१) व्यर्थ
चिंतन : व्यर्थ का चिंतन त्याग दें | व्यर्थ चिंतन हटाने के लिए बीच – बीच में ॐकार
का उच्चारण, सुमिरन करें | व्यर्थ के चिंतन में
शक्ति का ह्रास होता है | व्यर्थ कि उधेड़बुन होती रहती है,
उसमें बहुत सारी शक्ति खत्म होती हैं | भगवद-उच्चारण, भगवत्सुमिरन
से व्यर्थ के चिंतन का अंत हो जाता है |
२) व्यर्थ
बोलना : व्यर्थ का भाषण, व्यर्थ की बात.... १० शब्द
बोलने हों तो ६ में निपटाओ तो आपका बोलना प्रभावशाली रहेगा | जो १० कि जगह पर ५०
शब्द बोलते हैं उनकी कोई सुनता भी नहीं | १० कि जगह पर १०-१२ तो चल जाय, २० बोलेगा तो भी लोग ऊबेंगे | कट – टू – कट बोलना चाहिए | फोन पर भी
कट-टू -कट बात करनी चाहिए | व्यर्थ के भाषण से बचना हो तो भगवत्सुमिरन, भगवत्शान्ति
में गोता खाते रहो, व्यर्थ की बडबडाहट से बच जाओगे |
३) व्यर्थ
का दर्शन : यह देखो, वह देखो.... इससे तो भगवान
को और सद्गुरु को ही देखने कि आदत डाल दो | व्यर्थ का देखना बंद हो जायेगा, कम हो जायेगा |
४) व्यर्थ
का सुनना : व्यर्थ का सुनने कि आदत होती है | टी.वी. में व्यर्थ का देखते हैं, व्यर्थ का सुनते हैं, जिससे गडबड संस्कार पड़ जाते हैं | इसकी अपेक्षा
भगवान को देखो और भगवत्कथा सत्संग सुनो |
५) व्यर्थ
का घूमना : इधर गये, उधर गयें.... इससे तो फिर
सत्संग में जाओ और सेवा के लिए घूमो तो व्यर्थ का घूमना बंद हो जायेगा |
तो
व्यर्थ का सोचना, बोलना, देखना, सुनना और घूमना – इनमें शक्ति का ह्रास होता
है इसलिए उन्हें सार्थक में ले आओ |
ऋषिप्रसाद – जुलाई २०२० से
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