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Thursday, July 23, 2020

पुण्यदायी तिथियाँ


२२ अगस्त : गणेश चतुर्थी ( चन्द्र – दर्शन निषिद्ध, चन्द्रास्त – रात्रि ९:४९) (‘ॐ गणपतये नम: |’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्न-निवारण होआ है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है |)

२६ अगस्त : बुधवारी अष्टमी ( सूर्योदय से सुबह १०:४० तक )

२९ अगस्त : पद्मा एकादशी ( व्रत करने व महात्म्य पढने-सुनने से सब पापों से मुक्ति )

१ सितम्बर : महालय श्राद्धारंभ ( श्राद्ग पक्ष : १ सितम्बर से १७ सितम्बर तक )
                                                                                                                    

                                                                                                                    लोककल्याणसेतु – जुलाई २०२० से 

कृष्णजन्माष्टमी का पावन संदेश


जन्माष्टमी का यह संदेश है कि आप किसी भी जाति के हों, किसी भी मजहब के हों लेकिन आपको जन्माष्टमी का फायदा लेना चाहिए | जैसे अब ऋतू – परिवर्तन होगा | वर्षा ऋतू पूरी होगी  और शरद ऋतू शुरू होगी | इस ऋतू को रोगों की माँ कहते हैं :
रोगाणां शारदी माता |

शरीर में जमा हुआ पित्त है वह उभरेगा | गर्मी-संबंधी बीमारियाँ आयेंगी | ये बीमारियाँ आयें उसके पहले जन्माष्टमी के निमित्त गर्मी को शांत करनेवाला मक्खन-मिश्री का प्रसाद मिलता है यह कैसी व्यवस्था है !

जन्माष्टमी की सुबह जौ-तिल का उबटन बना के स्नान करोगे तो विशेष फायदा होगा अथवा देशी गाय का गोबर या सप्तधान्य उबटन लगा के स्नान करना | पंचगव्य का पान भी आयु – आरोग्य देता है और मन- बुद्धि को पावन करता है |

जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर तेजस्वी पूर्णावतार श्रीकृष्ण की जीवनलीलाओं, उपदेशों व उनकी समता एवं उनके साहसिक आचरण से पाठ सीखो | अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में सम रहो व प्रसन्न रहो | स्वयं अपने धर्म में स्थित रहकर दूसरों को भी धर्म के रास्ते पर मोड़ते रहो | सफल जीवन जीने की पद्धति यही है |


लोककल्याण सेतु – जुलाई २०२० से 

इन लक्षणों को आत्मसात कर सर्वज्ञता पायें


भूखे को रोटी और प्यासे को पानी की जितनी आवश्यकता होती है उतना ही जीवन में उत्तम गुणों एवं धर्मसम्मत व्यवहार का होना आवश्यक है | इनके बिना व्यक्ति मनुष्य हो के भी पशु के समान ही है | कहा भी गया है : धर्मेण हीना: पशुभि: समाना: | मनुष्यमात्र के कल्याण के लिए समर्थ रामदासजी अपने सदग्रंथ ‘दासबोध में कहते हैं : “उत्तम गुणों के लक्षणों को श्रोतागण ध्यान से सुनें, जिन्हें आत्मसात करने से सर्वज्ञता प्राप्त होती है |

कही भी जाना हो तो मार्ग की सम्पूर्ण जानकारी लिये बिना न जायें | फल खाने के पहले उसकी ठीक से जानकारी लिये बिना खायें नहीं | रास्ते में पड़ी हुई वास्तु एकाएक उठाये नहीं | अधिक वाद-विवाद नहीं करें तथा किसीसे कपट से व्यवहार न करें | कुल-खानदान और चरित्र की जानकारी लिये बिना किसी स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए |

विचार किये बिना ही बात न करें तथा पूर्वचर्चा किये बिना ही बात न करें तथा पूर्वचर्चा किये बिना चर्चा किसी कार्य कि शुरुआत न करें | लोगों से व्यवहार करते समय मर्यादा का पालन अवश्य करना चाहिए | जहाँ प्रेम न हो वहाँ रूठना नहीं चाहिए | चोर से उसका परिचय नहीं पूछना चाहिए तथा रात में अकेले यात्रा नहीं करनी चाहिए |

