दालचीनी उष्ण, पाचक, स्फूर्तिदायक, रक्तशोधक, वीर्यवर्धक व मूत्रल है | यह
वायु व कफ का शमन कर उनसे उत्पन्न होनेवाले अनेक रोगों को दूर करती है |
यह श्वेत रक्तकणों की वृद्धि कर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है | बवासीर, कृमि,
खुजली, राजयक्ष्मा ( टी,बी,), इन्फ्लूएंजा
( एक प्रकार का शीतप्रधान संक्रामक ज्वर), मूत्राशय के रोग, टायफायड,
ह्रदयरोग, कैन्सर, पेट के रोग आदि में यह लाभकारी है | संक्रामक बीमारियों की यह विशेष औषधि है |
दालचीनी के कुछ प्रयोग
१] पेट के रोग व सर्दी – खाँसी : १ ग्राम ( एक चने जितनी मात्रा ) दालचीनी
चूर्ण में १ चम्मच शहद मिलाकर दिन में १ – २ बार चाटने से मंदाग्नि, अजीर्ण, पेट
की वायु, संग्रहणी रोग, अफरा और सर्दी – खाँसी में लाभ होता है |
२] ह्रदयरोग : एक ग्राम दालचीनी चूर्ण २०० मि.ली. पानी में धीमी आँच पर उबालें
| १०० मि.ली. पानी शेष रहने पर उसे छानकर पी लें | इसे रोज सुबह लेने से
कोलेस्ट्राँल की अतिरिक्त मात्रा घटती हैं | गर्म प्रकृतिवाले लोग एवं ग्रीष्म ऋतू
में इसके पानी में दूध मिलाकर उपयोग कर सकते हैं | इस प्रयोग से रक्त की शुद्धि
होती है एवं ह्रदय को बल मिलता है |
३] स्वरभंग, खाँसी व मुँह की बदबू : दालचीनी का छोटा-सा टुकड़ा चूसने से
स्वरभंग ( गला बैठना ) की विकृति नष्ट होती है व आवास खुलती है | इससे खाँसी का
प्रकोप शांत होता है, मुँह की बदबू दूर होती है, मसूड़े मजबूत बनते हैं और तोतलेपन
में भी लाभ होता है |
सावधानियाँ : गर्भवती महिलाओं के लिए दालचीनी लेना निषिद्ध है | इसकी अधिक
मात्रा लेने से पित्त ( उष्ण ) प्रक्रुतिवालों को सिरदर्द होता है | अत्यधिक
मात्रा में, रात को या दीर्घकाल तक इसका सेवन करना हानिकारक है |
स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१६ से
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