमावस्या ( दोपहर ३:२१ से २९ नवम्बर सूर्योदय तक )

७ दिसम्बर : बुधवारी अष्टमी ( सूर्योदय से रात्रि २:०५ तक )

१० दिसम्बर : मोक्षदा एकादशी ( यह बड़े भारी पापों का नाश करनेवाला व्रत है | नीच योनि में पड़े पितर भी इसके पुण्यदान से मोक्ष पाते हैं | )

१५ दिसम्बर : षडशीति संक्रांति ( पुण्यकाल : दोपहर १२:३३ से सूर्यास्त तक ) ( षडशीति संक्रांति में किये गये जप – ध्यान व पूण्यकर्म का फल ८६,००० गुना होता है | - पद्म पुराण )





       स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१६ से 

Saturday, November 5, 2016

बोधायन ऋषि प्रणित – दरिद्रतानाशक प्रयोग

२८ दिन ( ४ सप्ताह ) तक सफेद बछड़ेवाली सफेद गाय के दूध की खीर बनायें | 

खीर बनाते समय दूध को ज्यादा उबालना नहीं चाहिए | चावल पानी में पकायें, फिर दूध डालकर एक – दो उबाल दे दें | उस खीर का सूर्यनारायण को भोग लगायें | 

सूर्यनारायण का स्मरण करें और खीर को देखते – देखते  एक हजार बार -

ॐकार मंत्र:, गायत्री छंद: , भगवान नारायण ऋषि:, अन्तर्यामी परमात्मा देवता, अन्तर्यामी प्रीत्यर्थे, परमात्मप्राप्ति अर्थे जपे विनियोग: | 

इससे ब्रह्मचर्य की रक्षा होगी, तेजस्विता बढ़ेगी तथा सात जन्मों की दरिद्रता दूर होकर सुख – सम्पदा की प्राप्ति होगी |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१६ से 

भाग्य के कुअंक मिटाने की युक्ति

आसन बिछाकर प्रणव ( ॐकार ) का ३ मिनट ह्रस्व (जल्दी – जल्दी ) व दीर्घ और ५ मिनट प्लुत (दीर्घ से अधिक लम्बा ) उच्चारण करना चाहिए | कभी कम – ज्यादा हो जाय तो डरना नहीं | ४० दिन का यह नियम ले लों तो बहुत सारी योग्यताएँ जो सुषुप्त हैं, वे विकसित हो जायेंगी | मन की चंचलता मिटने लगेगी, बुद्धि के दोष दूर होने लगेंगे | सदा करते रहो तो बहुत अच्छा |

अपने भाग्य की रेखा बदलनी हो, अपनी ७२, ७२, १०, २०१ नाड़ियों की शुद्धि करनी हो और अपने मन और बुद्धि को मधुमय करना हो तो संध्या के समय १०- १५ मिनट विद्युत् – कुचालक आसन बिछाकर जप करें | भाग्य के कुअंक मिटा देगा यह प्रयोग | 



स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१६ से 

बाल काले व मजबूत बनाने की युक्तियाँ

नींबू रस और आँवला रस मिलाकर सिर पर लगा दो अथवा तो केवल आँवले का रस लगा दो | १५ – २० मिनट बाद नहाओ तो आँवले का रस सिर की गर्मी खींच लेगा | 

बाल जल्दी सफेद नहीं होंगे और बालों की जड़े कमजोर नहीं होगी, बाल बने रहेंगे | यदि आँवले का रस नही मिले तो आँवले के चूर्ण को रात को पानी में भिगो दो और सुबह उसीका उपयोग कर लो |



स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१६ से 

एक्यूप्रेशर द्वारा गर्दन से संबंधित रोगों का इलाज

रीढ़ की हड्डी के ७ मनके, जो गर्दन के भाग में आते हैं, उन्हें सर्वाइकल वर्टिब्रे (cervical vertebrae) कहते हैं | इनमें किसी भी प्रकार की विकृति आने पर गर्दन का दर्द (cervical spondylosis) तथा जकड़न, चक्कर आना, कंधे का दर्द व जकड़न, बाजू की नसों में दर्द इत्यादि कई तरह की समस्याएँ देखी जाती है |