लोगों में व्यवहार करते समय सरलता कभी न छोड़ें | पापमार्ग से धन को एकत्र न करें तथा किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में पुण्यमार्ग को छोड़ना नहीं चाहिए | किसीकी निंदा तथा द्वेष कभी न करें एवं बुरी संगति न करें | बलपूर्वक किसीका धन अथवा स्त्री का अपहरण नहीं करना चाहिए | (जब तक कोई अत्यंत अनर्थकारी स्थिति उत्पन्न न हो रही हो तब तक ) वक्ता के बोलते समय बीच में उसका खंडन न करें | लोगों की एकता तोड़ के उनमें फूट नहीं डालनी चाहिए | विद्या का अभ्यास करना कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए | सभा में लज्जा न करें | व्यर्थ की बाते न बोलेन | किसी भी स्थिति में शर्त नहीं लगानी चाहिए | अधिक चिंता नहीं करें तथा लापरवाह भी न रहें | परस्त्री को पापबुद्धि से न देखें | हो सके तो किसीका उपकार न लें | यदि किसी कारणवश लेना ही पड़े तो बदले में उपकार किये बिना न रहें |”

लोककल्याणसेतु – जुलाई २०२० से

चंदन, सिंदूर का तिलक क्यों ?




हिन्दू संस्कृति में बिना तिलक के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान, पूजन आदि पूर्ण नहीं माना जाता है | जन्म से लेकर मृत्युशय्या तक तिलक का प्रयोग किया जाता है | तिलक लगाना सम्मान का सूचक भी माना जाता है | अतिथियों को स्वागत में तथा विदाई के समय तिलक करने कि परम्परा भी है | सफलता हेतु और सुझबुझ प्रकट करने के लिए तिलक लगाने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है | ब्रह्मवैवर्त पुराण ( ब्रह्म खंड : २६.७३) में कहा गया है :

स्नानं दानं तपो होमो देवता पितृकर्म च |
तत्सर्व निष्फलं याति ललाटे तिलकं विना ||

अर्थात स्नान, दान, तप, होम तथा देव व पितृ कर्म करते समय यदि तिलक न लगा हो तो ये सब कार्य निष्फल हो जाते हैं |

उल्लेखनीय है कि ललाट पर दोनों भौहों के बीच विचारशक्ति का केंद्र है | योगी इसे आज्ञाचक्र कहते हैं | इसे शिवनेत्र अर्थात कल्याणकारी विचारों का केंद्र भी कहा जाता है | इसके नजदीक दो महत्त्वपूर्ण अंत:स्त्रावी ग्रंथियाँ स्थित हैं : १) पीनियल ग्रंथि और २) पीयूष ग्रंथि | दोनों भौंहों के बीच चंदन अथवा सिंदूर आदि का तिलक लगाने से उपरोक्त दोनों ग्रंथियों का पोषण होता है और विचारशक्ति एवं आज्ञाशक्ति का विकास होता है |

अधिकांश स्त्रियों का मन स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर केंद्र में रहता है | इन केन्द्रों में भय, भाव और कल्पना की अधिकता होती है | हमारी माताएँ – बहनें भावनाओं एवं कल्पनाओं में बह न जायें , उनका शिवनेत्र, विचारशक्ति का केंद्र विकसित हो और उनकी समझ बढ़े- इस उद्देश्य से ऋषियों ने महिलाओं हेतु बिंदी या तिलक लगाने कि परम्परा शुरू की | परंतु आज महिलाएँ इस कल्याणकारी परम्परा के पीछे उद्देश्य को नहीं समझती हैं और ऐसी बिंदियाँ लगाती हैं जो हानिकारक हैं |

