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Saturday, November 5, 2016

एक्यूप्रेशर द्वारा गर्दन से संबंधित रोगों का इलाज

रीढ़ की हड्डी के ७ मनके, जो गर्दन के भाग में आते हैं, उन्हें सर्वाइकल वर्टिब्रे (cervical vertebrae) कहते हैं | इनमें किसी भी प्रकार की विकृति आने पर गर्दन का दर्द (cervical spondylosis) तथा जकड़न, चक्कर आना, कंधे का दर्द व जकड़न, बाजू की नसों में दर्द इत्यादि कई तरह की समस्याएँ देखी जाती है |

गर्दन का दर्द : सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस
कारण एवं लक्षण
अधिक समय तक झुककर सिलाई, कढाई – बुनाई आदि का काम करनेवाले, कम्प्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट पर लगातार काम करनेवाले, लेटकर पढनेवाले, गलत ढंग से व शारीरिक शक्ति से अधिक बोझ उठानेवाले एवं कार्य करनेवाले, वाहन चलानेवाले, शारीरिक परिश्रम या व्यायाम न करनेवाले तथा मानसिक रूप से अशांत व्यक्तियों में यह रोग अधिकांशत: देखने को मिलता है |

यह व्याधि होने पर लगातार दर्द होना अथवा बैठने, लेटने, करवट लेने, हाथ हिलाने, गर्दन घुमाने या ऊपर – नीचे करने से दर्द होना, कई बार गर्दन के पीछे  नीचे के भाग में सूजन आना, गर्दन स्थिर – सी हो जाना आदि कई लक्षण देखे जाते हैं |

रोग – निवारण हेतु प्रमुख प्रतिबिम्ब केंद्र
१] गर्दन से संबंधित रोगों में कंधों, बाजुओं आदि में भी दर्द आ जाता है | तलवों तथा हथेलियाँ में इन रोगों से संबंधित प्रतिबिम्ब होते हैं, जिन्हें चित्र १ से दर्शाया गया है | जब कंधा जकड़-सा जाता है (फ्रोजन शोल्डर ), बाजू ऊपर नहीं उठाया जाता या पीछे नहीं जाता अथवा विशेषकर लकवे की अवस्था में भी इन केन्द्रों पर दबाव देने से काफी लाभ होता है |



२] पैरों तथा हाथों के अँगूठों के बाहरी तथाभीतरी भाग पर दबाव दें ( देखें चित्र २) | पैर तथा हाथ के अँगूठों का ऊपरी भाग ( देखे चित्र ३ ) गर्दन के ऊपरी भाग से तथा अँगूठों का नीचे का भाग ( चित्र १ का बिंदु ३ ) गर्दन के नीचे के भाग से संबंधित है | गर्दन के जिस भाग में दर्द या जकड़न हो,
अँगूठों के उसी भाग पर दबाव देने से शीघ्र लाभ होता है |

उपरोक्त बिंदुओं पर प्रतिदिन दिन में तीन बार २ – ३ मिनट तक दबाव देना चाहिए |   

सहायक प्रतिबिम्ब केंद्र
गर्दन के रोगों में गर्दन के पीछे भी दबाव दें | सबसे पहले गर्दन और खोपड़ी की मिलन रेखा का मध्य भाग ( चित्र  ४ का बिंदु १ ), जहाँ से रीढ़ की हड्डी शुरू होती है, उस पर हाथ के अँगूठे से तीन बार ५ – ७ सेकंड तक रोगी की सहनशील के अनुसार दबाव दें | उसके बाद चित्र ४ के बिंदु २, ३, ४, ५, ६, ७ पर ५ – ७ सेकंड तक तीन बार दबाव दें |


फिर रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ लगभग आधा इंच की दूरी पर चित्र ४ में दिखाये गये बिंदु  १ से १२ पर चित्र ५ में दिखायी गयी पद्धति के अनुसार तीन बार हलका दबाव दें |



इन केन्द्रों पर रोगी स्वयं भी अपने हाथ पीछे की ओर करके (चित्र ६ के अनुसार ) दबाव दे सकता है | अगर रोगी को चक्कर आते हों तो गर्दन के ऊपर किसी भी बिंदु पर दबाव नहीं देना चाहिए |

गर्दन के दर्द से बचाव हेतु : कड़े बिस्तर ( तख्त या जमीन ) पर कम्बल बिछा के सोयें | सिर झुकाकर कार्य करते समय बीच – बीच में २ – ३ मिनट विश्राम तथा हलका व्यायाम करें, जैसे कुछ देर गर्दन पीछे करके आकाश की ओर देखना आदि | रुई के पतले तकिये का उपयोग करना चाहिए |

भुजंगासन, ब्रह्म मुद्रा तथा शवासन नियमित रूप से करने पर सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस से रक्षा होती है |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१६ से

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