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Thursday, July 23, 2020

वाणी ऐसे बोलें


वात्सल्यात्सर्वभूतेभ्यो वाकया: श्रोत्रसुखा गिर: |
परितापोपघातश्च पारुष्यं छात्र गर्हितम ||

वाणी ऐसी बोलनी चाहिए जिसमें सब प्राणियों के प्रति स्नेह भरा हो तथा जो सुनते समय कानों को सुखद जान पड़े | दूसरों को पीड़ा देना, मारना और कटु वचन सुनाना – ये सब निंदित कार्य हैं |’  ( महाभारत, शांति पर्व : १९१:१४ )


लोककल्याणसेतु – जुलाई २०२० से

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