पूज्य बापूजी के सत्संग में यह बात आती रहती है कि “ आजकल माइयों के साथ अन्याय हो रहा है | छठा केंद्र ( आज्ञाचक्र) विकसित हो इसलिए तिलक करते हैं | इससे तेज, शोभा, प्रसन्नता, बल, उत्साह बढ़ता है लेकिन उसकी जगह पर उत्साह, बल, तेज को दबानेवाला, मृत पशुओं के अंगों से बनाया हुआ घोल बिंदी चिपकाने के लिए लगा देते हैं | तेज बढाने कि जगह पर तेज को कुंठित कर देना...... यह कैसा है ! जो प्लास्टिक की बिंदी नहीं लगाने का बचन देती हैं और बाजारू क्रीम नहीं लगाने का वचन देते हैं, वे हाथ ऊपर करें तो मैं समझूंगा कि मेरे को दक्षिणा मिल गयी |”

कठोपनिषद् के नुसार ह्रदय की नाड़ियाँ में से सुषुम्ना नामक नाड़ी मस्तक के सामनेवाले हिस्से की और निकलती है | इस नाड़ी से ऊर्ध्वगतीय मोक्षमार्ग निकलता है | अन्य सभी नाड़ियाँ चारों दिशाओं में फैली हुई हैं परंतु सुषुम्ना का मार्ग ऊर्ध्व दिशा की ओर ही रहता है |

इस सुषुम्ना नाड़ी को केन्द्रीभूत मानकर अपने-अपने सम्प्रदायों के अनुसार लोग ललाट पर विविध प्रकार के तिलक धारण करते हैं | चंदन का लेप सुषुम्ना पर लगाने से अध्यात्म के लिए अनुकूल विशिष्ट प्रकिया होती है |
नासिका से प्रवाहित होनेवाली दो नाड़ियाँ में से बायीं नाड़ी इड़ा ‘ऋण’ (negative) और दायी नाड़ी पिंगला ‘धन (positive) होती है | धन विद्युत् बहते समय उत्पन्न उष्णता को रोकने के लिए सुषुम्ना पर तिलक लगाना बहुत उपयोगी रहता है |

स्कंद पुराण में आता है :

अनामिका शान्तिदा प्रोक्ता मध्यमाऽऽयुष्करी भवेत् |
अंगुष्ठ: पुष्टिद: प्रोक्तस्तर्जनी मोक्षदायिनी ||

अनामिका से तिलक करने से शांति, मध्यमा से आयु, अँगूठे से स्वास्थ्य और तर्जनी से मोक्ष की प्राप्ति होती है |

ध्यान दें : सोते समय ललाट से तिलक का त्याग करे देना चाहिए |

(तिलक – संबंधी विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘जीवन जीने कि कला, पृष्ठ ३९- ४३ )


लोककल्याणसेतु – जुलाई २०२० से

पृथ्वी मुद्रा





लाभ : मूलाधार चक्र से संबंध रखनेवाली इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से –

१] शरीर का वजन बढ़ता है |

२] त्वचा की कांति बढ़ती है |

३] शारीरिक दुर्बलता दूर होती है |

४] ताजगी व स्फूर्ति कि प्राप्ति होती है |

५] व्यक्ति संतोषी व उत्साही बनता है |

६] कार्यक्षमता एवं दक्षता में वृद्धि होती है |

७] शरीर में रक्त- परिचलन स्मर्थरूप से रहकर शरीर सभी प्रकार से तंदुरुस्त रहता है |

८] आरोग्य की प्राप्ति व तेज में वृद्धि होती है |

९] शरीर के सभी खनिज तत्त्वों का संतुलन होता है |

१०] पृथ्वी – तत्त्व संतुलित होता है, जिससे इसके असंतुलन से होनेवाले रोगों से रक्षा होती है |

विधि : पद्मासन, सुखासन आदि किसी आसन में बैठ जाएँ ( वज्रासन में बैठना विशेष लाभदायी है ) | अनामिका (सबसे च्चोती ऊँगली के पासवाली ऊँगली ) के अग्रभाग को अँगूठे के अग्रभाग से स्पर्श करायें | शेष तीनों उँगलियाँ सीधी रखें |

