पूज्य बापूजी के सत्संग
– वचनामृत में आता है : “शास्त्र में मिल जाता है कि माला में १०८ दाने क्यों ?
१०९ नहीं, ११२ नहीं... १०८ ही क्यों ? कुछ लोग २७ दाने की माला घुमाते है, कोई ५४
दाने की माला घुमाते हैं और कोई १०८ दाने की घुमाते हैं | इसका अपना-अपना हिसाब है
|
शास्त्रकारों ने जो
कुछ विधि-विधान बनाया है वह योग विज्ञान से, मानवीय विज्ञान से, नक्षत्र विज्ञान से, आत्म-उद्धार विज्ञान से – सब ढंग से सोच -विचार के,
सूक्ष्म अध्ययन करके बनाया है |
कई आचार्यों के
भिन्न-भिन्न मत है | कोई कहते हैं कि ‘१०० दाने अपने लिए और ८ दाने गुरु या
जिन्होंने मार्ग दिखाया उनके लिए, इस प्रकार १०८ दाने जपे
जाते हैं |’
योगचूडामणि उपनिषद
(मन्त्र ३२) में कहा गया है :
षटशतानि दिवारात्रौ
सहस्त्रन्येकविंशति: |
एतत्सङ्ख्यान्वितं
मन्त्रं जीवो जपति सर्वदा ||
‘जीव २१,६०० की संख्या में (श्वासोच्छ्वास में ) दिन-रात निरंतर मंत्रजप करता है |’
हम २४ घंटो में २१,६०० श्वास लेते हैं | तो २१,६०० बार परमेश्वर का नाम
जपना चाहिए | माला में १०८ दाने रखने से २०० माला जपे तो २१,६००
मंत्रजप हो जाता है इसलिए माला में १०८ दाने होते हैं | परंतु १२ घंटे दिनचर्या
में चले जाते हैं,
१२ घंटे साधना के लिए बचते है तो २१,६०० का आधा कर दो
तो १०,८०० हुए | तो श्वासोच्छवास जप में १०,८०० श्वास लगाने चाहिए | अधिक न कर सकें तो कम-से-कम श्वासोच्छवास में १०८
जप करें | मनुस्मृति में और उपासना के ग्रंथो में लिखा है की श्वासोच्छवास का
उपांशु जप करो तो एक जप का १०० गुना फल होता है | १०८ को १०० से गुना कर दो तो १०,८०० हो जायेगा | परंतु माला द्वारा साधक को प्रतिदिन कम-से-कम १० माला
गुरुमंत्र जपने का नियम रखना ही चाहिए | इससे उसका आध्यात्मिक पतन नहीं होगा | शिव
पुराण, वायवीय संहिता, उत्तर खंड : १४.१६-१७ में आता है कि
गुरु से मंत्र और आज्ञा पाकर शिष्य एकाग्रचित्त हो संकल्प करके पुरश्चरणपूर्वक (
अनुष्ठानपूर्वक ) प्रतिदिन जीवनपर्यन्त अनन्यभाव से तत्परतापूर्वक १००८ मन्त्रो का
जप करे तो परम गति को प्राप्त होता है |
दुसरे ढंग से देखा
जाय तो आपके जो शरीर व मन हैं वे ग्रह और नक्षत्रों से जुड़े हैं | आपका शरीर सूर्य
से जुदा हैं, मन नक्षत्रों से जुड़ा है | ज्योतिष
शास्त्र में नक्षत्र २७ माने गये हैं | ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र २७ माने गये
हैं | तो २७ नक्षत्रों की माला सुमेरु के सहारे घुमती है | प्रत्येक नक्षत्र के ४
चरण हैं, जैसे – अश्विनी के ‘चू , चे, चो, ला’, ऐसे ही अन्य नक्षत्रों के भी ४-४ चरण होते हैं
| अब २७ को ४ से गुणा करो तो १०८ होते हैं |
तो हमारे प्राणों के
हिसाब से , नक्षत्रों के हिसाब से, हमारी
उन्नति के हिसाब से १०८ दाने की माला ही उपयुक्त है |”
कुछ अन्य तथ्य
कुछ अन्य तथ्य ऐसी
भी मान्यता है कि एक वर्ष में सूर्य २,१६,००० कन्याएँ बदलता है | सूर्य हर ६ – ६ महीने उत्तरायण और दक्षिणायन में
रहता है | इस प्रकार ६ महीने में सूर्य की कुल कलाएँ १,०८,००० होती हैं | अंतिम ३ शून्य हटाने पर १०८ संख्या मिलती है | अत: जपमाला में
१०८ दाने सूर्य की कलाओं के प्रतिक हैं | ज्योतिष शास्त्रानुसार १२ राशियों और ९
ग्रहों का गुणनफल १०८ अंक सम्पूर्ण जगत की गति का प्रतिनिधित्व करता है |
शिव पुराण ( वायवीय
संहिता, उत्तर खंड : १४.४० ) में आता है :
अष्टोत्तरशतं माला
तत्र स्यादुत्तमोत्तमा |
‘१०८ दानों की माला
सर्वोत्तम होती है |’
ऋषिप्रसाद
– नवम्बर २०२० से