ॐ की महिमा के संबंध में अनेक ग्रंथ लिखे गये हैं और
लिखे जाते रहेंगे, फिर भी ॐ की महिमा का पूरा
वर्णन करना सम्भव नहीं है |
सभी मजहबों में ॐकार की महानता का लाभ उठाने का प्रयास
किया गया है | बौद्ध धर्म ने इस ॐकार को अत्यंत आदर से स्वीकारा और लाभ लिया है : ‘ओं
मणिपद्मे हूं |’ जो ॐ ह्रदयरपी गुहा में मणि कि नाई चमकता है उसे हमारा नमन है !
जैन ‘णमो अरिहंताणं | णमो सिद्धाणं |....’ आदि णमोकार मंत्र का उच्चारण करते हैं |
मुसलमानों ने ॐकार को आमीन-आमीन... करके उसके दूसरे रूप को बनाकर फायदा लिया | ‘१
ओंकार...’ करके सिख भाइयों ने फायदा लिया, गुरुओं
ने फायदा लिया तो ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |’ करके वैष्णवों ने , ‘ॐ नम: शिवाय |’
करके शैवों ने फायदा लिया | ॐकार कि महिमा सभी धर्मों ने , सभी सम्प्रदायों ने
स्वीकार की है |
जो संसार का रक्षण करता है, जो संसार को गति देता है और सदा रहता है, प्रलय के
बाद भी जो ज्यों-का- त्यों रहता है उस सच्चिदानंद को ‘अकालपुरुष’ वादी ‘अकाल’ कहते हैं,
सांख्यवादी ‘पुरुष’ कहते हैं, भगवतवादी
‘भगवान’ कहते हैं, प्रीतिवादी ‘प्रेमास्पद’ कहते हैं | उस परमेश्वर की स्वाभाविक ध्वनि है ॐकार |
दूसरे सारे शब्द आहत से पैदा होते है परंतु ॐकार अनहद
है, टकराव से नहीं, बेटकराव सहज स्फुरित होता है | ॐकार
के बिना के जो मंत्र हैं वे प्राय: अपूर्ण और अधूरे माने जाते हैं | ॐकार पूर्णता
देनावाला है | ॐकार मंत्र मंत्रों को मंत्र बनानेवाली स्वीकृति सत्ता है |
इससे ३ दिन में मनोरथ होने लगेंगे पुरे
‘
गोपथ ब्राह्मण’ में आया है कि जो ब्राह्मण (
ब्रह्म-परमात्मा को पाने का प्रयास करनेवाले) केवल ३ रात्रि उपवास (अनाहार) करके
पूर्वाभिमुख होकर कुशासन पर बैठ के ॐकार का जप करे,
मौन रहे तो वह मनोवांछित पद, मनोवांछित वस्तु और मनोवांछित
परिस्थिति को प्राप्त हो जाता है | अधिक जप न करे तो कोई हर्ज नहीं, केवल हजार बार जप हो जायेगा रोज तो भी चल जायेगा | माला गिनतीपूर्वक जपे
और प्रेमपूर्वक अर्थसहित जपे तो उसके मनोरथ पूर्ण होने लगते हैं |
ॐकार कि उपासना कितनी महत्त्वपूर्ण !
गरुड़ पुराण के आचार कांड में लिखा है कि ‘ॐकार कि
उपासना से राष्ट्र की अभिवृद्धि होती है और योग से राजा वृद्धि को प्राप्त करते
हैं तथा उसे किसी भी प्रकार कि व्याधियाँ बाँध नहीं सकतीं |’
जो भी व्यक्ति ॐकार की उपासना करता है वह रोगरहित और
समृद्ध होता है | ॐकार कि उपासना कितनी महत्त्वपूर्ण है ! थोड़ी ॐकार- उपासना की
रीत जानकर अगर आप आधा घंटा शुरू करो फिर पौना घंटा,
एक घंटा, दो घंटा करो तो कहना ही क्या है ! लेकिन जितना
संसार के लिए आप परिश्रम करते हैं, माथापच्ची करते हैं, घुटने टेकते हैं उसका दसवाँ हिस्सा भी यह परिश्रम का मार्ग नहीं है और
अनंत गुना फल हो जायेगा, भगवान की उपासना में इतना प्रभाव है
|
स्नातं तेन सर्व तीर्थ...... उसने सारे तीर्थों में नहा
लिया. दातं तेन सर्व दानं...... उसने सब कुछ दान कर लिया, कृतं तेन सर्व यज्ञं..... उसने सारे यज्ञ कर लिये, येन क्षणं मन: ब्रह्मविचारे स्थिरं कृतम | जिसने क्षणभर के लिए भी मन ब्रह्म-परमात्मा में स्थित
किया हो |
ॐ ब्रह्म-परमात्मा का स्वाभाविक नाम है | एक होती है
खोज और दूसरा होता है निर्माण | खोज उसीकी होती है जो पहले है | निर्माण उसीका
होता है जो पहले से नहीं है | आदिनारायण के पहले यह ॐकार मंत्र था तभी शास्त्रों
ने कहा कि भगवान नारायण ने इस मंत्र की महिमा खोजी |
ॐकार मंत्र बीजमन्त्र माना जाता है | जैसे पृथ्वी में जैसा
बीज बोओं वैसा फल मिलता है, ऐसे ही इस बीजमंत्र से
वैराग्य, भगवदभक्ति, परमात्मप्रीति, विद्या, शांति ..... चाहे जो माँगो, वह देर-सवेर
फलता है | और केवल इससे इसीको माँगो – भगवान को माँगो तो वह संकल्प भी फलता है | इस
मंत्र के तो इष्टदेव ही अन्तर्यामी परमात्मा हैं | सबके अंदर अनुस्यूत जो सत्तास्वरुप
परमेश्वर हैं वे इसके इष्टदेव हैं, मंत्र के देवता हैं |
ऋषिप्रसाद – जुलाई २०२० से
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