समय : कम-से-कम ३० मिनट



लोककल्याणसेतु – जुलाई २०२० से

स्वास्थ्यप्रद व औषधीय गुणों से भरपूर – हींग



आयुर्वेद के अनुसार हींग अन्न एवं दोषों का पाचन करनेवाली, भोजन में रूचि उत्पन्न करनेवाली व भूखवर्धक है | यह कफ व वायु शामक तथा तंत्रिक-तंत्र (nervous system) के लिए बल्य है | कृमिरोग, गृध्रसी (sciatica), पेट के रोग, गठिया, ह्रदयरोग, वायु के कारण होनेवाला छाती व पेट का दर्द तथा दमा, खांसी आदि फेफड़ों के रोगों में लाभदायी है |

दाल अथवा सब्जी में छौंक लगाते समय हींग का उपयोग करने से वह रुचिकर व सुपाच्य हो जाती है | इससे पेट की वायु का शमन होता है व कब्जियत में भी लाभ होता है |

मंदाग्नि हो तो घी में भुनी हुई २ चुटकी हींग में नींबू का १ चम्मच रस मिलाकर भोजन के प्रथम कौर के साथ लेने से पेट में पाचक रस स्रावित होने लगते हैं, जिससे जठराग्नि तीव्र हो जाती है |

दूषित अन्न कि डकार आती हो, थोडा- थोडा दस्त होता हो और पेट में वायु भरी हो तो २ चुटकी हींग में घी मिलाकर गर्म पानी के साथ लें अथवा हिंगादी हरड चूर्ण या रामवाण बूटी का सेवन गर्म पानी के साथ करें |

मात्रा : १२५ से २५० मि.ग्रा.

सावधानी : पित्त-प्रकोपजनित समस्या हो तो हींग का उपयोग न करें | गर्मियों में हींग का उपयोग न करें | गर्मियों में हींग का अल्प मात्रा ( २५ मि.ग्रा.) में करें |



लोककल्याण सेतु – जुलाई २०२० से

वाणी ऐसे बोलें


वात्सल्यात्सर्वभूतेभ्यो वाकया: श्रोत्रसुखा गिर: |
परितापोपघातश्च पारुष्यं छात्र गर्हितम ||

वाणी ऐसी बोलनी चाहिए जिसमें सब प्राणियों के प्रति स्नेह भरा हो तथा जो सुनते समय कानों को सुखद जान पड़े | दूसरों को पीड़ा देना, मारना और कटु वचन सुनाना – ये सब निंदित कार्य हैं |’  ( महाभारत, शांति पर्व : १९१:१४ )


लोककल्याणसेतु – जुलाई २०२० से

मांसाहर नहीं, शाकाहार है जीवन का आधार

पूज्य बापूजी वर्षों पूर्व से अपने सत्संगों में बताते आये हैं कि “मांसाहार करने से कितनी हानि होती है | मुर्गा-बकरा खाना, यह-वह खाना .... लोग पेट को श्मशान बना देते हैं | मनुष्य मरते हैं तो कहाँ जाते हैं ? श्मशान में | ऐसे ही मुर्गा-बकरा मार के पेट में डाले तो पेट श्मशान हुआ कि नहीं हुआ ? संत पीपाजी कहते हैं :

जिव मार जीमण करे, खाते करे बखान |
पीपा प्रत्यक्ष देख लें, थाली में श्मशान ||

सूअर का मांस या गया का मांस जो लोग खाते हैं न, उनकी बुद्धि आल्लाह, गॉड, भगवान् से बिल्कुल विपरीत हो जाती है | हम लोग तो पहले से कहते आये हैं | गुरु नानकजी ने ५०० वर्ष पहले कहा है :

जे रतु लगै कपडै जामा होइ पलीतु |
जो रतु पीवहि माणसा तिन किउ निरमलु चीतु |

यदि रक्त वस्त्रों को लग जाता है तो वे वस्त्र अपवित्र हो जाते हैं | फिर जो मनुष्य रक्त पीते अर्थात मांसाहार करते हैं उनका चित्त निर्मल कैसे हो सकता है ?

