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Saturday, November 5, 2016

स्नान को परमात्म – स्नान बनाने की कला

पूज्य बापूजी बताते हैं : ‘ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा |’ यह मंत्र बोलते हुए सिर पर जल डालें तो गंगा स्नान का पूण्य होता है | अगर प्रार्थना करते हुए स्नान करते हो तो वह आपका परमात्म-स्नान हो जायेगा, ‘अन्तर्यामी ईश्वर को मैं स्नान करवा रहा हूँ | शरीर को तो स्नान कराता हूँ लेकिन अंतरतम चैतन्य प्रभु ! मैं तुझे भी नहला रहा हूँ |’

ॐ भूधराय नम: |जो पृथ्वी को धारिणी शक्ति से धर रहे हैं और हमारे शरीर को धारण करने की शक्ति दे रहे हैं, उनको हम नमन करते हैं |’ इस मंत्र से आप स्नान करिये | स्वास्थ्य और मन की प्रसन्नता का लाभ होगा | नाम तो भगवान का होगा और काम तुम्हारे तन – मन का और तुम्हारा होगा | अगर कोई अधिक विशेष मंत्र चाहते हो तो यह मंत्र बोलते हुए स्नान करो :

यथा विशोकां धरणे कृतवांस्त्वां जनार्दन: |
तथा मां सर्वशोकेभ्यो मोचयाशेषधारिणि ||

अखिल लोक धारण करनेवाली देवी ! जिस प्रकार भगवान जनार्दन ने तुम्हें शोकरहित किया है, मुझे भी उसी भाँति समस्त शोकों से रहित करो |’  ( भविष्यपुराण, उत्तरपर्व : अध्याय १०५ )


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१६ से 

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