भूखे को रोटी और
प्यासे को पानी की जितनी आवश्यकता होती है उतना ही जीवन में उत्तम गुणों एवं
धर्मसम्मत व्यवहार का होना आवश्यक है | इनके बिना व्यक्ति मनुष्य हो के भी पशु के
समान ही है | कहा भी गया है : धर्मेण हीना: पशुभि: समाना: | मनुष्यमात्र के कल्याण
के लिए समर्थ रामदासजी अपने सदग्रंथ ‘दासबोध’ में कहते
हैं : “उत्तम गुणों के लक्षणों को श्रोतागण ध्यान से सुनें,
जिन्हें आत्मसात करने से सर्वज्ञता प्राप्त होती है |
कही भी जाना हो तो
मार्ग की सम्पूर्ण जानकारी लिये बिना न जायें | फल खाने के पहले उसकी ठीक से
जानकारी लिये बिना खायें नहीं | रास्ते में पड़ी हुई वास्तु एकाएक उठाये नहीं |
अधिक वाद-विवाद नहीं करें तथा किसीसे कपट से व्यवहार न करें | कुल-खानदान और चरित्र
की जानकारी लिये बिना किसी स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए |
विचार किये बिना
ही बात न करें तथा पूर्वचर्चा किये बिना ही बात न करें तथा पूर्वचर्चा किये बिना
चर्चा किसी कार्य कि शुरुआत न करें | लोगों से व्यवहार करते समय मर्यादा का पालन
अवश्य करना चाहिए | जहाँ प्रेम न हो वहाँ रूठना नहीं चाहिए | चोर से उसका परिचय
नहीं पूछना चाहिए तथा रात में अकेले यात्रा नहीं करनी चाहिए |
लोगों में व्यवहार
करते समय सरलता कभी न छोड़ें | पापमार्ग से धन को एकत्र न करें तथा किसी भी
प्रतिकूल परिस्थिति में पुण्यमार्ग को छोड़ना नहीं चाहिए | किसीकी निंदा तथा द्वेष
कभी न करें एवं बुरी संगति न करें | बलपूर्वक किसीका धन अथवा स्त्री का अपहरण नहीं
करना चाहिए | (जब तक कोई अत्यंत अनर्थकारी स्थिति उत्पन्न न हो रही हो तब तक )
वक्ता के बोलते समय बीच में उसका खंडन न करें | लोगों की एकता तोड़ के उनमें फूट
नहीं डालनी चाहिए | विद्या का अभ्यास करना कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए | सभा में
लज्जा न करें | व्यर्थ की बाते न बोलेन | किसी भी स्थिति में शर्त नहीं लगानी
चाहिए | अधिक चिंता नहीं करें तथा लापरवाह भी न रहें | परस्त्री को पापबुद्धि से न
देखें | हो सके तो किसीका उपकार न लें | यदि किसी कारणवश लेना ही पड़े तो बदले में
उपकार किये बिना न रहें |”
लोककल्याणसेतु
– जुलाई २०२० से
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