संत कबीरजी ने भी पहले टोका है :

मांस-मांस सब एक है, मुर्गी हिरनी गाय |
आँखि देखि जे खात हैं, सो नर नरकहिं जाय ||

ऋषि-मुनियों ने लाखों वर्ष पहले जो कहा है, अभी विज्ञान अपने ढंग से इस बात को स्वीकारता है :

१] मांसाहार करनेवाले का पाचनतंत्र बिगड़ता है क्योंकि सब्जियों में जो रेशे होते हैं वे मांस में नहीं होते |

२] जीवों को काटते समय वे दु:खी, अशांत होते हैं, खिन्नता व प्रतिशोध से भरे होते हैं तो उनके मांस में भी खिन्नता, प्रतिशोध, भय, अशांति होगी | उस मांस को खानेवाले को भी थोडा-थोडा इनका असर होता रहेगा |

३] मांसाहार से कैंसर होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है |

४] मांस पचाने के लिए जठर को ज्यादा मेहनत करनी पडती है, जीवनीशक्ति ज्यादा खर्च होती है |

५] अंडे में जो कोलेस्ट्रॉल होता है उससे ह्रदयाघात और मोटापा होने की सम्भावनाएँ हैं | अंडे के चिकनाहटयुक्त पदार्थ से आँतों की बीमारी होती है |”

अन्य तथ्य
·       अंडा व मांस खाने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल कि मात्रा बढ़ जाती है, जिससे ह्रदयरोग, गुर्दे के रोग एव. पथरी होने का खतरा बढ़ जाता है |- नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकन डॉ. माइकल एस. ब्राउन तथा जोसेफ एल. गोल्डस्टीन

·       अंडे से टी.बी. और पेचिश भी हो जाती हैं | - डॉ. रॉबर्ट ग्रॉस

·       अंडे से अल्सर होता है | - डॉ. जे. एम्. विल्किन्स

मांसहार से विश्व में कई बार जानलेवा वायरस फैले हैं और लाखों लोगों की जान गयी है | आज कोरोनावायरस की महामारी के तांडव पर लोगों को मजबूरी में मांसाहार से परहेज करना पड़ रहा है | चीन को मांस के आयात व उपयोग पर रोक लगानी पड़ी | यदि पूज्य बापूजी जैसे ब्रह्मवेत्ता संतों – महापुरुषों व शास्त्रों की बात मनुष्य पहले ही मान लेता तो विश्वमानव जन-धन की भारी हानि से बच जाता |


                                                                                                                     लोककल्याणसेतु – जुलाई २०२० से

Thursday, July 16, 2020

पुण्यदायी तिथियाँ



२६ जुलाई  : रविवारी सप्तमी ( सुबह ९:३३ से २७ जुलाई सूर्योदय तक )

३० जुलाई : पुत्रदा एकादशी (व्रत से मनोवांछित फल की प्रप्ति )

३ अगस्त : रक्षाबंधन ( इस दिन धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है | इसे वर्ष में एक बार धारण करने से मनुष्य वर्षभर रक्षित हो जाता है | - भविष्य पुराण )

११ अगस्त : जन्माष्टमी ( स्मार्त )

१२ अगस्त : जन्माष्टमी (भागवत) (जन्माष्टमी के दिन पूरी रात जागरण करके ध्यान, जप आदि करना महापुण्यदायी है | महिमा जानने हेतु पढ़े पृष्ठ १३ ), बुधवारी अष्टमी ( सूर्योदय से दोपहर ११:१७ तक)

१५ अगस्त : अजा एकादशी ( समस्त पापनाशक व्रत, माहात्म्य पढने-सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल )

१६ अगस्त : विष्णुपदी संक्रांति ( पुण्यकाल : दोपहर १२:४३ से सूर्यास्त ) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का लाख गुना फल )

ऋषिप्रसाद – जुलाई २०२० से   

संकटनाशक मंत्रराज


नृसिंह भगवान का स्मरण करने से महान संकट की निवृत्ति होती है | जब कोई भयानक आपत्ति से घिरा हो या बड़े अनिष्ट की आशंका हो तो भगवान नृसिंह के इस मंत्र का अधिकाधिक जप करना चाहिए :

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् |
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ||

पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है कि “इस विशिष्ट मंत्र के जप और उच्चारण से संकंट कि निवृत्ति होती है |”