गर्दन का दर्द : सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस
कारण एवं लक्षण
अधिक समय तक झुककर सिलाई, कढाई – बुनाई आदि का काम करनेवाले, कम्प्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट पर लगातार काम करनेवाले, लेटकर पढनेवाले, गलत ढंग से व शारीरिक शक्ति से अधिक बोझ उठानेवाले एवं कार्य करनेवाले, वाहन चलानेवाले, शारीरिक परिश्रम या व्यायाम न करनेवाले तथा मानसिक रूप से अशांत व्यक्तियों में यह रोग अधिकांशत: देखने को मिलता है |

यह व्याधि होने पर लगातार दर्द होना अथवा बैठने, लेटने, करवट लेने, हाथ हिलाने, गर्दन घुमाने या ऊपर – नीचे करने से दर्द होना, कई बार गर्दन के पीछे  नीचे के भाग में सूजन आना, गर्दन स्थिर – सी हो जाना आदि कई लक्षण देखे जाते हैं |

रोग – निवारण हेतु प्रमुख प्रतिबिम्ब केंद्र
१] गर्दन से संबंधित रोगों में कंधों, बाजुओं आदि में भी दर्द आ जाता है | तलवों तथा हथेलियाँ में इन रोगों से संबंधित प्रतिबिम्ब होते हैं, जिन्हें चित्र १ से दर्शाया गया है | जब कंधा जकड़-सा जाता है (फ्रोजन शोल्डर ), बाजू ऊपर नहीं उठाया जाता या पीछे नहीं जाता अथवा विशेषकर लकवे की अवस्था में भी इन केन्द्रों पर दबाव देने से काफी लाभ होता है |



२] पैरों तथा हाथों के अँगूठों के बाहरी तथाभीतरी भाग पर दबाव दें ( देखें चित्र २) | पैर तथा हाथ के अँगूठों का ऊपरी भाग ( देखे चित्र ३ ) गर्दन के ऊपरी भाग से तथा अँगूठों का नीचे का भाग ( चित्र १ का बिंदु ३ ) गर्दन के नीचे के भाग से संबंधित है | गर्दन के जिस भाग में दर्द या जकड़न हो,
अँगूठों के उसी भाग पर दबाव देने से शीघ्र लाभ होता है |

उपरोक्त बिंदुओं पर प्रतिदिन दिन में तीन बार २ – ३ मिनट तक दबाव देना चाहिए |   

सहायक प्रतिबिम्ब केंद्र
गर्दन के रोगों में गर्दन के पीछे भी दबाव दें | सबसे पहले गर्दन और खोपड़ी की मिलन रेखा का मध्य भाग ( चित्र  ४ का बिंदु १ ), जहाँ से रीढ़ की हड्डी शुरू होती है, उस पर हाथ के अँगूठे से तीन बार ५ – ७ सेकंड तक रोगी की सहनशील के अनुसार दबाव दें | उसके बाद चित्र ४ के बिंदु २, ३, ४, ५, ६, ७ पर ५ – ७ सेकंड तक तीन बार दबाव दें |


फिर रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ लगभग आधा इंच की दूरी पर चित्र ४ में दिखाये गये बिंदु  १ से १२ पर चित्र ५ में दिखायी गयी पद्धति के अनुसार तीन बार हलका दबाव दें |



इन केन्द्रों पर रोगी स्वयं भी अपने हाथ पीछे की ओर करके (चित्र ६ के अनुसार ) दबाव दे सकता है | अगर रोगी को चक्कर आते हों तो गर्दन के ऊपर किसी भी बिंदु पर दबाव नहीं देना चाहिए |

गर्दन के दर्द से बचाव हेतु : कड़े बिस्तर ( तख्त या जमीन ) पर कम्बल बिछा के सोयें | सिर झुकाकर कार्य करते समय बीच – बीच में २ – ३ मिनट विश्राम तथा हलका व्यायाम करें, जैसे कुछ देर गर्दन पीछे करके आकाश की ओर देखना आदि | रुई के पतले तकिये का उपयोग करना चाहिए |

भुजंगासन, ब्रह्म मुद्रा तथा शवासन नियमित रूप से करने पर सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस से रक्षा होती है |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१६ से