केमिकलयुक्त साबुन – शैम्पू आदि का उपयोग करने से लोग स्वास्थ्य की हानि कर
लेते हैं | सभी के तन, मन व मति स्वस्थ्य रहें इसलिये बापूजी कहते हैं – साबुन में
तो चरबी, सोडा खार एवं ऐसे रसायनों का मिश्रण होता है, जो हानिकारक होते हैं |
शैम्पू से बाल धोना ज्ञानतन्तुओं और बालों की जड़ों का सत्यानाश करना है | जो लोग
इनसे नहाते हैं, वे अपने दिमाग के साथ अन्याय करते हैं | इनसे मैल तो निकलता है
लेकिन इनमें प्रयुक्त रसायनों से बहुत हानि होती है |
तो किससे नहायें, यह भी शास्त्रकारों ने, आचार्यों ने खोज निकाला | मुलतानी
मिट्टी से स्नान करने पर रोमकूप खुल जाते हैं | इससे रगड़कर स्नान करने पर जो लाभ
होते हैं, साबुन से उसके एक प्रतिशत भी लाभ नहीं होते | स्फूर्ति और निरोगता
चाहनेवालों को साबुन से बचकर मुलतानी मिट्टी से नहाना चाहिए |
जिसको भी गर्मी हो, पित्त हो, आँखों में जलन होती हो वह मुलतानी मिट्टी लगा के
थोड़ी देर बैठ जाय, फिर नहाये तो शरीर की गर्मी निकल जायेगी, फायदा होगा | मुलतानी
मिट्टी और आलू का रस मिलाकर चेहरे को लगाओ, चेहरे पर सौदर्य और निखार आयेगा |
जापानी लोग हमारी वैदिक और पौराणिक विद्या का लाभ उठा रहे हैं | शरीर में
उपस्थित व्यर्थ की गर्मी तथा पित्तदोष का शमन करने के लिए, चमड़ी एवं रक्त संबंधी
बीमारियों को ठीक करने के लिए वे लोग मुलतानी मिट्टी के घोल से ‘टब – बाथ’ करते
हैं तथा आधे घंटे के बाद शरीर को रगड़कर नहा लेते हैं | आप भी यह प्रयोग करके या
मुलतानी मिट्टी को ऐसे ही शरीर पर लगा के स्नान करके स्फूर्ति और स्वास्थ्य का लाभ
ले सकते हैं |’
टिप – मुलतानी मिट्टी शीतल होती है, अत: शीत ऋतू में इसका उपयोग न करें,
सप्तधान्य उबटन का उपयोग करें |
स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१६ से
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