ऋषिप्रसाद – जुलाई २०२० से   

यह छोटा-सा प्रयोग दे निरोगता व सफलता का योग


हमारे मन में भगवान की अथाह शक्ति है | हम सुबह नींद में से उठे तो शुभ संकल्प करें | वेद में आता है : शुभ संकल्प करें कि ‘प्रभु ! तुम मधुमय हो | तुम सुखमय हो | तुम शांतिमय हो | तुम आनंदमय हो | तुम्हारा आनंद, माधुर्य, सामर्थ्य मुझमे भरता जाय |’

ऐसी प्रार्थना करके थोड़ी देर भगवान् की शांति और सामर्थ्य अपने मस्तिष्क में, अपने ह्रदय में भर लेना चाहिए | नारद पुराण में लिखा है कि रोज प्रात:काल उठकर मुँह साफ़ करके कटोरी आदि में पानी लें और उसमे देखते हुए ‘ॐ नमो नारायणाय |’ का २५ बार जप करें | और ‘यह पानी मेरे को निरोग बनायेगा ..... नारायण की शक्ति, नारायण कि कृपा....’ ऐसा चिंतन करके फिर भगवान की शक्ति या जिसको भी जानते हैं उसकी कृपा मान के वह पानी पीने से आरोग्य के कण बढ़ेगे | इससे व्यक्ति निरोग रहेगा, बीमारी ज्यादा आक्रमण नहीं करेगी, ज्यादा ऑपरेशन की समस्या नहीं होगी | स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, जीवन में सफलता आयेगी और मन पापों से मुक्त होगा |

सुबह-सुबह ‘ ॐ नमो नारायणाय |केवल २५ बार जप करके वही पानी पिये बस ! ‘ॐ’ नमन करते हैं | किसको ? ‘नारायण को, जो नर – नारी का अयन है, आत्मा है उस परमेश्वर को हम नमन करते हैं | किसको ? ‘नारायण को, जो नर-नारी का अयन है, आत्मा है उस परमेश्वर को हम नमन करते है | इस प्रकार मंत्र के अर्थ की भावना करे |

ऋषिप्रसाद – जुलाई २०२० से   

अजीर्ण हो तो क्या करें, क्या न करें


क्या करें
१] खुलकर भूख लगने पर ही जठराग्नि प्रदीपक, ताजा, सुपाच्य भोजन अच्छी तरह से चबा-चबाकर व उचित मात्रा में करें | प्रात:काल भोजन ९ से ११ बजे के बीच कर लें तथा शाम को ५ से ७ बजे के बीच अल्पाहार लें | भोजन के पश्च्यात ५ मिनट वज्रासन में बैठे फिर थोडा चल-फिर लें |

२] भोजन के बीच में थोडा-थोडा गुनगुना पानी पियें | भोजन के बाद देशी गोदुग्ध से बना ताजा मट्ठा जीरा व सेंधा नमक मिलाकर लें |

३] भोजन से पूर्व अदरक व नींबू के रस में सेंधा नमक मिला के लें |

४] भोजन के बाद आधा से एक चम्मच हिंगादि हरड चूर्ण गर्म पानी से ले सकते हैं | (पित्त की तकलीफवाले यह प्रयोग न करें | वे २ हरड रसायन गोलोयाँ भोजन के बाद चूस के खायें |)

५] ब्राह्ममुहूर्त में उठकर प्रात: -भ्रमण करें | सुबह ५ से ७ बजे के बीच शौच कर लें | पेट साफ़ रखें | सुर्यभेदी प्राणायाम, अग्निसार क्रिया व मयूरासन, पादपश्चिमोत्तानासन , हलासन, धनुरासन लाभदायी हैं |

६] जिस दिन भूख खुलकर नहीं लगती हो उस दिन उपवास करें | उपवास के दौरान केवल गुनगुना पानी पियें | धनिया व सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी भी लाभदायक है |

७] तेल-घी से बनी हुई वस्तुओं के अधिक सेवन के कारण अजीर्ण (बदहजमी) होने पर छाछ में हींग, जीरा व सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें | इससे अजीर्ण ठीक होने के साथ पाचनशक्ति भी बढती है | अधिक तेल-घी से बनी वस्तुओं का सेवन त्याग दें |

