आयुर्वेद के
अनुसार हींग अन्न एवं दोषों का पाचन करनेवाली, भोजन में
रूचि उत्पन्न करनेवाली व भूखवर्धक है | यह कफ व वायु शामक तथा तंत्रिक-तंत्र
(nervous system) के लिए बल्य है | कृमिरोग, गृध्रसी
(sciatica), पेट के रोग, गठिया, ह्रदयरोग, वायु के कारण होनेवाला छाती व पेट का
दर्द तथा दमा, खांसी आदि फेफड़ों के रोगों में लाभदायी है |
दाल अथवा सब्जी
में छौंक लगाते समय हींग का उपयोग करने से वह रुचिकर व सुपाच्य हो जाती है | इससे
पेट की वायु का शमन होता है व कब्जियत में भी लाभ होता है |
मंदाग्नि हो तो घी
में भुनी हुई २ चुटकी हींग में नींबू का १ चम्मच रस मिलाकर भोजन के प्रथम कौर के
साथ लेने से पेट में पाचक रस स्रावित होने लगते हैं,
जिससे जठराग्नि तीव्र हो जाती है |
दूषित अन्न कि
डकार आती हो, थोडा- थोडा दस्त होता हो और पेट में
वायु भरी हो तो २ चुटकी हींग में घी मिलाकर गर्म पानी के साथ लें अथवा हिंगादी हरड
चूर्ण या रामवाण बूटी का सेवन गर्म पानी के साथ करें |
मात्रा : १२५ से
२५० मि.ग्रा.
सावधानी :
पित्त-प्रकोपजनित समस्या हो तो हींग का उपयोग न करें | गर्मियों में हींग का उपयोग
न करें | गर्मियों में हींग का अल्प मात्रा ( २५ मि.ग्रा.) में करें |
लोककल्याण
सेतु – जुलाई २०२० से
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