वात्सल्यात्सर्वभूतेभ्यो
वाकया: श्रोत्रसुखा गिर: |
परितापोपघातश्च
पारुष्यं छात्र गर्हितम ||
‘वाणी ऐसी बोलनी
चाहिए जिसमें सब प्राणियों के प्रति स्नेह भरा हो तथा जो सुनते समय कानों को सुखद
जान पड़े | दूसरों को पीड़ा देना, मारना और कटु वचन
सुनाना – ये सब निंदित कार्य हैं |’ (
महाभारत, शांति पर्व : १९१:१४ )
लोककल्याणसेतु
– जुलाई २०२० से
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