क्या न करें
१] बार- बार स्वाद के वशीभूत होकर बिना भूख के कुछ न खायें, अन्यथा पाचनक्रिया विकृत होती है और अपच, मंदाग्नि, कब्ज, पेटदर्द आदि रोग होते हैं |

२] जब तक पहले किया हुआ भोजन पच न जाय, जठराग्नि प्रदीप्त न हो, शरीर में हलकापन न लगे तक तक अगला भोजन न करें |

३] गरिष्ठ, मीठे, तले हुए, फ्रिज में रखे हुए, अधिक प्रक्रिया करके बनाये गये खाद्य पदार्थों के सेवन से परहेज करें | ध्यान रहे, जिस अन्न को पकाने में अधिक समय व मेहनत लगती है उसे पचाने में भी अधिक समय व शरीर को अधिक मेहनत लगती है | अत: प्रोसेस्ड फ़ूड से बचें |

४] दूषित, विरुद्ध, ठंडा व बासी भोजन न करें | चाय-कॉफ़ी, नुडल्स,पीजा, बर्गर, आइसक्रीम, फास्ट फ़ूड आदि का सेवन न करें |

५] असमी, संध्याकाल में तथा अधिक् भोजन न करें | भोजन के तुरंत बाद पानी न पियें | मल-मूत्र आदि के वेगों को न रोकें |

६] दिन में सोयें नहीं और रात को जागरण न करें |

७] अजीर्ण के समय किये गये उपवास के बाद तुरुंत सामान्य भोजन न करें | मूँग को उबालकर सेवन करें | उसके बाद क्रमश: खिचड़ी या दाल -चावल, रोटी-सब्जी इस प्रकार सामान्य खुराक पर आयें.


ऋषिप्रसाद – जुलाई २०२० से   

रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के कुछ अन्य उपाय


१)     ध्यान व जप अनेक रोगों में लाभदायी होता है | इससे औषधीय उपचारों की आवश्यकता कम पड़ती है | ध्यान के समय अनेक प्रकार के सुखानुभुतिकारक मस्तिष्क – रसायन आपकी तंत्रिका-कोशिकाओं को सराबोर करते हैं | सेरोटोनिन, गाबा, मेलाटोनिन आदि महत्त्वपूर्ण रसायनों में बढ़ोत्तरी हो जाती है | इससे तनाव, अवसाद, अनिद्रा दूर भाग जाते हैं व मन में आह्लाद, प्रसन्नता आदि सहज में उभरते हैं |

 रटगर्स विश्वविद्यालय, न्यूजर्सी के शोधकर्ताओं ने पाया कि ध्यान के अभ्यास्कों में मेलाटोनिन का स्तर औसतन ९८% बढ़ जाता है | किसी-किसीमें इसकी ३००% से अधिक की वृद्धि हुई | मेलाटोनिन के कार्य हैं तनाव कम करना, स्वस्थ निद्रा, रोगप्रतिकारक प्रणाली को सक्रिय करना, कैंसर तथा अन्य शारीरिक-मानसिक रोगों से रक्षा करना |

२)     टमाटर, फूलगोभी, अजवायन व संतरा रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाते हैं अत: भोजन में इनका उपयोग करें | हल्दी, जीरा, दालचीनी एवं धनिया का उपयोग करें | परिस्थितियों को देखते हुए अल्प मात्रा में लहसुन भी डाल सकते हैं |

३)     १५० मि.ली. दूध में आधा छोटा चम्मच हल्दी डाल के उबालकर दिन में १ – २ बार लें |

४)     रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने हेतु प्राणदा टेबलेट, ब्राह्म रसायन, होमियो तुलसी गोलियाँ, तुलसी अर्क (१०० मि.ली. पानी में १ से ५ बूँद आयु व प्रकृति अनुसार ), होमिओ पॉवर केअर आदि का सेवन लाभदायी है |

ऋषिप्रसाद – जुलाई २०२० से