लाभ : मूलाधार
चक्र से संबंध रखनेवाली इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से –
१] शरीर का वजन
बढ़ता है |
२] त्वचा की कांति
बढ़ती है |
३] शारीरिक
दुर्बलता दूर होती है |
४] ताजगी व
स्फूर्ति कि प्राप्ति होती है |
५] व्यक्ति संतोषी
व उत्साही बनता है |
६] कार्यक्षमता
एवं दक्षता में वृद्धि होती है |
७] शरीर में रक्त-
परिचलन स्मर्थरूप से रहकर शरीर सभी प्रकार से तंदुरुस्त रहता है |
८] आरोग्य की
प्राप्ति व तेज में वृद्धि होती है |
९] शरीर के सभी
खनिज तत्त्वों का संतुलन होता है |
१०] पृथ्वी –
तत्त्व संतुलित होता है, जिससे इसके असंतुलन से
होनेवाले रोगों से रक्षा होती है |
विधि : पद्मासन, सुखासन आदि किसी आसन में बैठ जाएँ ( वज्रासन में बैठना विशेष लाभदायी है
) | अनामिका (सबसे च्चोती ऊँगली के पासवाली ऊँगली ) के अग्रभाग को अँगूठे के
अग्रभाग से स्पर्श करायें | शेष तीनों उँगलियाँ सीधी रखें |
समय : कम-से-कम ३०
मिनट
लोककल्याणसेतु
– जुलाई २०२० से
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